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ट्रंप का नया झटका! अमेरिकी शुल्क से भारतीय ऑटो सेक्टर पर संकट

25% शुल्क से वाहन कलपुर्जा कंपनियों की कमाई पर असर, टाटा मोटर्स समेत कई शेयर लुढ़के

Last Updated- March 27, 2025 | 10:54 PM IST
Automobile Industry stock Pricol

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए कुछ वाहन कलपुर्जों और वाहनों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने की बात कही है। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि इससे भारतीय वाहन कलपुर्जा निर्यातकों के परिचालन मार्जिन में 125-150 आधार अंकों की कमी दिख सकती है। फिलहाल उनका परिचालन मार्जिन 12-12.5 फीसदी है।

इस खबर के प्रभाव में आज वाहन कलपुर्जा बनाने वाली कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई। सोना बीएनडब्ल्यू प्रेसिजन फोर्जिंग का शेयर 5.89 फीसदी गिरावट के साथ 467.15 फीसदी पर बंद हुआ जबकि संवर्धन मदरसन इंटरनैशनल (एसएएमआईएल) का शेयर 2.62 फीसदी गिरावट के साथ 131.4 रुपये पर आ गया। टाटा मोटर्स के शेयर में भी 5.47 फीसदी की गिरावट आई और वह 669.5 रुपये पर बंद हुआ।

टाटा मोटर्स की लग्जरी कार कंपनी जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) के लिए अमेरिका एक महत्त्वपूर्ण बाजार है। साल 2024 में जेएलआर की कुल वैश्विक बिक्री में उत्तरी अमेरिका का योगदान करीब एक तिहाई था और उसमें अकेले अमेरिका का योगदान 22 फीसदी रहा था। टाटा मोटर्स के अलावा अन्य कार कंपनियां अमेरिकी बाजार को कम निर्यात करती हैं, मगर वाहन कलपुर्जा विनिर्माताओं के लिए स्थिति बिलकुल अलग है। उनके लिए अमेरिका पिछले कई वर्षों से प्रमुख निर्यात बाजार रहा है।

वाहन कलपुर्जा विनिर्माताओं के संगठन एक्मा के अनुसार, साल 2024-25 की पहली छमाही में उद्योग ने वैश्विक स्तर पर 11.1 अरब डॉलर के वाहन कलपुर्जों का निर्यात किया। इसमें से करीब 28 फीसदी यानी 3.67 अरब डॉलर मूल्य के कलपुर्जों का निर्यात अमेरिकी बाजार को किया गया।

वाहन कलपुर्जा बनाने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी आरएसबी ग्लोबल ने कहा कि इस शुल्क के कारण अमेरिका में आखिरकार वाहनों की मांग प्रभावित होगी। अमेरिका में कंपनी के विनिर्माण कारखाने भी मौजूद हैं।
आरएसबी ग्लोबल के कार्यकारी निदेशक रजनीकांत बेहेरा ने कहा, ‘ट्रंप शुल्क के प्रभाव का सटीक आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन हमें लगता है कि इससे वाहनों की मांग में अस्थायी तौर पर गिरावट आ सकती है। कुछ कंपनियों को अमेरिका और मेक्सिको में विस्तार योजनाओं पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है।’

मूडीज ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा था कि एसएएमआईएल अमेरिका से करीब 20 फीसदी आय अर्जित करती है। इसमें मेक्सिको जैसी जगहों पर कारोबार से प्राप्त आय भी शामिल है। कंपनी शुल्क के कारण बढ़ी हुई लागत का बोझ ग्राहकों के कंधों पर डाल सकती है।

क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी ने कहा, ‘भारत के वाहन कलपुर्जा क्षेत्र को निर्यात से करीब 20 फीसदी आय प्राप्त होती है। इसमें से 27 फीसदी आय अकेले अमेरिकी बाजार से प्राप्त होती है। शुल्क का असर अप्रत्यक्ष आपूर्तिकर्ताओं की परिचालन लाभप्रदता पर भी दिखेगा।’ हलांकि उन्होंने यह भी कहा कि जिन कंपनियों के पास अमेरिका में विनिर्माण कारखाने मौजूद हैं वे बेहतर क्षमता उपयोगिता के जरिये कुछ हद तक भरपाई कर सकती हैं।

उद्योग विश्लेषकों का यह भी मानना है कि लागत में वृद्धि का फायदा भी मिलेगा क्योंकि भारतीय कंपनियों की विनिर्माण लागत कम है। यूरोपीय संघ, जापान एवं अन्य देश जवाबी शुल्क की तैयारी कर रहे हैं, मगर भारत सरकार के अधिकारियों ने कहा कि फिलहाल अमेरिकी शुल्क के प्रभाव का आकलन किया जा रहा है। सरकार के शुरुआती आकलन से पता चलता है कि पूरी तरह निर्मित वाहनों के निर्यात पर सीमित प्रभाव पड़ेगा जबकि वाहन कलपुर्जों के निर्यात पर अधिक प्रभाव पड़ सकता है।

