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Maratha reservation bill: महाराष्ट्र में 62 फीसदी हुआ आरक्षण, मराठाओं को सताने लगा कानूनी चुनौती का भय

Maratha reservation bill: मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण दिये जाने के बाद राज्य में आरक्षण बढ़कर 62 फीसदी पहुंच गया। जिसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

Last Updated- February 20, 2024 | 8:15 PM IST
Maratha reservation: OBC and Maratha leaders fast on Maratha reservation मराठा आरक्षण पर ओबीसी और मराठा नेताओं का अनशन

Maratha reservation bill: महाराष्ट्र विधानमंडल में शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो गया। विधानसभा की मंजूरी के बाद यह विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही राज्य में मराठा आरक्षण लागू हो जाएगा। जिसके बाद राज्य में आरक्षण की सीमा बढ़कर 62 फीसदी हो जाएगी। फिलहाल महाराष्ट्र में 52 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। आरक्षण सीमा 50 फीसदी पार करने की वजह से इस विधेयक को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

मराठा आरक्षण पर विधानमंडल के एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान सदन में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा विधेयक 2024 पेश किया जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। विधेयक में कहा गया कि महाराष्ट्र की कुल आबादी में मराठों की हिस्सेदारी 28 फीसदी है। बड़ी संख्या में जातियां और समूह पहले से ही आरक्षित श्रेणी में हैं, जिन्हें कुल मिलाकर लगभग 52 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में रखना पूरी तरह से अनुचित होगा। इसीलिए मराठा आरक्षण ओबीसी कोटे से अलग रखा गया है।

कानूनी चुनौती का भय

राज्य में पहले से लागू 52 फीसदी आरक्षण में अनुसूचित जाति 13 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 7 फीसदी, ओबीसी 19 फीसदी, विशेष पिछड़ा वर्ग 2 फीसदी, विमुक्त जाति 3 प्रतिशत, घुमंतू जनजाति (बी) 2.5 फीसदी, घुमंतू जनजाति (सी) धनगर 3.5 फीसदी और घुमंतू जनजाति (डी) वंजारी 2 फीसदी दिया जा रहा है।

मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण दिये जाने के बाद राज्य में आरक्षण बढ़कर 62 फीसदी पहुंच गया। जिसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। इसकी आशंका जताते हुए मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे ने कहा कि इसमें मराठाओं की मांग को पूरा नहीं किया गया है। आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के ऊपर हो जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर देगा। हमें ऐसा आरक्षण चाहिए जो ओबीसी कोटे से हो और 50 फीसदी के नीचे रहे।

Also read: Maratha Reservation: मराठा आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला, 10 फीसदी रिजर्वेशन पर शिंदे सरकार ने लगाई मुहर

कई राज्यों ने लांघी है आरक्षण सीमा

सदन में विधेयक पेश करने के बाद मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि देश के 22 राज्य 50 फीसदी आरक्षण का आंकड़ा पार कर चुके हैं। तमिलनाडु राज्य में 69 फीसदी, हरियाणा में 67 प्रतिशत, राजस्थान में 64 फीसदी, बिहार में 69 फीसदी, गुजरात में 59 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 55 फीसदी आरक्षण है। मैं अन्य राज्यों का भी उल्लेख कर सकता हूं। उन्होंने कहा कि हम राज्य में ओबीसी के मौजूदा कोटा को छुए बिना मराठा समुदाय को आरक्षण देना चाहते हैं। मराठा आरक्षण लाभ पाने के लिए पिछले 40 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं।

राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मिला आरक्षण

मराठाओं का आरक्षण बढ़ाने की पहल महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग की एक सर्वे रिपोर्ट के आधार पर की गई थी। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुनील शुक्रे के नेतृत्व में एक नये आयोग का हाल ही में गठित किया गया था, जिसने राज्य में 1,58,20,264 परिवारों का सर्वेक्षण किया और 1,96,259 गणनाकारों की मदद से डेटा एकत्र किया। आयोग ने 16 फरवरी को मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर आधारित सर्वे रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। जिसमें कहा गया था कि राज्य में मराठा समुदाय की आबादी 28 फीसदी है।

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले कुल मराठा परिवारों में से 21.22 फीसदी के पास पीले राशन कार्ड हैं। यह राज्य के औसत 17.4 फीसदी से अधिक है। राज्य सरकार के सर्वेक्षण के मुताबिक मराठा समुदाय के 84 प्रतिशत परिवार प्रगतिशील श्रेणी में नहीं आते हैं, इसलिए वे इंद्रा साहनी मामले के अनुसार आरक्षण के लिए पात्र हैं। महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले किसानों में से 94 फीसदी मराठा परिवारों से थे।

मराठा आरक्षण का इतिहास

मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कुनबी, कृषि से जुड़ा एक समुदाय है, जिसे महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में रखा गया है। कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है। विधेयक में मराठा आरक्षण के इतिहास में प्रकाश डाला गया।

मराठा आरक्षण की नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50 फीसदी आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए। मुंबई स्टेट के 23 अप्रैल 1942 के एक प्रस्ताव में मराठा समुदाय को मध्यम और पिछड़े वर्गों में से एक के रूप में उल्लेखित किया गया था। 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था।

आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था। वर्ष 2017 में, राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एम जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को आंकड़े संग्रह करने के लिए कहा और बाद में मराठों को आरक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून बनाया। इसे बम्बई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, लेकिन कानून उच्च न्यायालय की पड़ताल से पास हो गया, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया।

First Published - February 20, 2024 | 8:15 PM IST

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