द्वितीय विश्व युद्ध के अवशेष से बनी नई विश्व व्यवस्था के प्रमुख स्तंभ के रूप में तीन संस्थाओं संयुक्त राष्ट्र, IMF और वर्ल्ड बैंक का गठन हुआ था। हालांकि, अब इनमें से एक संयुक्त राष्ट्र ने बाकी दो संस्थाओं की आलोचना तेज कर दी है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस IMF और वर्ल्ड बैंक में बड़े बदलाव के लिए दबाव डाल रहे हैं।
गुटेरेस का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से गरीबों के बजाय अमीर देशों को ज्यादा फायदा हुआ है। वह कोविड-19 महामारी के खिलाफ IMF और वर्ल्ड बैंक की प्रतिक्रिया को एक ‘स्पष्ट विफलता’ बताते हैं, जिनकी वजह से दर्जनों देशों पर कर्ज का भार बढ़ गया है।
गुटेरेस ने हाल में एक शोधपत्र में इन संस्थाओं की आलोचना की, लेकिन यह पहली बार नहीं है कि जब उन्होंने IMF और वर्ल्ड बैंक में सुधार की बात कही हो। बहुपक्षीय विकास बैंकों और अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए गुरुवार और शुक्रवार को पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा बुलाई गई बैठक से पहले उनकी टिप्पणी जारी की गईं।
महासचिव की आलोचनाओं और प्रस्तावों पर IMF और वर्ल्ड बैंक ने सीधे तौर पर टिप्पणी नहीं की। गुटेरेस ने कहा कि इन संस्थानों ने वैश्विक वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रखा है। उन्होंने कहा कि वर्ल्ड बैंक के पास चुकता पूंजी के रूप में 22 अरब डॉलर हैं, इस धन का इस्तेमाल सरकारी विकास कार्यक्रमों के तहत कम ब्याज वाले कर्ज और अनुदान देने के लिए किया जाता है। दूसरी ओर कई विकासशील देश गहरे वित्तीय संकट में हैं, जो मुद्रास्फीति, बढ़ती ब्याज दरों और ऋण राहत में कमी से जूझ रहे हैं।
गुटेरेस ने कहा, ‘कुछ सरकारों को ऋण पुनर्गठन या भुगतान में चूक में से किसी एक को चुनना पड़ रहा है… अफ्रीका इस समय ऋण सेवा लागत पर स्वास्थ्य देखभाल से अधिक खर्च कर रहा है।’ उन्होंने कहा कि IMF के नियम गलत तरीके से धनी देशों का पक्ष लेते हैं।
महामारी के दौरान 77.2 करोड़ की आबादी वाले सात धनी देशों को IMF से 280 अरब डॉलर की राशि मिली, जबकि 1.1 अरब की आबादी वाले सबसे कम विकसित देशों को केवल आठ अरब डॉलर मिले। गुटेरेस ने कहा कि हालांकि, यह नियमों के अनुसार किया गया था, लेकिन यह नैतिक रूप से गलत है।