जाटो डायनेमिक्स के अध्यक्ष रवि भाटिया का मानना है कि अमेरिकी शुल्क का असर कई देशों पर पड़ेगा और भारत कोई अपवाद नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अधिकतर कलपुर्जे मूल उपकरण विनिर्माताओं (ओईएम) के डिजाइन पर आधारित हैं। इसलिए लागत में वृद्धि को आगे बढ़ा दिया जाएगा। अमेरिका में स्थानीय स्तर पर इसका विकल्प उपलब्ध कराने समय लगेगा।’

असित सी मेहता इन्वेस्टमेंट इंटरमिडिएट्स की अनुसंधान विश्लेषक (वाहन एवं एफएमसीजी) मृण्मयी जोगलेकर ने कहा कि अमेरिकी बाजार से करीब 43 फीसदी आय अर्जित करने वाली सोना कॉमस्टार और एसएएमआईएल जैसी कंपनियां अधिक प्रभावित हो सकती हैं क्योंकि शुल्क मुख्य तौर पर इंजन, ट्रांसमिशन, पावरट्रेन एवं इलेक्ट्रिकल उपकरणों पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि जेएलआर के कारण टाटा मोटर्स को भी कुछ चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है।

जेएलआर के मुख्य वित्तीय अधिकारी रिचर्ड मोलिनेक्स ने हाल में तीसरी तिमाही के नतीजों पर विश्लेषकों से बातचीत में कहा था कि कंपनी को एक ऐसा बाजार नजर आ रहा है जो चुनौतीपूर्ण और अप्रत्याशित दोनों है। उन्होंने कहा था, ‘शुल्क और वैश्विक मुक्त व्यापार में धीरे-धीरे कमी आना चिंता का विषय है। उपभोक्ता मांग और सरकारी उत्सर्जन नियमों के बीच का अंतर भी चिंताजनक है।’ जेएलआर की अमेरिकी बाजार में बिक्री इस साल अब तक 25 फीसदी बढ़ी है। रेंज रोवर और डिफेंडर जैसे जेएलआर मॉडल अमेरिकी ग्राहकों को खूब पसंग आ रहे हैं।

विंडमिल कैपिटल के वरिष्ठ निदेशक एवं मैनेजर नवीन केआर ने कहा कि भारत ने 2024 में वैश्विक स्तर पर करीब 6,70,000 वाहनों का निर्यात किया। निर्यात की हिस्सेदारी अब वाहनों की कुल घरेलू बिक्री का 15-16 फीसदी तक पहुंच चुकी है।

मारुति सुजूकी और किया मोटर्स जैसी कार कंपनियां वृद्धि की अपनी प्रमुख रणनीति के तहत निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। पहले मुख्य तौर पर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशियाई बाजारों को वाहनों का निर्यात किया जाता था। मगर अब भारत में विनिर्मित वाहन जापान जैसे विकसित बाजारों तक पहुंच रहे हैं। इससे बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा का पता चलता है।

नवीन ने बताया कि भारत का आयात शुल्क ढ़ांचा अपेक्षाकृत कम- वाहन कलपुर्जों के लिए 5-15 फीसदी के बीच- है। इससे शुल्क के प्रभाव से निपटने में भारत बेहतर स्थिति में है। भारतीय आपूर्तिकर्ताओं की लागत अभी भी मैक्सिको या चीन जैसे देशों के मुकाबले कम बनी रह सकती है।

दिल्ली के थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यात्री कारों पर शुल्क से बचने के लिए आयात शुल्क में किसी भी तरह की कमी किए जाने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि भारत से अमेरिका को कारों का निर्यात काफी कम है। भारत से अमेरिका को 89 लाख डॉलर यानी महज 0.13 फीसदी यात्री कारों का ही निर्यात किया जाता है। मगर वाहन कलपुर्जा के मामले में अमेरिकी बाजार को निर्यात काफी अधिक है। वाहल कलपुर्जा के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 29.1 फीसदी यानी 2.1 अरब डॉलर है। हालांकि शुरुआत में यह चिंताजनक दिख सकता है, लेकिन करीबी नजर डालने पर सभी के लिए समान अवसर दिखेगा। (साथ में नई दिल्ली से श्रेया नंदी)

First Published - March 27, 2025 | 10:54 PM IST

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