facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

3,500 करोड़ का कारोबार, 60,000 नौकरियां! फिर भी गुमनाम क्यों है दिल्ली का मादीपुर फुटवियर उद्योग?

दिल्ली में लेडीज फुटवियर मार्केट के बारे में सोचते समय करोल बाग का नाम जरूर जेहन में आता है। लेकिन यहां मिलने वाले ज्यादातर फुटवियर मादीपुर में ही बनते हैं।

Last Updated- March 31, 2025 | 9:26 AM IST
Footware
फोटो क्रेडिट: Pixabay

दिल्ली में एक ऐसा उद्योग चल रहा है, जिसकी पहचान भले बड़ी न बन पाई हो। लेकिन यहां बन रहे उत्पादों का इस्तेमाल करोड़ों लोग कर रहे हैं। यहां तक कि कई ब्रांड भी इस उद्योग में अपना माल बनवाते हैं। हम बात कर रहे हैं कि शादी और पार्टियों में खासकर महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले फैंसी और कढ़ाईदार फुटवियर की। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि ये फुटवियर दिल्ली के मादीपुर स्थित झुग्गी झोपड़ी बस्ती (जे जे कॉलोनी) में बन रहे हैं। दिल्ली में लेडीज फुटवियर मार्केट के बारे में सोचते समय करोल बाग का नाम जरूर जेहन में आता है। लेकिन यहां मिलने वाले ज्यादातर फुटवियर मादीपुर में ही बनते हैं।

मादीपुर हैंडक्राफ्टेड फुटवियर (हाथ से बने) का एक बड़ा केंद्र है। हालांकि मादीपुर का ये उद्योग अपनी बड़ी पहचान को तरस रहा है और सकरी गलियों में बहुमंजिला घरों में छोटे छोटे कमरों में चल रहा ये उद्योग सरकार से मदद की आस लगाए बैठा है। जिससे कि यह संगठित होकर देश में अपनी बड़ी पहचान बना सके। साथ ही यहां कारोबार तेजी से बढ़ सके। संगठित न होने की वजह से मादीपुर के उद्यमियों को उतना मार्जिन नहीं मिल पा रहा है। जितना मिलना चाहिए। यह उद्योग कुशल कारीगरों की कमी से भी जूझ रहा है।

रोजाना बनते हैं लाखों जूते-चप्पल

मादीपुर में छोटे-छोटे कमरों में चलने इस उद्योग में रोजाना लाखों जोड़ी जूते चप्पल बन रहे हैं। मादीपुर फुटवियर मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष और मायो नाम से फुटवियर बनाने वाले जयंत लाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मादीपुर में छोटे-बड़े मिलाकर 5,000 फुटवियर निर्माता हैं। जिनमें रोजाना लाखों जोड़ी जूते-चप्पल बन रहे हैं। जनपथ ब्रांड से फुटवियर बनाने वाली रिया चावला कहती हैं कि यहां रोजाना 3 से 4 लाख जोड़ी जूते चप्पल बनते हैं। सालाना यहां 8 से 10 करोड़ जोड़ी जूते चप्पल बनते हैं।

ट्रस्ट इंटरप्राइजेज के मालिक मोहम्मद वकार कहते हैं कि मादीपुर में बनने वाले ज्यादातर फुटवियर की कीमत 250 से 5,00 रुपये के बीच रहती है। हालांकि यहां इससे महंगे फुटवियर भी बनते हैं, पर इनकी मात्रा सीमित है। चावला के मुताबिक यहां 5,000 रुपये तक कीमत के भी कुछ जूते-चप्पल बनाए जाते हैं। मादीपुर के फुटवियर उद्यमियों के मुताबिक यहां के फुटवियर उद्योग का सालाना कारोबार 3,000 से 3,500 करोड़ रुपये के बीच हो सकता है। मादीपुर के ही फुटवियर उद्यमी हिमांशु ने बताया कि यहां न सिर्फ करोड़ों रुपये का कारोबार होता है, बल्कि यहां हजारों की संख्या में रोजगार भी लोगों को मिल रहा है। मादीपुर के फुटवियर उद्योग से 50 से 60 हजार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिल रहा है।

