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Police Torture: ड्यूटी के दौरान कई पुलिसकर्मी यातना को मानते हैं सही

भारत में पुलिस व्यवस्था की स्थिति पर रिपोर्ट में 17 राज्यों के पुलिसकर्मियों की ली गई राय

Last Updated- March 27, 2025 | 10:26 PM IST
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भारत में पुलिस व्यवस्था की स्थिति पर बुधवार को जारी एक अध्ययन में पाया गया है कि पुलिसकर्मियों का एक बड़ा तबका अपनी ड्यूटी के दौरान यातना एवं हिंसा के प्रयोग को उचित ठहराता है। उनका यह भी कहना था कि उन्हें बिना किसी भय बल प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए।

अध्ययन में पाया गया कि केरल पुलिस गिरफ्तार किए गए लोगों के अधिकारों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है, जबकि झारखंड और गुजरात की पुलिस सबसे कम संवेदनशील है। गुजरात के 57 फीसदी, आंध्र प्रदेश के 51 फीसदी, महाराष्ट्र के 50 फीसदी, तमिलनाडु के 46 फीसदी और ओडिशा के 42 फीसदी पुलिसकर्मियों ने कहा कि संदिग्ध अपराधियों के खिलाफ भीड़ की हिंसा ‘काफी हद तक जायज’ है।

अध्ययन से यह भी खुलासा हुआ कि केरल (0 फीसदी), नागालैंड (2 फीसदी), पश्चिम बंगाल (2 फीसदी), पंजाब (3 फीसदी), उत्तर प्रदेश (4 फीसदी) और दिल्ली (10 फीसदी) के पुलिसकर्मियों द्वारा भीड़ की हिंसा से बचाव करने की संभावना सबसे कम थी।

कॉमन कॉज नामक एक समूह द्वारा दिल्ली के थिंक टैंक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम के सहयोग से ‘द स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2025: पुलिस टॉर्चर ऐंड (अन)अकाउंटैबिलिटी’ विषय पर तैयार रिपोर्ट के लिए 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 82 जगहों पर विभिन्न ओहदों वाले 8,276 पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई। इस अध्ययन के नतीजों ने देश भर में पुलिस बलों के बीच ‘कानून के शासन के प्रति उपेक्षा’ को उजागर किया। सर्वेक्षण में शामिल 20 फीसदी पुलिसकर्मियों का मानना है कि जनता में भय पैदा करने के लिए सख्त तरीकों का इस्तेमाल करना उनके लिए काफी महत्त्चपूर्ण है, जबकि 35 फीसदी पुलिसकर्मियों ने इसे ‘कुछ हद तक महत्त्वपूर्ण’ करार दिया।

अध्ययन से यह भी पता चला कि यौन उत्पीड़न (27 फीसदी) और बच्चों के अपहरण (25 फीसदी) जैसे मामलों में भीड़ की हिंसा को चार में से एक पुलिसकर्मी बिल्कुल जायज ठहराता है। अध्ययन में कहा गया है, ‘इससे पता चलता है कि भारत के लगभग एक चौथाई पुलिसकर्मी बेहद गंभीर मामलों में भी न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद के रूप में भीड़ की भूमिका का समर्थन करते हैं।’

सर्वेक्षण के अनुसार, 22 फीसदी पुलिसकर्मियों का मानना है कि ‘खतरनाक अपराधियों’ को मारना उन्हें कानूनी प्रक्रिया के दायरे में लाने से बेहतर है। मगर अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अनुभवी एवं उच्च अधीनस्थ अधिकारी शायद इससे सहमत नहीं होंगे।

लेखकों ने कहा है कि यह रिपोर्ट भारत में पुलिस की हिंसा और यातना को जारी रखने वाले प्रमुख कारणों और कारकों की पड़ताल करती है। उन्होंने कहा कि यह यातना के प्रति पुलिस के दृष्टिकोण और सामान्य तौर पर उसके उपयोग को समझने की कोशिश करने वाला अपने प्रकार का पहला अध्ययन है। अध्ययन में पाया गया कि पुलिसकर्मियों का दृढ़ता से मानना है कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए बिना किसी भय के बल उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए। सर्वेक्षण में शामिल 26 फीसदी लोगों ने इससे पूरी तरह सहमति जताई जबकि 45 फीसदी ने कुछ हद तक सहमति जताई और 11 फीसदी ने पूरी तरह असहमति एवं 13 फीसदी ने कुछ हद तक असहमति जताई।

कुल मिलाकर, 41 फीसदी पुलिसकर्मियों ने कहा कि गिरफ्तारी की प्रक्रियाओं का ‘हमेशा’ पालन किया जाता है, जबकि 24 फीसदी ने कहा कि उसका ‘शायद ही कभी’ पालन नहीं किया जाता है। केरल में सबसे अधिक अनुपालन की जानकारी मिली जहां 94 फीसदी पुलिसकर्मियों ने हमेशा अनुपालन की बात कही। झारखंड ने अनुपालन की सबसे खराब स्थिति दिखी जहां महज 8 फीसदी पुलिसकर्मियों ने हमेशा अनुपालन की बात कही।

अध्ययन के अनुसार, 30 फीसदी पुलिसकर्मियों ने कहा कि गंभीर आपराधिक मामलों में अभियुक्तों पर ‘थर्ड-डिग्री’ वाले तरीकों का इस्तेमाल उचित है जबकि 9 फीसदी ने छोटे-मोटे अपराधों को भी उचित ठहराया। सर्वेक्षण में शामिल 11 फीसदी पुलिसकर्मियों का मानना था कि किसी आरोपी के परिवार के सदस्यों को थप्पड़ मारना बिल्कुल सही है जबकि 30 फीसदी ने कहा कि कभी-कभी यह भी उचित होता है। अध्ययन से यह भी पता चला कि पुलिस यातना के शिकार लोगों में मुख्य तौर पर गरीब और समाज के निचले तबके के लोग होते हैं। यातना के सामान्य लक्षित समूहों में मुस्लिम, दलित, आदिवासी और कम पढ़े-लिखे एवं झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग होते हैं।

अध्ययन से यह भी खुलासा हुआ है कि विभिन्न हिरासत में हुई मौत के मामलों के बारे में विभिन्नन डेटा स्रोतों में खामियां थीं। उदाहरण के लिए, वर्ष 2020 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 76 मामले, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने 90 मामले दर्ज किए जबकि नैशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर (एनसीएटी) ने हिरासत में मौत के 111 मामले दर्ज किए।

First Published - March 27, 2025 | 10:26 PM IST

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