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EV के मुकाबले कम कार्बन छोड़ते हैं हाइब्रिड वाहन : आर सी भार्गव

भारी उद्योग मंत्रालय देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए 2030 तक का खाका तैयार कर रहा है मगर पूरी दुनिया में इले​क्ट्रिक कारों की बिक्री घट रही है।

Last Updated- July 09, 2024 | 11:38 PM IST
R C Bhargava, Chairman, Maruti Suzuki

भारी उद्योग मंत्रालय देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए 2030 तक का खाका तैयार कर रहा है मगर पूरी दुनिया में इले​क्ट्रिक कारों की बिक्री घट रही है। ऐसे में मारुति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने सुरजीत दास गुप्ता से इस बहस पर विस्तार से बात की कि कार्बन उत्सर्जन में ज्यादा कमी ईवी से होती है या दूसरे ईंधन वाले वाहनों से। मुख्य अंश :

क्या उद्योग और सरकार को साथ मिलकर देश की ईवी नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए क्योंकि यह इलेक्ट्रिक कारों पर ही निर्भर है?

उद्योग में तमाम कंपनियों की राय अलग-अलग हैं। टाटा और ह्युंडै हाइब्रिड कारों के खिलाफ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री घटेगी। मगर हकीकत में हाइब्रिड वाहन पेट्रोल-डीजल कारों को बंद करने का रास्ता आसान करेंगे। इसलिए सरकार को तय करना है कि देश के लिए क्या अच्छा है और वह नीति की समीक्षा शुरू कर चुकी है। स्कूटर बाजार में भी ऐसी ही तस्वीर है, जहां बजाज ने सीएनजी बाइक उतार दी है और उस पर जीएसटी में छूट चाहती है। मगर इलेक्ट्रिक दोपहिया कंपनियों को यह गवारा नहीं होगा।

मगर क्या आपको नहीं लगता कि बैटरी वाली गाड़ियों पर जोर देकर हम कार्बन उत्सर्जन घटाने में मदद करेंगे, जो हमारा मकसद भी है?

बहुत ज्यादा उम्मीद लगाई जाए तो भी वाहन बाजार में ईवी की हिस्सेदारी 2034 तक 40 फीसदी ही हो पाएगी। मौजूदा नीति पर चले तो भी 60 फीसदी कारें पेट्रोल, डीजल या सीएनजी से चलेंगे। इसका मतलब है कि 2034 में हम आज से ज्यादा पेट्रोल, डीजल कारें बेच रहे होंगे और कार्बन उत्सर्जन बढ़ जाएगा। जब तक हम पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल कम करने वाली दूसरी तकनीकों को बढ़ावा नहीं देते तब तक आप केवल बैटरी से चलने वाली ई-कार के भरोसे नहीं रह सकते।

फिर आप ईवी के अलावा दूसरी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा कैसे देंगे और यह कैसे पक्का करेंगे कि सभी वाहनों पर उचित सब्सिडी दी जाए?

आसान है। सरकार के दो मकसद हैं ईंधन आयात पर होने वाला खर्च घटाना और कार्बन उत्सर्जन कम करना क्योंकि हमने 2070 तक उत्सर्जन शून्य करने का संकल्प लिया है। कौन सी तकनीक इन दोनों मकसदों को पूरा करने में कितना योगदान कर रही है, यह देखकर ही प्रोत्साहन देना चाहिए। चाहे ईवी हो, हाइब्रिड हो या सीएनजी अथवा बायोगैस हो, यही सही और पारदर्शी तरीका है। आप केवल एक तकनीक को इनाम नहीं दे सकते क्योंकि ईवी की बिक्री बहुत सुस्त है। दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य हासिल करने के लिए कई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

मगर क्या इलेक्ट्रिक कारें कार्बन उत्सर्जन कम करने में हाइब्रिड वाहनों से बेहतर नहीं हैं क्योंकि हाइब्रिड तो थोड़ा-बहुत पेट्रोल इस्तेमाल करते ही हैं?

हकीकत यह है कि पेट्रोल इस्तेमाल करने के बजाय हाइब्रिड कारें ई-कारों से कम कार्बन उत्सर्जन करती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ईवी की बैटरी चार्ज करनी पड़ती है और देश में 76 फीसदी बिजली अब भी कोयले से बनती है। यूरोप में ज्यादातर बिजली नवीकरणीय स्रोतों से बनती है और केवल 30 फीसदी कोयले से बनती है। भारत में पिछले एक दशक में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 4-5 फीसदी ही बढ़ पाया है।

तो हाइब्रिड कारों की बिक्री बढ़ाने में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

कर की दर। पूरी दुनिया में कारों पर सबसे ज्यादा कर भारत में ही लगता है। यूरोप में पेट्रोल-डीजल और हाइब्रिड वाहनों पर लगने वाले कर में केवल 1 फीसदी अंतर है मगर भारत में दोनों के बीच 30 फीसदी का अंतर है। इलेक्ट्रिक कार पर केवल 5 फीसदी कर लगता है मगर हाइब्रिड पर 43 फीसदी कर बोझ लदा हुआ है।

सब्सिडी से ईवी बिक्री बढ़ाने की सरकार की नीति क्या आपको कारगर लगती है?

साफ बात यह है कि जब ज्यादा ई-कारें बिकने लगेंगी तब सरकार के लिए सब्सिडी देना मुश्किल हो जाएगा। हम चीन नहीं हैं, जहां उद्योग की मदद के लिए 230 अरब डॉलर झोंक दिए जाते हैं। अब तो चीन और यूरोपीय देशों ने भी सब्सिडी कम कर दी है। भारत में भी सब्सिडी लगातार कम हो रही है। मगर सब्सिडी के बाद भी देश में बिकी कारों में ई-कारों की हिस्सेदारी महज 2 फीसदी है। अप्रैल से इलेक्ट्रिक कारों से सब्सिडी हटाए जाने के बाद बिक्री कम ही हुई है।

First Published - July 9, 2024 | 10:18 PM IST

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