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स्पेस सेक्टर में भारत लंबी छलांग को तैयार, ISRO के BAS मिशन को प्राइवेट कंपनियां से मिलेगी पावर

भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन 2026 में लॉन्च होने वाला है। इस मिशन की सफलता के लिए प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी महत्वपूर्ण हो सकती है।

Last Updated- March 20, 2025 | 12:34 PM IST
ISRO
Representative image

अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर 286 दिनों की अनिश्चितता और 4,576 बार पृथ्वी की परिक्रमा करने के बाद आखिरकार फ्लोरिडा तट के पास सुरक्षित लैंड कर गए। दोनों अंतरिक्ष यात्री स्पेसएक्स के कैप्सूल में वापस लौटे, जबकि उन्होंने अपनी यात्रा Boeing के नए Starliner यान से शुरू की थी। इस मिशन ने एक बार फिर अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को दर्शाया है।

भारत में भी निजी स्पेस सेक्टर को बढ़ावा देने की जरूरत

भारत में भी अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है। खासतौर पर ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ (Bharatiya Antriksh Station) को 2035 तक तैयार करने और 2040 तक भारतीयों को चंद्रमा पर भेजने की योजना के चलते यह और जरूरी हो गया है।

इसके अलावा, भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन 2026 में लॉन्च होने वाला है। इस मिशन की सफलता के लिए प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी महत्वपूर्ण हो सकती है।

स्पेस सेक्टर के दो प्रमुख क्षेत्र – अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम

  • अपस्ट्रीम सेक्टर – इसमें रॉकेट और सैटेलाइट निर्माण, परीक्षण, लॉन्चिंग, अंतरिक्ष मिशनों की निगरानी और स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
  • डाउनस्ट्रीम सेक्टर – इसमें सैटेलाइट आधारित सेवाएं, डेटा विश्लेषण और अन्य तकनीकी समाधान आते हैं, जो विभिन्न उद्योगों को व्यावसायिक लाभ पहुंचाते हैं।

भारत में 250 से ज्यादा स्पेस स्टार्टअप्स सक्रिय

फिलहाल, भारत में 250 से अधिक स्टार्टअप्स स्पेस टेक्नोलॉजी में काम कर रहे हैं, जो अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं।

ISRO के पूर्व चेयरमैन और विक्रम साराभाई प्रोफेसर एस. सोमनाथ का कहना है, “अपस्ट्रीम सेक्टर में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ रही है, जबकि एप्लिकेशन सेक्टर पहले से मजबूत है। यदि भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन को निजी क्षेत्र से जोड़ना है, तो इसे आर्थिक रूप से लाभदायक बनाना होगा। तभी निजी क्षेत्र में वास्तविक विकास संभव होगा।”

सरकार और ISRO लगातार निजी कंपनियों को अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि आने वाले वर्षों में भारत की स्पेस इंडस्ट्री और मजबूत हो सके।

भारतीय स्पेस सेक्टर को बढ़ाने के लिए सरकार ने उठाए अहम कदम, नई नीतियों से मिलेगा फायदा

भारतीय स्पेस सेक्टर को तेज़ी से बढ़ाने के लिए सरकार ने New Space Policy 2023, FDI Policy 2024, Indian Telecommunication Act 2023 और जियो-स्पेशियल डेटा पॉलिसी लागू की है। इन नीतियों का लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को मौजूदा 9 अरब डॉलर से बढ़ाकर 44 अरब डॉलर तक पहुंचाना है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा कि अब सबसे बड़ी चुनौती डिमांड (मांग) बढ़ाना है। जब तक बाजार में ज्यादा मांग नहीं होगी, तब तक बड़े निवेशक इस सेक्टर में पैसा लगाने से बचेंगे। स्टार्टअप कंपनियां इनोवेशन और नई तकनीकों पर फोकस कर रही हैं, जबकि बड़े स्पेस प्रोजेक्ट्स के लिए भारी निवेश की जरूरत होती है। इसमें जोखिम भी ज्यादा होता है, इसलिए स्टार्टअप्स के लिए यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण है।

FDI को लेकर सरकार ने दी रियायतें

पिछले साल सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में विदेशी निवेश (FDI) को लेकर नई रियायतें दीं। अब सैटेलाइट कंपोनेंट्स और सिस्टम में 100% FDI ऑटोमैटिक रूट से, सैटेलाइट निर्माण और ऑपरेशन में 74% और लॉन्च व्हीकल और स्पेसपोर्ट्स में 49% तक विदेशी निवेश की अनुमति है। इसके अलावा, सरकार ने ₹1,000 करोड़ का वेंचर कैपिटल फंड भी लॉन्च किया है, जिससे निजी कंपनियों, स्टार्टअप्स और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

SpaceX जैसी सफलता के लिए अभी लंबा सफर बाकी

भारतीय स्पेस एसोसिएशन (ISPA) के महानिदेशक ए.के. भट्ट के मुताबिक, भारत अभी अपस्ट्रीम स्पेस सेक्टर में शुरुआती चरण में है और SpaceX जैसी सफलता पाने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा। उन्होंने बताया कि अब तक सिर्फ दो निजी लॉन्च – स्काईरूट और अग्निकुल – ही सफलतापूर्वक किए गए हैं। इसके अलावा, अपस्ट्रीम स्पेस मार्केट भी सीमित है।

