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RRTS: गाजियाबाद में भी दिल्ली मेट्रो जैसा नजारा, लोगों को आई 21 साल पहले की याद

दिल्ली-मेरठ RRTS कॉरिडोर के 17 किलोमीटर खंड पर यह ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। इसे फ्रांस की ट्रेन बनाने वाली दिग्गज कंपनी एल्सटॉम ने बनाया है।

Last Updated- October 22, 2023 | 11:05 PM IST
Namo Bharat Train, Delhi-Meerut RRTS: Now rapid rail will be known as 'Namo Bharat', PM Modi will flag off today

गाजियाबाद में वसुंधरा की हरियाली और औद्योगिक क्षेत्र के धूल-धुएं के बीच शनिवार को शुरू हुए दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) का साहिबाबाद स्टेशन आकर्षण का केंद्र बन गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के इस जिले के लिए शायद यह स्टेशन अपनी कहानी अच्छे से बयां कर सकता है।

देश की पहली नमो भारत ट्रेन का अनुभव करने के लिए लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ स्टेशन पहुंचे और वहां कुछ ब्लॉगरों की भीड़ भी दिखाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई और आमलोगों के लिए इसे शनिवार को खोल दिया गया। इस ट्रेन सेवा को पहले रैपिडएक्स कहा जाता था, लेकिन आखिरी वक्त में इसका नाम बदल दिया गया।

स्टेशन खुलने के कुछ घंटे बाद यानी शाम तक लोगों का उत्साह देखने लायक था। हालांकि, लोगों की भीड़ अधिक नहीं थी मगर यह साल 2002 में दिल्ली मेट्रो के शुरुआती दिनों की याद दिलाती है जब क्रिसमस के मौके पर शाहदरा और तीस हजारी के बीच पहला खंड शुरू किया गया था।

भले ही पहली मेट्रो शहर के हृदय की तुलना में एनसीआर के करीब थी मगर वह काफी हद तक दिल्ली के लिए गौरव का पल था। 21 वर्षों के बाद राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके को भी अपनी मेट्रो मिल गई है।

दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर के 17 किलोमीटर (साहिबाबाद-दुहाई) खंड पर यह ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। इसे फ्रांस की ट्रेन बनाने वाली दिग्गज कंपनी एल्सटॉम ने बनाया है।

प्रधानमंत्री ने कहा है कि नमो भारत ट्रेन की ट्रैक्शन, सिग्नलिंग और स्टेशन के विकास की तकनीक भारत के लिए एकदम नई है और ट्रेनें भारतीय शहरी परिवहन में पहले से मौजूद सुविधाओं से लैस हैं।

मई में एनसीआरटीसी के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया था कि देश के सार्वजनिक परिवहन के इतिहास में दिल्ली मेट्रो के बाद आरआरटीएस दूसरा सबसे बड़ा क्रांतिकारी बदलाव होगा। निगम की योजना हर छह महीने पर दिल्ली-मेरठ कॉरिडोर का एक नया खंड खोलने और साल 2025 तक दिल्ली से मेरठ तक पहुंच सुगम करने की है।

एल्सटॉम के अनुसार, नीले और लाल रंग से बने चमकीले (चांदी) डिब्बे और लोटस टेंपल की डिजाइन वाली नमो भारत ट्रेन को दुहाई से लौटने के दौरान करीब 7 मिनट की देर हुई। ट्रेन में स्टैंडर्ड (सामान्य) और प्रीमियम दो तरह के कोच हैं। सामान्य कोच का किराया 30 से 50 रुपये के बीच है जबकि प्रीमियम कोच में यात्रा करने वालों को इससे दोगुनी राशि देनी पड़ेगी। प्रीमियम कोच के यात्रियों को दो स्वचालित किराया संग्रह (एएफएसी) गेटों को पार करना जरूरी है। दूसरा गेट प्लेटफॉर्म पर है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल टिकट लेने वाले यात्री ही प्रीमियम लाउंज में प्रवेश करें।

नई तरह की कुर्सियां और लाइटें, मैगजीन स्टैंड और एक वेंडिंग मशीन इस लाउंज की शोभा बढ़ा रहे हैं। यह इकलौते कोच की लंबाई तक फैला हुआ है।