बनते हैं हैंडमेड फैंसी लेडीज फुटवियर

मादीपुर के फुटवियर उद्यमी मुकेश गोयल ने बताया कि भले ही मादीपुर के फुटवियर उद्योग की बड़ी पहचान न बन पाई हो। लेकिन यह हैंडमेड फुटवियर का बड़ा केंद्र है। यहां बनने वाले जूते-चप्पलों में मशीन का ना बराबर उपयोग होता है। यहां ज्यादातर काम हाथ से किया जाता है। रिया चावला कहती हैं कि हाथ से बनने के कारण ही यहां के उद्योग में प्रदूषण नहीं होता है। इसलिए इस लाल डोरे वाले क्षेत्र में हमें जूते-चप्पल बनाने की अनुमति मिली है। हिमांशु ने कहा कि हाथ से बनने के कारण ही यहां के जूते-चप्पल ज्यादा पसंद किए जाते हैं। इसके साथ ही ये जूते-चप्पल ज्यादा चलते भी हैं। हैंडमेड के कारण ये दिखने में अच्छे लगते हैं। एक जूता-चप्पल बनने के दौरान 6 से 8 हाथों से होकर गुजरता है। मादीपुर के अलावा मुंबई ही हैंडमेड फुटवियर का बड़ा केंद्र है। मादीपुर में ज्यादातर जूते-चप्पल महिलाओं के लिए बनते हैं।

सिम्प्लेक्स फुटवियर के सुनील गर्ग ने कहा कि मादीपुर में बनने वाले 80 से 90 फीसदी फुटवियर महिलाओं के लिए होते हैं। यहां फैंसी और कढ़ाई वाले फुटवियर बड़े पैमाने पर बनते हैं। शादी और पार्टियों में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले हैंडमेड फुटवियर का नाता कहीं न कहीं मादीपुर से जुड़ा होता है। यहां दुल्हन की चप्पल और एथनिक, फैशनेबल लेडीज फुटवियर बनाए जातेहैं। जयंत लाल ने कहा कि यहां बनने वाले फुटवियर में सिंथेटिक लेदर का उपयोग ज्यादा है। महिलाओं के फुटवियर के साथ ही पुरुषों के लिए शादी, पार्टी और ऑफिस में पहने जाने वाले फॉर्मल हैंडमेड जूते भी यहां बनते हैं। लेकिन महिलाओं की तुलना में इनकी मात्रा कम है।

कई प्रमुख ब्रांड भी बनवाते हैं फुटवियर

भले ही मादीपुर के फुटवियर उद्योग की बड़ी पहचान न पाई हो। लेकिन यहां लिबर्टी, पैरागॉन, बाटा जैसे अन्य बड़े ब्रांड भी हैंडमेड फुटवियर बनवाते हैं। हिमांशु कहते हैं कि मादीपुर में बड़े बड़े ब्रांड भी कुछ हैंडमेड खासकर लेडीज फुटवियर बनवाते हैं। मादीपुर के फुटवियर उद्यमियों का कहना है कि मशहूर फुटवियर ब्रांड यहां फुटवियर बनवाने के बाद उन पर अपने ब्रांड का ठप्पा लगाकर और कुछ बदलाव कर मार्केट में बेचते हैं। चावला कहती हैं कि यहां से हैंडमेड फुटवियर का सीधे निर्यात तो नहीं होता है। लेकिन बड़े उद्यमी निर्यात गुणवत्ता के हैंडमेड फुटवियर बनवाते जरूर हैं। हालांकि इनकी मात्रा बहुत सीमित रहती है।

समय के साथ कदम ताल

मादीपुर के फुटवियर उद्यमी भले ही छोटी जगह में अपना उद्योग चला रहे हो। लेकिन वे बाजार के ट्रेंड से भलीभांति वाकिफ रहते हैं। बाजार में जिस तरह के जूते-चप्पलों की मांग रहती है, वे अपने कारखानों में उसी तरह के जूते चप्पल बनाने लगते हैं। मादीपुर के फुटवियर उद्यमी मोहम्मद वकार कहते हैं कि फुटवियर में फैशन इटली से सेट होता है। इसलिए हम लोग वहां के फैशन को देखते हुए अपने को ढालने की कोशिश करते रहते हैं। नये बदलाव के बारे में चावला कहती हैं कि बहुत पहले कढ़ाई वाले लेडीज फुटवियर चलते थे। हालांकि बीच में यह फैशन चला गया था। लेकिन अब फिर से इनका ट्रेंड चल रहा है। इसलिए मादीपुर के उद्यमी भी कढ़ाई वाली चप्पलें बना रहे हैं।

