मलेशिया के अरबपति और प्रसिद्ध उद्योगपति अनंदा कृष्णन के बेटे अजाह्न सिरिपन्यो ने अपनी अरबों की संपत्ति और आलीशान जीवन छोड़कर आध्यात्मिकता का रास्ता चुना है। सिरिपन्यो, जो अब एक भिक्षु हैं, ने बीते दो दशकों से बौद्ध धर्म को अपनाते हुए सादा जीवन जिया है।
कौन हैं अजाह्न सिरिपन्यो?
दक्षिण चीन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अजाह्न सिरिपन्यो अनंदा कृष्णन के इकलौते बेटे हैं। अनंदा कृष्णन का नाम मलेशिया के सबसे अमीर उद्योगपतियों में शुमार है, जिनकी संपत्ति ₹40,000 करोड़ (5 अरब डॉलर) से अधिक आंकी गई है।
कृष्णन का कारोबार दूरसंचार, मीडिया, तेल और गैस, रियल एस्टेट समेत कई क्षेत्रों में फैला है। उन्होंने 1993 में मैक्सिस बेर्हाद की स्थापना की, जो मलेशिया की प्रमुख टेलीकॉम कंपनी है। इसके अलावा, उनके व्यापार में मीडिया कंपनी एस्ट्रो, सैटेलाइट ऑपरेशन्स मीसैट और ऑयल-गैस कंपनी बूमी आर्माडा शामिल हैं। उन्होंने श्रीलंका टेलीकॉम और मैक्सिस टावर जैसी संपत्तियों में भी निवेश किया है।
कैसे भिक्षु बने सिरिपन्यो?
ब्रिटेन में अपनी दो बहनों के साथ पले-बढ़े सिरिपन्यो ने 18 साल की उम्र में अपनी मां के परिवार से मिलने के लिए थाईलैंड का रुख किया। उनकी मां, मोमवाजरोंगसे सुप्रींदा चक्रबन, थाई शाही परिवार से संबंध रखती हैं।
इस यात्रा के दौरान उन्होंने बौद्ध धर्म का अनुभव लेने के लिए एक आश्रम में अस्थायी दीक्षा ली। हालांकि, यह दीक्षा उनके लिए अस्थायी नहीं रही और उन्होंने इसे अपना जीवन बना लिया।
डाओ डम मठ के प्रमुख भिक्षु बने
पिछले 20 वर्षों से सिरिपन्यो थाईलैंड-म्यांमार सीमा पर स्थित डाओ डम मठ में रह रहे हैं। यहां वह अब मठ के प्रमुख भिक्षु (अब्बट) हैं। सिरिपन्यो ने बौद्ध धर्म के नियमों के अनुसार एक बेहद साधारण जीवन को अपनाया है। वह रोज सुबह भिक्षा मांगते हैं और न्यूनतम सामान के साथ अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
सिरिपन्यो आठ भाषाओं में निपुण हैं और अपनी निजी व आध्यात्मिक जीवनशैली को लेकर चर्चा में रहते हैं। उनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो भौतिक सुख-सुविधाओं से अलग आध्यात्मिकता की तलाश में हैं।
परिवार से रखते हैं जुड़ाव
अजाह्न सिरिपन्यो ने भले ही भौतिक संपत्ति और विलासितापूर्ण जीवन को त्याग दिया हो, लेकिन वह अपने परिवार के करीब बने रहते हैं। बौद्ध धर्म में पारिवारिक संबंधों को अहमियत दी जाती है, और सिरिपन्यो समय-समय पर अपने पिता और परिवार के साथ समय बिताने के लिए लौटते हैं।
सिरिपन्यो को निजी जेट से इटली में अपने पिता से मिलने जाते हुए देखा गया है। इसके अलावा, वह अपने पिता द्वारा प्रायोजित कई रिट्रीट्स में भी हिस्सा लेते हैं, जिनमें से एक पेनांग हिल पर आयोजित किया गया था।
यह जुड़ाव दिखाता है कि सिरिपन्यो अपने आध्यात्मिक मार्ग और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखने में सक्षम हैं।
त्याग की अन्य कहानियां भी प्रेरणादायक
सिरिपन्यो की कहानी अन्य ऐसे उदाहरणों की याद दिलाती है, जहां लोगों ने भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर आध्यात्मिकता का मार्ग चुना। इसी साल गुजरात के व्यवसायी भावेश भंडारी और उनकी पत्नी ने ₹200 करोड़ की संपत्ति त्यागकर जैन साधु बनने का निर्णय लिया। इनका परिवार पहले से ही आध्यात्मिक जीवन अपना चुका था। उनके बच्चों ने 2022 में ही भौतिक संपत्तियों को त्याग दिया था।
निर्वाण की तलाश में साधारण जीवन
अब भंडारी दंपत्ति भारत भर में नंगे पैर यात्रा करते हैं और भिक्षा पर जीवन यापन करते हैं। वे जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हुए संसारिक मोह से मुक्त होने की साधना में लगे हैं। सिरिपन्यो और भंडारी जैसे उदाहरण यह संदेश देते हैं कि भौतिकता से दूर होकर भी जीवन का असली आनंद और शांति पाई जा सकती है। उनके जीवन साधारण लेकिन प्रेरणादायक हैं।