प्रीमियम कोच का भीतरी हिस्सा दिल्ली मेट्रो की एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन जैसा ही है। इसमें अगल-बगल दो-दो सीटें हैं और चलने के लिए रास्ता है। कोच में हर सीट के पास मैगजीन और बॉटल रखने के लिए जगह भी है। साथ ही इसमें खानपान के लिए वेडिंग मशीन और हर वक्त सहायता करने के लिए एक कर्मचारी को भी तैनात किया गया है। सामान्य कोच में सिर्फ मोबाइल चार्ज करने के लिए यूएसबी पोर्ट दिए गए हैं जबकि प्रीमियम कोच में आरामदायक सीट और पैर रखने के लिए पर्याप्त जगह के साथ-साथ हर सीट के बगल में लैपटॉप चार्ज करने की भी सुविधा है। यह ट्रेन मेट्रो की तुलना में थोड़ी तेज और आसान अनुभव प्रदान करती है।

टर्मिनल स्टेशनों का बुनियादी ढांचा और सहायता करने कर्मियों की संख्या आवश्यकता से अधिक है मगर वीरान पड़े दुहाई स्टेशन (दुहाई डिपो से पहले का स्टेशन) की कहानी अलग है। पहले दिन टिकट वेंडिंग मशीन काम नहीं कर रही थी जबकि टिकट काउंटर पर डिजिटल भुगतान का कोई प्रावधान नहीं था।

सामान्य कोच में यात्रा करने वाले यात्रियों को थोड़ी परेशानी हो रही थी। मेट्रो में यात्रा करने वालों को इस नई ट्रेन को प्रणाली समझने में दिक्कत हो रही थी। मेट्रो के विपरीत नमो भारत के दरवाजे खुद नहीं खुलते हैं बल्कि यात्रियों को बटन दबाकर इसे खोलना पड़ता है।

सामान्य कोच में मध्यम वर्गीय परिवार, छात्र और कुछ वंचित परिवार सफर कर रहे थे। उन्होंने यह माना कि अधिक किराया होने के कारण वे कभी इस ट्रेन में सफर नहीं करेंगे, लेकिन एक बार इसका अनुभव करना चाहते थे। भले ही कीमतों के कारण वे इससे यात्रा नहीं करेंगे मगर उन्हें इस सेवा के शुरू होने का गर्व है। तकनीकी सफलता और उत्साह के अलावा 2002 में शुरू हुई मेट्रो और 2023 में शुरू हुई आरआरटीएस के बीच एक समानता भी है।

यात्रियों की सुविधा में लगे दर्जनों कर्मचारियों में से एक ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता है कि आज जो भी इस ट्रेन में सफर कर रहा है वह रोजाना का यात्री है।’ अपनी लाल डोरियों से पहचाने जाने वाले जर्मनी की रेल कंपनी डॉयचे बान (डीबी) के कर्मचारी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अनजान लोगों की मदद करने के लिए तत्पर दिखे। डीबी को ही इसके संचालन और रखरखाव का जिम्मा दिया गया है।

सराय काले खां और मेरठ के बीच 82 किलोमीटर लंबे इस गलियारे के बन जाने के बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) को उम्मीद है कि रोजाना 8 लाख लोग यात्रा करेंगे। इस गलियारे के बन जाने के बाद दोनों शहरों की दूरी घंटे भर से भी कम समय में तय की जा सकेगी।

जब तक एनसीआरटीसी अधिक क्षेत्रों तक नहीं फैलता है और इसके अधिक खंड पूरे नहीं होते हैं तब तक उम्मीद जताई जा रही है कि नमो भारत पर यात्री उपयोगिता के लिए नहीं बल्कि आकर्षण के लिए यात्रा करेंगे। फिलहाल जिस हिस्से की अभी शुरुआत हुई है वह पहले से ही दिल्ली मेट्रो से जुड़ा हुआ है और साहिबाबाद से दुहाई के लिए अलग से यात्री नहीं हैं।

First Published - October 22, 2023 | 10:10 PM IST

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