मादीपुर के फुटवियर उद्यमी सुनील गर्ग का कहना है कि आज कल लोग आरामदायक जूते-चप्पलें पहनना ज्यादा पसंद करते हैं। इसका ख्याल रखते हुए हम लोग भी आरामदायक जूते चप्पल बना रहे हैं। जूते-चप्पलों को आरामदायक बनाने के लिए कुशन का ज्यादा उपयोग करते हैं।

औद्योगिक क्षेत्र घोषित हो

मादीपुर के फुटवियर उद्यमियों का कहना है यहां हैंडमेड फुटवियर बड़े पैमाने पर बनने के बावजूद यहां उद्योग के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है। जयंत लाल ने कहा कि इतने बड़े उद्योग की सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि यह असंगठित तौर पर छोटे छोटे कमरों में चल रहा है। सरकार को इस उद्योग को संगठित करने के लिए अलग जगह बसाने की जरूरत है। चूंकि उद्योग बहुमंजिला इमारतों में चल रहा है। ऐसे में इस उद्योग के लिए फ्लैटेड फैक्टरी बनाई जा सकती हैं। इसके लिए पीरागढ़ी, कुंडली व कंझावला आदि क्षेत्रों में भूमि आवंटन की जानी चाहिए। जो जगह खरीद सकते हैं, उन्हें रियायती दर पर जगह दी जाए और जो खरीदने में सक्षम नहीं है, उन्हें किराये के आधार पर सब्सिडी वाले औद्योगिक शेड बनाकर आवंटित किए जाएं। मोहम्मद वकार कहते हैं कि मादीपुर फुटवियर उद्योग सकरी व तंग गलियों में छोटे छोटे कमरों में चल रहा है। इसलिए हमें हमारे उत्पादों के सही दाम भी नहीं मिलते हैं और पहचान की कमी के कारण दूसरे राज्यों के बड़े खरीदार भी सीधे यहां खरीद करने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में अलग से औद्योगिक क्लस्टर बनने से न केवल खरीदार बढ़ेंगे, बल्कि हमारा मार्जिन भी सुधरेगा, जो अभी 8 से 10 फीसदी के बीच है।

रिया चावला ने कहा कि जिस तरह नोएडा में फुटवियर डिजाइन व डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट है, उसी तर्ज पर मादीपुर के उद्यमियों के लिए भी यह  बनना चाहिए। ताकि यहां के उद्यमी भी फुटवियर में नये नये डिजाइन का उपयोग कर सकें। इसके बनने से टेस्टिंग लैब की सुविधा मिलने से यह उद्योग और आधुनिक हो सकेगा। गर्ग ने कहा कि देश में उत्पाद विशेष को बढ़ावा देने के लिए एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना चल रही है। चूंकि मादीपुर में हैंडमेड फुटवियर बनते हैं। जिनकी अपनी अलग पहचान होती है। इसलिए मादीपुर के इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यहां के फुटवियर को ओडीओपी योजना में शामिल किया जाना चाहिए। मादीपुर को औद्योगिक क्षेत्र भी घोषित किया जाए।

कॉमन फैसिलिटी सेंटर की मांग

मादीपुर के फुटवियर उद्यमी केंद्र व दिल्ली सरकार से कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) की मांग कर रहे हैं। मादीपुर के फुटवियर उद्यमी मुकेश गोयल ने कहा कि मादीपुर के फुटवियर उद्यमियों के लिए एक सीएससी की स्थापना की जानी चाहिए। जिससे कि यहां के उद्यमियों को डिजाइनिंग, गुणवत्ता नियंत्रण और कौशल विकास की सुविधा मिल सके। हिमांशु ने बताया कि मादीपुर में फुटवियर निर्माताओं के लिए जगह कम है और इन निर्माताओं को कच्चे माल को रखने में भी समस्या आती है। जिससे कम मात्रा में कच्चा माल मजबूरी में मंगाना पड़ता है। जिससे माल की लागत बढ़ जाती है।

इस समस्या का निदान सीएफसी के जरिये हो सकता है। इस सीएफसी में कच्चे माल को रखने के लिए रॉ मटेरियल बैंक बनाया जा सकता है। जहां लोग बड़ी मात्रा में कम भाव और किफायती भाड़े के साथ कच्चा माल मंगाकर रख सकते हैं। इससे उद्योग की लागत में कमी आ सकती है।

First Published - March 30, 2025 | 10:36 PM IST

संबंधित पोस्ट