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बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार का
आ​खिरी मौका : लॉरेंस समर्स

विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों को न केवल बड़ा बल्कि दमदार बनने की जरूरत है।

Last Updated- September 25, 2023 | 10:10 PM IST
This is last clear chance for MDBs: Ex-US Treasury secy Lawrence Summers

अमेरिका के वित्त मंत्री रह चुके प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लॉरेंस समर्स ने कहा है कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों को न केवल बड़ा बल्कि दमदार बनने की जरूरत है। बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार के लिए गठित विशेषज्ञ समूह के सह-अध्यक्ष समर्स ने कहा कि इसे 21वीं सदी के हालात के हिसाब से आगे बढ़ने की जरूरत है।

रुचिका चित्रवंशी से टेलीफोन पर बातचीत में समर्स ने कहा कि भारत की जी20 अध्यक्षता को ऐसे समय के लिए याद किया जाएगा जब दुनिया ने 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए कदम बढ़ाया था। मुख्य अंश:

बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार के लिहाज से जी20 दिल्ली घोषणा पत्र के बारे में आप क्या सोचते हैं?

मैं दो स्तरों पर दिल्ली घोषणा पत्र से काफी उत्साहित हूं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया जल रही है। इसलिए यह आम ढर्रे पर काम करने का नहीं ब​ल्कि ठोस पहल करने का समय है। दिल्ली घोषणापत्र में हमारे विशेषज्ञ समूह की सिफारिशों को जिस तरीके से आगे रखा गया है, उसका मैं स्वागत करता हूं।

मुझे उम्मीद है कि जी20 से आईएमएफ, विश्व बैंक और सीओपी बैठकों की ओर रुख करते समय हमें लगातार प्रगति दिखेगी। हमारे पास अ​धिक समय नहीं है। देशों के रुख और पूंजी प्रवाह में पर्याप्त बदलाव के बिना नतीजे खतरनाक होंगे। भारत के नेतृत्व को ऐसे समय के लिए याद किया जाएगा जब दुनिया ने गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए कदम बढ़ाया था।

आपकी रिपोर्ट के दूसरे खंड से हम और क्या उम्मीद कर सकते हैं?

दूसरे खंड में वित्त के तौर-तरीकों और 2030 तक उधारी को तिगुना करने के बुनियादी लक्ष्य के बारे में विस्तार से बताया गया है। हमें इन संस्थानों को न केवल बड़ा बल्कि दमदार एवं बेहतर भी बनाने की जरूरत है। अगर हमें चुनौतियों से निपटना है तो उन्हें 21वीं सदी के समय के अनुसार आगे बढ़ना होगा।

क्या आपको लगता है कि निजी क्षेत्र से पूंजी जुटाना कठिन होगा?

कोई भी महत्त्वपूर्ण चीज कभी भी आसान नहीं होती है। मगर हम दुनिया को तेजी से साथ आते हुए देख रहे हैं। हितधारक जिस तरीके से साथ आए हैं, उसे देखकर मैं काफी उत्साहित हूं।

बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार की राह में प्रमुख चुनौतियां क्या हैं?

अपनी ​स्थिति को बकरार रखना अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती है। दुनिया भर में अमेरिका और चीन के बीच तनाव में भी चुनौतियां निहित हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध की कीमत भी एक चुनौती है, मगर मैं पूरी तरह आशा​न्वित हूं।

आपको लगता है कि 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए अलग बहुपक्षीय संस्थान की दरकार है?

नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता है। मैं समझता हूं कि मौजूदा संस्थानों में कर्मचारियों की जबरदस्त क्षमता है। हमारे पास ऐसे 17 संस्थान काम कर रहे हैं। इसलिए उसकी जरूरत नहीं है लेकिन बहुपक्षीय बैंकों के लिए यह आखिरी मौका है। अगर वे समय के अनुसार आगे नहीं बढ़ सकते तो लोगों का ध्यान आपके सुझाव की ओर अवश्य जाएगा।

आप अपनी रिपोर्ट में निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों की चिंता को किस हद तक दूर करने में सफल रहे हैं?

दुनिया का भविष्य निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों पर निर्भर करेगा जहां सबसे अधिक उत्सर्जन होता है। अगर वे अगले 20 साल तक कोयले का उपयोग करेंगे तो ​स्थिति काफी भयावह होगी। इन चिंताओं के साथ-साथ गरीब देशों की भी कुछ बड़ी दिक्कतें हैं, जिन्हें निपटाने की जरूरत है।

21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने की दिशा में भारत की उपलब्धि को आप किस प्रकार देखते हैं?

मैं 20 वर्षों से अधिक समय से भारत आता रहा हूं। भारत 1991 के मुकाबले अब काफी बदल चुका है। नीतिगत मोर्चे पर दृढ संकल्प और बाहरी परिदृश्य के मद्देनजर ऐसा लगता है कि भारत आधी सदी तक आठ गुना वृद्धि दर्ज कर सकता है। यह पिछले 30 वर्षों के मुकाबले एक बड़ा बदलाव होगा। मगर इसके लिए सामाजिक एकजुटता, सार्वजनिक संस्थानों की प्रभावशीलता में सुधार और दीर्घकालिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए सरकार और संस्थानों के बीच बेहतर सहयोग की दरकार होगी।

First Published - September 25, 2023 | 10:10 PM IST

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