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Coal Reforms 3.0: सुधार से बंद होगा कोयला आयात, मंत्रालय बना रहा कोकिंग कोल उत्पादन बढ़ाने की योजना

1971 में कोयले का राष्ट्रीयकरण होने और वर्ष 2015 में ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसे सुधारों का तीसरा दौर माना जा रहा है।

Last Updated- June 17, 2024 | 7:25 AM IST
Coal import

देश में कोयला आयात कम करने के लिए सरकार कोयला क्षेत्र में सुधार का तीसरा दौर शुरू करने जा रही है। इसका मकसद आयात में तगड़ी कमी करना और उद्योगों के लिए कोयले की बेरोक उपलब्धता सुनिश्चित करना है। इसके तहत कई उपाय आजमाकर कोयला मंत्रालय देश के भीतर कोयले का उत्पादन बढ़ाना चाहता है।

1971 में कोयले का राष्ट्रीयकरण होने और वर्ष 2015 में ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसे सुधारों का तीसरा दौर माना जा रहा है, जिसमें ऊर्जा से इतर क्षेत्रों खास तौर पर इस्पात जैसे क्षेत्रों का खास ध्यान रखा जाएगा।

इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार सबसे पहले नई फॉरवर्ड बिडिंग नीलामी शुरू करेगी, जिसमें देसी कोकिंग कोल की नीलामी दो तरीकों से होगी। मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया, ‘पहला तरीका उन इस्पात संयंत्रों के लिए इस्तेमाल होगा जिनमें वॉशरी (कोयला धुलाई संयंत्र) भी है।

दूसरा रास्ता उन इस्पात संयंत्रों के लिए होगा, जिनमें वॉशरी ही नहीं है। जो कारखाने अपना कोयला खुद धोएंगे, उन्हें उससे निकले उत्पाद भी बेचने की इजाजत होगी।

अधिकारी ने कहा कि इसके लिए कोयला मंत्रालय नीलामी में बोली लगाने वालों से यह पाबंदी हटा देगा कि आखिर में कोयले का इस्तेमाल कहां किया जा रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की सात सहायक इकाइयों में एक भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) इस काम के लिए वॉशरी लगाएगी। बीसीसीएल देश में कोकिंग कोल का खनन करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है।

जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) जयंत आचार्य ने कहा, ‘ हम उन वॉशरी की नीलामी की बात कर रहे हैं, जिन पर कोकिंग कोयला आता है और नई वॉशरी की लिए लंबे अरसे तक कोकिंग कोयला उपलब्ध कराने की बात कर कर रहे हैं। इस नीलामी से इस्पात क्षेत्र को देश में निकला कोयला मिलता रहेगा और विदेश से आने वालो कोयले पर उसकी निर्भरता कम हो जाएगी। हमने समुचित कोयला आपूर्ति वाली वॉशरी के लिए नीलामी तेज करने और भविष्य में बनने वाली वॉशरी के लिए कोकिंग कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का अनुरोध किया है।’

अधिक आपूर्तिकर्ता, नए समझौते

मंत्रालय चाहता है कि बीसीसीएल उत्पादन बढ़ाने और वॉशरी तैयार करने पर ध्यान दे। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इसी मंशा के साथ मंत्रालय इस्पात कंपनियों के साथ बीसीसीएल के कोयला आपूर्ति समझौते कोल इंडिया लिमिटेड की दूसरी सहायक इकाइयों (ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड) को सौंपना चाहता है।

अधिकारी ने कहा कि ईस्टर्न कोलफील्ड्स और सेंट्रल कोलफील्ड्स के पास सीआईएल की दूसरी कंपनियों के मुकाबले बेहतर किस्म का कोयला बड़ी मात्रा में मौजूद है। अधिकारी ने कहा कि धुलाई होने पर इस कोयले की गुणवत्ता और भी अच्छी (जी7 या जी8) हो जाएगी। कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शुरू में 1 से 1.2 करोड़ टन कोयले की आपूर्ति के समझौते दूसरी कंपनियों को सौंपे जाएंगे और बाद में इस प्रक्रिया का विस्तार किया जाएगा।

अधिकारी ने कहा कि इस्पात कंपनियां ईस्टर्न कोलफील्ड्स से मिला बेहतरीन गुणवत्ता वाला कोयला पल्वराइज्ड कोल इंजेक्शन (पीसीआई) में इस्तेमाल कर सकती हैं। पीसीआई कार्बन का ही एक रूप होता है और पिघला लोहा तैयार करने के लिए ब्लास्ट फर्नेस में इस्तेमाल किया जा सकता है। पिघले लोहे से ही बाद में इस्पात बनाया जाता है।

भारतीय इस्पात उद्योग अपनी परियोजनाओं के विस्तार में जुटा है, इसलिए कच्चे माल के रूप में कोकिंग कोल की जरूरत बढ़ती जाएगी। इस समय इस्पात उद्योग की 9 फीसदी तक जरूरत आयात के कोयले से ही पूरी होती है।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस ऐंड एनालिटिक्स में निदेशक (शोध) सेहुल भट्ट ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2024 में भारत ने 5.8 करोड़ टन कोकिंग कोल का आयात किया, जो 2022-23 के मुकाबले 3.7 फीसदी बढ़ा था। लेकिन इस आयात की कुल कीमत 17.22 फीसदी गिरकर 15.96 अरब डॉलर रह गई क्योंकि कोयले के दाम लगातार गिर रहे हैं और कम दाम पर कोयला पाने की खातिर भारतीय कारखाने कई स्रोतों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

देश की अग्रणी एकीकृत इस्पात कंपनियां वित्त वर्ष 2025 में ब्लास्ट फर्नेस क्षमता में 15 फीसदी बढ़ा रही हैं। भट्ट ने कहा, ‘इससे आयात पर निर्भरता बढ़ जाएगी क्योंकि भारत के पास इस्पात के लिए इस्तेमाल होने वाला कोकिंग कोल काफी कम है।’

भारतीय इस्पात संघ (आईएसए) के महासचिव आलोक सहाय ने कहा कि इस्पात क्षेत्र के लिए कोकिंग कोल की आपूर्ति की खातिर नीलामी प्रक्रिया कोयला मंत्रालय का सोचा-समझा एवं अच्छा कदम है, जिसका उद्देश्य देसी इस्पात उद्योग की आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करना है।

आईएसए इस्पात उत्पादकों की शीर्ष संस्था है। लेकिन सहाय ने कहा, ‘तकनीकी एवं गुणवत्ता संबंधी मुद्दों के कारण आयात पर हमारी निर्भरता फिलहाल बनी रहेगी। अगर देसी कोयले की आपूर्ति के कारण कोयला आयात में 15-20 फीसदी कमी भी आती है तो भारी विदेशी मुद्रा बच जाएगी।’

उन्होंने कहा कि उद्योग से जुड़े पक्षों ने कुछ मुद्दे भी उठाए हैं, जिन पर कोयला मंत्रालय, बीसीसीएल और सीआईएल के साथ चर्चा चल रही है।

First Published - June 16, 2024 | 10:15 PM IST

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