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विवेक देवरॉय : अर्थशास्त्री ही नहीं, पौराणिक लेखक के रूप में छोड़ी छाप

देश के विख्यात अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष देवरॉय का निधन

Last Updated- November 01, 2024 | 10:30 PM IST
Vivek Devroy: Not only an economist, he left his mark as a mythological writer विवेक देवरॉय : अर्थशास्त्री ही नहीं, पौराणिक लेखक के रूप में छोड़ी छाप

मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां गढ़ने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले विख्यात अर्थशास्त्री विवेक देवरॉय (69) का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार को निधन हो गया। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष देवरॉय दिल्ली स्थित एम्स में भर्ती थे। हालांकि वह पूर्ववर्ती सरकारों में भी नीतियां बनाने में शामिल रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थशास्त्री के निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहा कि अपने कार्यों से देवरॉय ने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी।

अपने साहित्यिक और अकादमिक कार्यों के लिए 2015 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित देवरॉय का जन्म 1955 में हुआ था। उन्होंने नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल, कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स और कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षा हासिल की थी। वह 5 जून, 2019 तक नीति आयोग के सदस्य भी रहे। सितंबर 2017 में उन्हें प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने आर्थिक मामलों से लेकर हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुवाद तक कई किताबें और शोधपत्र लिखे।

उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स ऐंडड इकनॉमिक्स, दिल्ली के भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में सेवाएं दीं और कानूनी सुधारों पर वित्त मंत्रालय/यूएनडीपी परियोजना के निदेशक भी रहे। वह कई समाचार पत्रों के सलाहकार संपादक भी रहे।

उनकी लिखी किताबों से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की झलक मिलती है। देवरॉय ने ग्रेट एपिक ऑफ इंडिया : पुराण (1991), फॉरेन ट्रेड पॉलिसी चेंजेज ऐंड डिवैल्यूएशन (1992), विष्णु पुराण (1992), ब्यॉन्ड द उरुग्वे राउंड : द इंडियन प्रस्पैक्टिव असॅन जीएटीटी (1996), एक्सटर्नल ट्रेड (1998), द होली वेदाज (2006), महाभारत (2010), द वाल्मीकि रामायण (2017) क्रप्शन इन इंडिया : द डीएनए ऐंड द आरएनए (2012) जैसे अनेक ग्रंथ लिखे या अनुवाद किए।

जब देवरॉय को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ईएसी-पीएम का अध्यक्ष बनाया गया तो एक पत्रकार उनसे बातचीत करने गए। उन्होंने लिखा कि देवरॉय की मेज पर गीता, रामायण, वेद आदि रखे हुए हैं। उनका इशारा सरकार द्वारा उन्हें दिए गए पद के बाद उनके विचार बदलने की तरफ था। बाद में इस विख्यात अर्थशास्त्री ने पत्रकारों से बात करते हुए स्पष्ट किया था कि उन्हें गलत समझा गया। वह तो भारतीय पौराणिक इतिहास पर 1990 से किताबें लिखते आ रहे हैं।

हालांकि 2005 में राजीव गांधी फाउंडेशन द्वारा संचालित राजीव गांधी समकालीन अनुसंधान संस्थान के निदेशक पद से उनके इस्तीफा देने के बाद विवाद भी खड़ा हो गया था। उस समय संस्थान द्वारा आर्थिक आजादी देने के मामले गुजरात को देश का नंबर एक राज्य बताया गया था।

उसके बाद देवरॉय ने यह कदम उठाया था। इस बारे में कई वर्ष बाद देवरॉय ने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘श्रीमती (सोनिया) गांधी ने मुझे संकेत दिया था कि अब से राजीव गांधी संस्थान में जो कुछ भी प्रकाशित होगा, उसकी राजनीतिक स्तर पर जांच की जाएगी। मैंने यह निर्देश मिलने के बाद इस्तीफा दे दिया था।’

उनके साथ विवादों का जैसे नाता रहा हो। एक और विवाद पिछले साल सितंबर में उस समय उठ खड़ा हुआ, जब बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उप कुलपति अजित रानाडे को बहाल कर देने के बाद देवरॉय ने पुणे स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स ऐंड इकनॉमिक्स के कुलाधिपति पद से इस्तीफा दे दिया था।

यही नहीं, विख्यात अर्थशास्त्री ने उस समय मोदी सरकार का बचाव किया जब पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहमण्यन समेत कई अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी गणना में खामियों पर सरकार की तीखी आलोचना की थी। इसके अलावा भी वह कई मौकों पर सरकार के समर्थन खड़े दिखे।

इसे संयोग कहें या पूर्वाभास अथवा आभास, देवरॉय ने अपनी मौत से चार दिन पहले ही इंडियन एक्सप्रेस को भेजे एक लेख में लिखा था : असामान्य कॉलम। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा शुक्रवार को ऑनलाइन प्रकाशित इस कॉलम में वह लिखते हैं, ‘समय बीतता जा रहा है। दिन और महीने यूं ही गुजर रहे हैं। यहां से चले जाना, वस्तुत: पृथ्वी से चले जाना नहीं है। इससे बाहर भी एक दुनिया है। मैं वहां नहीं रहूं तो क्या हो? वास्तव में क्या? ‘

देश ने खो दिया असाधारण व्यक्तित्व

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने शोक संदेश में कहा, ‘देवरॉय के निधन से देश ने एक प्रख्यात बुद्धिजीवी खो दिया है, जिन्होंने नीति निर्माण से लेकर हमारे महान ग्रंथों के अनुवाद तक विविध क्षेत्रों को समृद्ध किया। भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य के बारे में उनकी समझ असाधारण थी।’

प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, ‘डॉ. विवेक देवरॉय एक उच्च कोटि के विद्वान थे, जो अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, अध्यात्म जैसे अन्य विषयों पर महारत रखते थे। अपने कार्यों के माध्यम से उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। है’

भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा, ‘अर्थशास्त्र में विवेक देवरॉय की अंतर्दृष्टि ने नीतियों को आकार दिया और कई लोगों को प्रेरणा दी। वह एक प्रतिभाशाली मस्तिष्क और अविश्वसनीय रूप से दयालु इंसान थे। वह वास्तव में समाज की भलाई की फिक्र करते थे। मैं उनके निधन से बहुत दुखी हूं।’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जाने-माने अर्थशास्त्री देवरॉय के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए उन्हें ‘बंगाल का प्रतिभाशाली बेटा और प्रख्यात विद्वान’ बताया।

(साथ में एजेंसियां)

First Published - November 1, 2024 | 10:30 PM IST

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