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था करीब 470 अरब डॉलर की है, जिसमें 80-90% हिस्सेदारी डाउनस्ट्रीम सेक्टर की है। भारत में भी 8.4 अरब डॉलर के स्पेस सेक्टर का करीब 80% हिस्सा इसी डाउनस्ट्रीम सेवाओं से आता है। भट्ट ने सुझाव दिया कि इसरो को निजी कंपनियों की भागीदारी को बढ़ाना चाहिए, ताकि वे अपनी क्षमताओं का विकास कर सकें।

भारत के स्पेस स्टार्टअप्स की उड़ान, निजी कंपनियां बना रहीं नए रिकॉर्ड

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी स्टार्टअप्स तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। Skyroot Aerospace, Agnikul Cosmos और Pixxel जैसी कंपनियां रॉकेट बनाने, सैटेलाइट लॉन्च करने और नई स्पेस टेक्नोलॉजी विकसित करने पर काम कर रही हैं।

2022 में Skyroot Aerospace ने Vikram-S रॉकेट लॉन्च कर भारत की पहली निजी रॉकेट लॉन्चिंग का रिकॉर्ड बनाया था। अब 2024 के मध्य तक कंपनी का पहला बड़ा मिशन Vikram-1 लॉन्च किया जाएगा, जिसमें 480 किलोग्राम का पेलोड 500 किमी की कक्षा में भेजा जाएगा।

वहीं, Agnikul Cosmos ने मई 2024 में Agnibaan रॉकेट लॉन्च किया, जो भारत में किसी निजी लॉन्चपैड ‘धनुष’ से छोड़ा गया पहला रॉकेट था। यह भारत की दूसरी निजी रॉकेट लॉन्चिंग रही।

भारत की नजर 44 अरब डॉलर के वैश्विक अंतरिक्ष बाजार पर

भारत का लक्ष्य 2032 तक 44 अरब डॉलर (लगभग 3.6 लाख करोड़ रुपये) के वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना है। Skyroot Aerospace के फाउंडर पवन कुमार चंदना का कहना है कि भारतीय स्टार्टअप्स अब सिर्फ टेस्ट मिशन नहीं, बल्कि कमर्शियल मिशन पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “अगला बड़ा कदम सरकारी और निजी मानव अंतरिक्ष मिशनों में भागीदारी होगा।”

भारत में और भी कई कंपनियां स्पेस टेक्नोलॉजी में इनोवेशन कर रही हैं—

  • Manastu Space – सैटेलाइट्स और स्पेसक्राफ्ट के लिए ग्रीन ईंधन विकसित कर रहा है।
  • Digantara – अंतरिक्ष में मलबे की रियल-टाइम ट्रैकिंग करने वाला Space Situational Awareness (SSA) स्टार्टअप।
  • OrbitAID – स्पेसक्राफ्ट के डॉकिंग और ईंधन भरने की नई तकनीक बना रहा है।
  • InspeCity – स्पेस में कचरा हटाने के लिए लेजर टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है।
  • Forge Innovation & Ventures – ऑटोनॉमस डॉकिंग और प्रोक्सिमिटी ऑपरेशन में विशेषज्ञता रखता है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों की बढ़ती भागीदारी

भारत के अंतरिक्ष मिशनों में अब प्राइवेट कंपनियों की भूमिका बढ़ती जा रही है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) प्रमुख एस. सोमनाथ ने बताया कि ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ (Bharatiya Antriksh Station) कार्यक्रम के तहत निजी कंपनियों को न केवल निर्माण में सहयोग देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, बल्कि वे माइक्रोग्रैविटी रिसर्च में भी अहम भूमिका निभा सकती हैं। इसके अलावा, ISRO वैश्विक सहयोग को भी बढ़ावा देने की योजना बना रहा है।

PPP मॉडल को मिल रहा बढ़ावा

सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के जरिए अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों को शामिल कर रही है। हाल ही में NewSpace India Limited (NSIL) ने HAL-L&T कंसोर्टियम के साथ एक करार किया है, जिसके तहत 5 पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV-XL) बनाए जाएंगे। इस साझेदारी के तहत पहला पूरी तरह से स्वदेशी PSLV इस साल की दूसरी तिमाही में लॉन्च होने की उम्मीद है।

ISRO अपने LVM3 PPP मॉडल के जरिए हेवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्राइवेट कंपनियों के साथ काम कर रहा है। इसी तरह, IN-SPACe का Build-Own-Operate मॉडल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट्स (EOS) के जरिए कृषि, आपदा प्रबंधन, शहरी योजना और रक्षा क्षेत्रों में नई संभावनाएं खोलेगा।

इन सभी पहलों के साथ, भारत का निजी क्षेत्र अब अंतरिक्ष अनुसंधान और तकनीकी विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की ओर बढ़ रहा है। इससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को और गति मिलने की उम्मीद है।

First Published - March 20, 2025 | 12:34 PM IST

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