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Rajasthan : कई मरीज कर रहे डॉक्टरों की हड़ताल खत्म होने का इंतजार, तो कई भाग रहे दूसरे राज्यों की ओर

Last Updated- March 30, 2023 | 4:58 PM IST
Patients suffer, some look for options in other states as private doctors refuse to budge in Rajasthan

राजस्थान में स्वास्थ्य का अधिकार (RTH) विधेयक के खिलाफ निजी अस्पतालों व चिकित्सकों की हड़ताल के कारण कई मरीज परेशान हैं और इलाज के लिए हड़ताल खत्म होने का इंताजर कर रहे हैं जबकि कई दूसरे राज्यों का रुख करने को मजबूर हैं।

ऐसे ही मरीजों में मधुमेह (शुगर) और फेफड़े की बीमारी से पीड़ित 70 वर्षीय सरकारी पेंशनभोगी रामावतार गुप्ता भी हैं जो हर महीने जयपुर के टोंक रोड स्थित एक निजी अस्पताल में राजस्थान सरकार स्वास्थ्य योजना (RGHS) के तहत डॉक्टर से दवा लेने के लिए जाते थे।

तीन दिन पहले उनकी दवाएं खत्म हो गईं और निजी अस्पतालों की हड़ताल खत्म होने का इंतजार करने लगे। कोई उम्मीद न देखकर गुप्ता ने डॉक्टर के पर्चे के बिना कुछ समय के लिए एक दवा की दुकान से दवाएं खरीदीं।

इसी तरह, 65 वर्षीय प्रमिला देवी का गोपालपुरा बाईपास के एक निजी अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया गया था और डॉक्टर ने उन्हें एक महीने बाद जांच के लिए आने को कहा था।

आंखों की दवा (ड्रॉप) खत्म हो गई है और उनके और परिवार के सदस्यों के पास डॉक्टरों से परामर्श लेने के लिए हड़ताल खत्म होने का इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वे इस बात को लेकर भी असमंजस में हैं कि ड्रॉप डालते रहें या बंद कर दें।

ऐसे अनगिनत मरीज हैं, जो स्वास्थ्य का अधिकार (RTH) विधेयक के खिलाफ निजी अस्पतालों व चिकित्सकों की हड़ताल के कारण परेशान हो रहे हैं। निजी च‍िक‍ित्‍सक राज्य विधानसभा में पारित RTH विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस कानून से निजी अस्पतालों के कामकाज में नौकरशाही का दखल बढ़ेगा।

विधेयक को पूरी तरह से वापस लेने की मांग को लेकर राज्‍य में निजी अस्पताल पूरी तरह से बंद हैं- न ओपीडी है, न आपात सेवा चल रही है। निजी डॉक्टरों की हड़ताल गुरुवार को 13वें दिन में प्रवेश कर गई।

विधेयक के अनुसार, राज्य के प्रत्येक निवासी को किसी भी “सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान, स्वास्थ्य सेवा प्रतिष्ठान और नामित स्वास्थ्य केंद्र” में “बिना पूर्व भुगतान” के आपातकालीन उपचार और देखभाल का अधिकार होगा।

इस हड़ताल की वजह से निजी अस्पतालों के मरीजों का एक हिस्सा सरकारी अस्पतालों में स्थानांतरित हो गया है जबकि कई मरीज, जो मानते हैं कि उन्हें किसी आपात स्थिति का सामना नहीं करना पड़ रहा है, वे सरकारी अस्पतालों में जाने के बजाय हड़ताल खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।

हालांकि, अनेक ऐसे मरीज भी हैं जो इलाज के लिए पड़ोसी गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जा रहे हैं।

सरकारी कर्मचारी यशवंत कुमार ने कहा, “हर कोई देख सकता है कि चिकित्सक इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं और सरकार इसका बचाव कर रही है। मरीजों की सुविधा के लिए कुछ भी नहीं है।”

शेयर ब्रोकर ओमप्रकाश ने कहा कि उनकी गर्दन में दर्द हो रहा है लेकिन सरकारी अस्पतालों में लंबी कतारों को देखते हुए उन्‍हें न‍िजी च‍िक‍ित्‍सकों की हड़ताल खत्म होने का इंतजार है।

उन्‍होंने कहा,‘‘ मुझे बहुत कम समय मिलता है इसलिए मैं सरकारी अस्पताल नहीं जा सकता और डॉक्‍टर को दिखाने के लिए मारामारी नहीं कर सकता बशर्ते कोई आपात स्थित‍ि न हो। मैंने कुछ योग और व्यायाम किया। कुछ हद तक राहत मिली, लेकिन मुझे दर्द है और इसलिए मैं फार्मेसी (दुकान) पर दर्द निवारक दवा लेने आया हूं।’’

