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भारत में बहुत कम हैं महिला सांसद

भारतीय संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए महिला आरक्षण विधेयक पेश

Last Updated- September 19, 2023 | 11:30 PM IST
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भारतीय संसद में महिलाओं की भागीदारी कई प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले कम है। मगर देश के स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी पर गौर किया जाए तो उनकी मौजूदगी खासी बेहतर दिखती है। भारत में महिला आरक्षण विधेयक का मसौदा तो बहुत पहले तैयार हो गया था मगर सरकार ने उसके तीन दशक बाद मंगलवार को यह विधेयक संसद में पेश किया।

साल 2029 में लागू होने वाले विधेयक में महिला उम्मीदवारों के लिए लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है। आरक्षण की पैरोकारी करने वालों को उम्मीद है कि यह विधेयक भारतीय संसद में महिलाओं के सामने मौजूद राजनीतिक बाधाओं को ध्वस्त करने में मददगार साबित होगा।

कई प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं की संसदों पर गहराई से नजर डालें तो पता चलता है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत की संसद में महिलाओं की भागीदारी काफी कम है।

हमारे यहां लोकसभा में सिर्फ 15 फीसदी और राज्यसभा में 14 फीसदी महिला सदस्य हैं। इसकी तुलना में दक्षिण अफ्रीका के निचले सदन में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी है, चीन के संसद में 27 फीसदी और ब्राजील में 18 फीसदी महिला सदस्य हैं। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे प्रमुख देशों में तकरीबन एक तिहाई हिस्सेदारी महिलाओं की है।

हालांकि भारतीय संसद में महिला सदस्यों की संख्या 20 फीसदी से भी कम है मगर पिछले कुछ चुनावों में उनकी भागीदारी बढ़ गई है। साल 2004 के आम चुनावों में महिला उम्मीदवारों की तादाद 7 फीसदी से भी कम थी और चुने गए सांसदों के बीच उनका प्रतिनिधित्व 8 फीसदी ही था। मगर 2014 तक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के बीच महिलाओं की भागीदारी महज 8 फीसदी होने के बावजूद सदन में उनका प्रतिनिधित्व बढ़कर 11 फीसदी हो गया।

महिला राजनेताओं की संपत्ति में भी अच्छा खासा इजाफा हुआ है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय राजनीति में महिला सांसदों की औसत संपत्ति में इजाफा हुआ है। महिला सांसदों की औसत संपत्ति साल 2004 में 79 लाख रुपये ही थी, जो 2019 में बढ़कर 4.3 करोड़ रुपये हो गई।

भारतीय राजनीति में महिलाओं को आरक्षण देना कोई नई बात नहीं है। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तराखंड जैसे 20 राज्यों में पहले ही स्थानीय पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। स्थानीय पंचायतों में कुल निर्वाचित प्रतिनिधियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 46 फीसदी है।

उत्तराखंड की पंचायतों में लगभग 56 फीसदी निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं। यह देश में सबसे अधिक अनुपात है। इसके बाद छत्तीसगढ़ और असम (लगभग 55 फीसदी), महाराष्ट्र (53.5 फीसदी) और तमिलनाडु (53 फीसदी) का स्थान है। किंतु लगभग 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय औसत से कम है।

First Published - September 19, 2023 | 11:30 PM IST

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