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लोक सभा चुनाव 2024: युवा मतदाताओं को आकर्षक पैरोडी सुनाकर बंगाल में वजूद बचाने चली माकपा

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अब इस बात को अच्छी तरह से समझ चुकी है कि युवाओं को साधना जरूरी है और इसलिए पार्टी अब विभिन्न साधनों का सहारा ले रही है।

Last Updated- May 05, 2024 | 10:54 PM IST
CPI(M) tries to save its existence in Bengal by telling attractive parody to young voters युवा मतदाताओं को आकर्षक पैरोडी सुनाकर बंगाल में वजूद बचाने चली माकपा

युवा और नए उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारने से लेकर आकर्षक पैरोडी गाने और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) युवा मतदाताओं को लुभा रही है। पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच द्विपक्षीय लड़ाई में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास कर रही है।

करीब 34 वर्षों तक पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज रहने वाला मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा साल 2019 के लोक सभा चुनाव और साल 2021 के विधान सभा चुनावों में एक सीट के लिए तरस गया। पार्टी अब पुनरुद्धार की बाट जोह रही है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी इस बार कांग्रेस और अन्य वाम दलों के साथ मिलकर लोक सभा चुनाव लड़ रही है। पश्चिम बंगाल की 42 लोक सभा सीटों में से वाम दल 30 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी 23 और कांग्रेस 12 सीटों पर मैदान में है। पार्टी के वरिष्ठ नेता समिक लाहिड़ी ने कहा, ‘इस बार हमने ज्यादातर नए चेहरे चुनावी मैदान में उतारे हैं। मुश्किल से सिर्फ तीन ही ऐसे उम्मीदवार हैं जिनकी उम्र 60 साल या उससे अधिक है।’

पहुंच बेहतर करने का प्रयास

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अब इस बात को अच्छी तरह से समझ चुकी है कि युवाओं को साधना जरूरी है और इसलिए पार्टी अब विभिन्न साधनों का सहारा ले रही है। पिछले विधान सभा चुनावों से पहले पार्टी ने ब्रिगेड परेड मैदान में अपनी रैली के दौरान लोकप्रिय गीत टुम्पा सोना की पैरोडी लेकर उतरी। इस गीत से भाजपा और तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधा गया और यह गीत तेजी से वायरल हो गया।

इस बार पार्टी ने लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एआई से बनी न्यूज प्रजेंटर समता को मैदान में उतारा है। समता का अर्थ समानता है। पार्टी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर साप्ताहिक समाचार बुलेटिन आते हैं और फिर इन्हें व्हाट्सऐप ग्रुप पर भी प्रसारित किया जाता है।

यह परियोजना शुरू करने वाले समूह के मुख्य सदस्य लाहिड़ी कहते हैं, ‘हमारी लड़ाई समानता के लिए है। सामाजिक और आर्थिक समानता जिस पर बीते 10 वर्षों से काफी असर पड़ा है और इसलिए हमने इसका नाम समता रखा है।’

एआई का इस्तेमाल समाचार बुलेटिन तैयार करने, अभियान की सामग्री जुटाने आदि के लिए किया जा रहा है। लाहिड़ी ने कहा, ‘अन्य राजनीतिक दलों ने पीआर एजेंसियों की नियुक्ति की है, हम इसे वहन नहीं कर सकते हैं। इससे पेशेवरों के काम करवाने में मदद मिलती है मगर उसके लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत पड़ती है।’

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं ने ही इस संदेश को आगे फैलाने का बीड़ा उठाया है। सोशल मीडिया के करीब 15-16 कोर ग्रुप हैं, जो साल 2014 के लोक सभा चुनावों के दौरान बने 6-7 से कोर ग्रुप से अधिक हैं। बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के वाम विचारधारा वाले लोग इस कोर ग्रुप में मदद कर रहे हैं।

एक महीने पहले शुरू की गई समता के बारे में लाहिड़ी ने कहा कि समता के लिए अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। कुछ समाचार बुलेटिनों को तो 5 लाख से ज्यादा बार देखा गया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पश्चिम बंगाल के सचिव मोहम्मद सलीम ने बताया कि पार्टी हमेशा कम लागत और ज्ञान आधारित अभियानों में विश्वास रखती है। नाटक, गाने, दीवार भित्ति चित्र शुरू से कम्युनिस्ट पार्टी के अभियान का हिस्सा रहा है। सलीम ने कहा, ‘हम आधुनिक तकनीक के साथ पुरानी चीजों को पुनर्जीवित कर रहे हैं।’

एआई, दोधारी तलवार?

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा एआई का इस्तेमाल करने पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने आलोचना की है। उनका दावा है कि यह वह पार्टी थी जिसने कंप्यूटर का विरोध किया था। मगर पार्टी का कहना है कि उसने कभी कंप्यूटर का विरोध नहीं किया बल्कि कंप्यूटर के कारण नौकरियों के नुकसान का विरोध किया था।

1970 के दशक में बैंकिंग और बीमा कर्मचारियों ने नौकरियों की सुरक्षा के लिए कंप्यूटर का विरोध शुरू किया था, जिसे पार्टी ने समर्थन दिया था। लेकिन लाहिड़ी कहते हैं, ‘हमने कभी कंप्यूटर का विरोध नहीं किया। हम कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के खिलाफ थे।’

राजनीतिक पर्यवेक्षक सब्यसाची बसु रे चौधरी ने कहा कि किसी भी समय में नई तकनीक के आने से पारंपरिक उत्पादन प्रणाली को झटका लगता है। उन्होंने कहा, ‘मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जिस एआई का उपयोग कर रही है वह भी एक दोधारी तलवार की तरह है। अगले 5 से 10 वर्षों में नौकरियों पर इसका भी प्रभाव पड़ेगा।’

पुनरुद्धार पर नजर

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे बड़ी हार साल 2019 के लोक सभा चुनावों में मिली, जब तृणमूल विरोधी मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। साल 2014 में माकपा की वोट हिस्सेदारी 23 फीसदी थी, जो साल 2019 में घटकर 6.3 फीसदी रह गई।

First Published - May 5, 2024 | 10:54 PM IST

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