मानसरोवर स्थित फार्मेसी के मालिक ने कहा कि हड़ताल के कारण ओमप्रकाश की तरह अनेक लोग लक्षणों के आधार पर दवा खरीदने आ रहे हैं। वहीं पड़ोसी राज्‍यों के करीबी इलाकों के लोग जो पैसा खर्च कर सकते हैं या जिन्‍हें आपात स्थिति है वे दूसरे राज्यों के निजी अस्पतालों में जा रहे हैं।

कई मरीज ऐसे हैं जो उदयपुर संभाग से गुजरात गए हैं। इसी तरह कोटा संभाग के लोग मध्य प्रदेश में विकल्प तलाश रहे हैं। अलवर और भरतपुर के लोगों के लिए एम्स जैसे दिल्ली के अस्पताल पसंदीदा विकल्प हैं।

कोटा के शोभित सक्सेना ने कहा कि उनकी पत्नी के गले में ट्यूमर का पता चला है और डॉक्टरों ने जल्द से जल्द सर्जरी की सलाह दी है। चूंकि सरकारी अस्पतालों में भीड़ है, इसलिए वह इसके लिए गुजरात जाने की योजना बना रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि काम का बोझ संभालने के लिए सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था की जा रही है।

मंगलवार और बुधवार को दो दिनों में ‘वॉक-इन इंटरव्यू’ (सीधे साक्षात्कार) के माध्यम से लगभग 300 जूनियर रेजीडेंट डॉक्टरों का चयन किया गया है जबकि 700 और जूनियर रेजीडेंट डॉक्टरों का चयन जल्द ही किया जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘इससे मेडिकल कॉलेजों से जुड़े सरकारी अस्पतालों में दबाव कम करने में मदद मिलेगी। सरकार के पास अपना बड़ा बुनियादी ढांचा है और इसे कोरोना के दौरान मजबूत किया गया है।’’

प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स सोसाइटी के सचिव डॉ विजय कपूर ने कहा कि राजस्थान में लगभग 2,400 निजी अस्पताल और नर्सिंग होम हैं, जिनमें जयपुर के लगभग 500 नर्सिंग होम/अस्पताल शामिल हैं।

उन्होंने कहा, “चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र में 70 प्रतिशत सेवा निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जाती है। निजी डॉक्टरों की हड़ताल के कारण मरीज दूसरे राज्यों में जा रहे हैं।’ राजस्‍थान के सरकारी चिक‍ित्‍सक भी बुधवार को निजी चिकित्सकों के समर्थन में बुधवार को एकद‍िवसीय हड़ताल पर रहे।

हालांकि, अधिकारियों का दावा था कि हड़ताल का कोई खास असर नहीं हुआ और सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ सीमित रही। कई जगहों पर दो-तीन घंटे के बहिष्कार के बाद कई सरकारी डॉक्टर भी काम पर लौट आए।

मुख्य सचिव उषा शर्मा और राज्य सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने रविवार को आंदोलनरत निजी अस्पतालों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक की और उन्हें विधेयक के संबंध में उनके सुझावों पर चर्चा करने का आश्वासन दिया।

हालांकि, न‍िजी च‍िक‍ित्‍सक इस विधेयक को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं और कहा कि विधेयक वापस लेने के बाद ही कोई चर्चा संभव है। विधेयक को प्रवर समिति की सिफारिशों के अनुसार पारित किया गया था।

डॉक्टरों का कहना है कि उनकी एक सूत्री मांग व‍िधेयक को वापस लेना है और सरकार द्वारा मांग पूरी किए जाने के बाद ही इसके बिंदुओं पर कोई चर्चा होगी।

स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि व‍िधेयक वापस नहीं लिया जाएगा क्योंकि डॉक्टरों द्वारा दिए गए सभी सुझावों को पहले ही व‍विधेयक में शामिल कर लिया गया है और इसलिए यह मांग अनुचित है।

मीणा ने बुधवार को कहा,‘‘ निजी चिकित्‍सक अपने च‍िकित्‍सकीय धर्म को भूलकर अपने डब्‍ल्‍यूएचओ शपथ को भूलकर जिस तरह से हड़ताल पर बैठे हैं वह ठीक नहीं है, उनको काम पर लौटना चाहिए।’’

मीणा ने कहा क‍ि आंदोलनकारी चिकित्‍सकों का अगर कोई सुझाव है तो वे दे सकते हैं।

उन्‍होंने कहा,‘‘ उनकी कोई बात है… कानून में कोई बात रह गई या उनका कोई सुझाव हो तो वे अपना सुझाव कभी भी मुख्‍य सचिव को दे सकते हैं, हमारी सरकार के दरवाजे हमेशा खुले हैं।’’

First Published - March 30, 2023 | 4:58 PM IST

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