यूक्रेन में रूस के एक्शन, G7 देशों के प्रतिबंधों और हाल ही में अपने तेल पर छूट कम करने के बावजूद, रूस 2023-24 में भारत के तेल आयात में सबसे आगे रहा है। ऊर्जा कार्गो ट्रैकर वोर्टेक्सा के अनुसार, रूसी तेल अब भारत के कुल तेल आयात का 35% हिस्सा है, जो पिछले साल 23% से ज्यादा है। इस बीच, इराक, सऊदी अरब, यूएई और अमेरिका जैसे अन्य प्रमुख सप्लायर की बाजार हिस्सेदारी में कमी देखी गई है।
घटी इराक, UAE, सऊदी अरब और अमेरिका की हिस्सेदारी
इराक की हिस्सेदारी 25% से घटकर 20% हो गई है, सऊदी अरब की 18% से 15% हो गई है, यूएई की 8% से 6% हो गई है, और अमेरिका की 4% से 3.5% हो गई है। इसी बीच रूस ने FY24 में अपनी तेल सप्लाई 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन से बढ़ाकर 1.57 मिलियन बैरल प्रतिदिन कर दी है।
वहीं, दूसरी तरफ इराक की सप्लाई 0.95 मिलियन बैरल प्रतिदिन से घटकर 0.89 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गई है, और सऊदी अरब की सप्लाई 0.78 मिलियन बैरल प्रतिदिन से घटकर 0.69 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गई है।
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शिपिंग में चुनौतियों के बावजूद, भारतीय रिफाइनर बड़ी छूट के कारण रूसी कच्चे तेल को प्राथमिकता दे रहे हैं। तेल उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, “जिस वजह से भारतीय बाज़ार में रूसी तेल का सिक्का चल रहा है उसकी वजह भारी छूट है। अन्यथा, भारतीय रिफाइनर रूस से क्यों खरीदेंगे? रूस से भारत तक तेल पहुंचाने में बहुत अधिक समय लगता है और लागत भी अधिक आती है।”
पहले के मुकाबले रूसी तेल पर छूट हुई कम
यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद रूसी तेल पर मिलने वाली छूट में काफी कमी आई है। पहले, रूसी क्रूड (यूराल) को अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट के मुकाबले 30 डॉलर प्रति बैरल कम कीमत पर बेचा जा रहा था। लेकिन अब यह छूट घटकर 2-3 डॉलर प्रति बैरल रह गई है।
पिछले कुछ सालों में, भारतीय रिफाइनरों ने रूसी कच्चे तेल की खरीद में बढ़ोतरी की है। शुरुआत में, शिपिंग और बीमा की जटिलताओं से बचने के लिए यह रणनीति अपनाई गई थी। इस दौरान उन्हें प्रति बैरल 12-13 डॉलर की औसत छूट का लाभ भी मिल रहा था। हालांकि, समय के साथ, छूट में गिरावट देखी गई है।
कुछ ही महीनों में यह 5-7 डॉलर प्रति बैरल तक कम हो गई, और हाल के महीनों में यह और भी घटकर 2-3 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। इसके बावजूद, भारतीय रिफाइनर रूसी तेल खरीदना जारी रखे हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि यह अन्य विकल्पों की तुलना में अभी भी यह सस्ता है।