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भारत में बैटरी क्रांति: जापान देगा 30 GWh ACC बैटरी बनाने की तकनीक, EV सेक्टर को मिलेगा बड़ा बढ़ावा

भारत में 30 गीगावॉट बैटरी निर्माण को बढ़ावा देने जापान जुलाई में तकनीकी प्रतिनिधिमंडल भेजेगा, जिससे ईवी सेक्टर और ऊर्जा सुरक्षा को नई मजबूती मिलने की उम्मीद है।

Last Updated- June 17, 2025 | 9:59 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

जापान के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और उद्योग प्रतिनिधियों का एक प्रतिनिधिमंडल जुलाई के पहले हफ्ते में भारत आएगा। जापानी दूतावास के एक अधिकारी ने बताया कि यह प्रतिनिधिमंडल भारत को 30 गीगावॉट आवर (जीडब्ल्यूएच) की एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी बनाने में प्रौद्योगिकी संबंधी मदद देने आ रहा है।

देश में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना की तीन बड़ी लाभार्थी कंपनियों रिलायंस न्यू एनर्जी, ओला सेल टेक्नॉलजीज और राजेश एक्सपोर्ट्स को तय मियाद में 30 गीगावॉट आवर क्षमता स्थापित करने में अड़चन झेलनी पड़ रही हैं। भारी उद्योग मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा था कि समयसीमा का पालन नहीं हो पाने की प्रमुख वजह प्रौद्योगिकी नहीं होना है। इसके अलावा उन्होंने कुशल कामगारों की कमी, उपकरणों और मशीनों के आवश्यक आयात एवं जरूरी पुर्जों की किल्लत को भी बड़ी वजह बताया था।

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दूतावास के अधिकारी ने कहा, ‘भारत सरकार ने देश में बैटरी उत्पादन के लिए 30 गीगावॉट आवर क्षमता से शुरुआत की है। जापानी कंपनियां इसे पूरा करने की प्रौद्योगिकी और ग्रेफाइट, लीथियम तथा कोबाल्ट जैसा कुछ जरूरी कच्चा माल मुहैया करा सकती है। बैटरियों के कई प्रकार होते हैं और कभी-कभार कॉम्बिनेशन काफी जटिल हो जाता है।’

यह जरूरी है क्योंकि भारत बैटरी बनाने, खास तौर पर इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बनाने में आत्मनिर्भर होने की दिशा में बढ़ रहा है। मगर लीथियम, कोबाल्ट और निकल जैसा कच्चा माल जुटाने तथा पूरी तरह देश के भीतर ही आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने में उसे चुनौतियां मिल रही हैं। इसके अलावा भारत को लीथियम आयन बैटरी की 15 गीगावॉट आवर की देसी मांग पूरी करने के लिए बहुत ज्यादा आयात भी करना पड़ता है। इनकी 75 फीसदी आपूर्ति चीन और हॉन्गकॉन्ग से की जाती है। उपकरण बनाने के लिए देश चीन, जर्मनी और दक्षिण कोरिया पर निर्भर है।

इस साल 31 जनवरी को आई आर्थिक समीक्षा में अनुमान जताया गया है कि साल 2027 तक लीथियम आयन बैटरियों की मांग सालाना 23 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ेगी। समीक्षा में कहा गया है, ‘बैटरी की कारगर वैकल्पिक प्रौद्योगिकी नहीं होने से लीथियम-आयन बैटरी में चीन का दबदबा है।’

भारत और जापान पहले ही लीथियम बैटरी प्रौद्योगिकी से जुड़े समझौते तथा साझेदारी कर चुके हैं। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और पैनासोनिक एनर्जी कंपनी लिमिटेड ने भारत में लीथियम आयन बैटरी बनाने के वास्ते साझे उपक्रम का समझौता किया है, जो दोपहिया और तिपहिया वाहनों एवं ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए बैटरी बनाएगा।

मौजूदा समझौते में विस्तार की बात पूछने पर अधिकारी ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि भारत में उन कारखानों में किस तरह की बैटरी बनाई जाएंगी। दौरे से यह भी पता चलेगा। बैटरी में कई सब कंपोनेंट्स होते हैं और अलग-अलग प्रौद्योगिकी की जरूरत होती है। इन कंपनियों के बीच बिजनेस टु बिजनेस मार्केटिंग जरूरी है। इसलिए हम जुलाई के पहले हफ्ते में शिक्षा, संस्कृति, खेल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आर्थिक, व्यापार एवं उद्योग मंत्रालयों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल भेजने वाले हैं।’

इस बारे में विदेश मंत्रालय, वाणिज्य और भारी उद्योग मंत्रालय के साथ-साथ नई दिल्ली स्थित जापानी दूतावास को सवाल भेजे गए। मगर खबर प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिला।

इस समय दुनिया भर में दुर्लभ खनिज की आपूर्ति बिगड़ी हुई है। ऐसे में लीथियम और लीथियम आयन बैटरी आयात के लिए चीन पर निर्भरता घटाने के लिए सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के एनर्जी, रिसोर्सेज ऐंड सस्टेनिबिलिटी विभाग में फेलो श्यामाशिष दास ने सुझाव दिया कि भारत को बैटरी रीसाइक्लिंग, अनुसंधान एवं विकास (आरऐंडडी) एवं प्रौद्योगिकी पर निवेश करना चाहिए एवं बैटरी के दूसरे प्रकार भी तलाशने चाहिए।

दास ने कहा, ‘इसे किफायती बनाने के लिए रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया सुधारनी होगी। अच्छा रीसाइक्लिंग उद्योग भी जरूरी है क्योंकि लीथियम आयन बैटरियों को लेड-एसिड जैसी पुरानी तरह की बैटरी के मुकाबले ज्यादा सावधानी से संभालना होता है। भारत को सोडियम आयन और मेटल एयर जैसी बैटरियों पर भी विचार करना चाहिए ताकि लीथियम पर निर्भरता कम हो। मगर नए प्रकार की बैटरी के लिए अधिक आरऐंडडी की जरूरत है क्योंकि अभी उनमें लीथियम आयन बैटरी जितनी ऊर्जा इकट्ठी नहीं हो पाती।’

First Published - June 17, 2025 | 9:51 PM IST

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