अमेरिका का ट्रंप प्रशासन अपने बड़े टैरिफ यानी आयात शुल्क को जारी रखने के लिए एक नया ‘प्लान B’ बना रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक अमेरिकी अदालत ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने आपातकालीन आर्थिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल करके ये टैरिफ लगाए हैं। अब सरकार ट्रेड एक्ट 1974 के तहत नया रास्ता अपनाना चाहती है, जिसमें पहले 150 दिनों के लिए 15 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा और बाद में गलत व्यापार प्रथाओं के खिलाफ और भी खास टैरिफ लगाए जाएंगे। यह जानकारी वॉल स्ट्रीट जर्नल ने दी है।
पिछले हफ्ते एक संघीय अपील कोर्ट ने पुराने टैरिफ को फिलहाल लागू रहने दिया है, जबकि ट्रंप प्रशासन निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील कर रहा है। लेकिन कानून की अनिश्चितता के कारण सरकार अब नए विकल्प तलाश रही है ताकि राष्ट्रपति की ट्रेड नीति को सुरक्षित रखा जा सके।
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ट्रंप प्रशासन के प्लान B के मुताबिक सबसे पहले ट्रेड एक्ट 1974 की धारा 122 के तहत 150 दिनों के लिए 15 फीसदी का अस्थायी टैरिफ लगाया जाएगा। यह धारा पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुई है और यह व्यापार असंतुलन को ठीक करने के लिए बनाई गई है। इसके बाद, सेक्शन 301 के तहत लंबे समय के लिए टैरिफ लगाए जाएंगे, जो कानून के हिसाब से मजबूत माना जाता है।
व्हाइट हाउस के अधिकारी अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं कर पाए हैं, लेकिन प्रेस सचिव कैरोलिन लीविट ने कहा है कि वे कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करते हुए नए कानूनी रास्ते तलाश रहे हैं।
ट्रंप के वरिष्ठ ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने भी इस दो-चरणीय योजना की बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा कि प्रशासन अन्य ट्रेड कानूनों जैसे कि 1930 के स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रावधानों पर भी विचार कर सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि नया प्लान B मौजूदा कानून की तुलना में ज्यादा सुरक्षित है। अभी जो टैरिफ हैं वे अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियों के कानून (IEEPA) पर आधारित थे, जो कभी टैरिफ लगाने के लिए इस्तेमाल नहीं हुआ था।
28 मई को अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार अदालत ने कहा था कि ट्रंप प्रशासन का IEEPA का उपयोग व्यापार घाटा कम करने के लिए गैरकानूनी है। अदालत ने कहा कि इस कानून से राष्ट्रपति को बिना कांग्रेस की मंजूरी के बड़े टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं है। हालांकि, 29 मई को एक अपील कोर्ट ने फिलहाल टैरिफ लागू रखने की मंजूरी दी है।
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि नए कानूनों के इस्तेमाल से टैरिफ जारी रहेंगे और ट्रेड वार में उनकी मजबूती बनी रहेगी। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत का फैसला अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बड़े ट्रेड समझौते का रास्ता भी साफ कर सकता है, क्योंकि इससे टैरिफ के मामले में एक बड़ी रुकावट हट सकती है।