अमेरिका के एक फेडरल कोर्ट ने बुधवार को (स्थानीय समयानुसार) राष्ट्रपति Donald Trump को ‘आपातकालीन शक्तियों’ के कानून का हवाला देते हुए आयात पर बड़े टैरिफ लगाने से रोक दिया। यह फैसला न्यूयॉर्क स्थित अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय की तीन जजों की समिति ने दिया है। ट्रंप की ये टैरिफ लगाने की योजना अदालत के इस फैसले के बाद थम गई है। ट्रंप का कहना था कि इन टैरिफ से अमेरिकी फैक्ट्रियों को वापस लाने में मदद मिलेगी और इससे फेडरल बजट घाटे को कम करने के लिए जरूरी राजस्व भी मिलेगा। लेकिन कई मुकदमे दायर किए गए हैं जिनमें यह आरोप लगाया गया है कि ट्रंप ने अपने अधिकारों का दायरा पार कर दिया है।
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने ये टैरिफ दूसरे देशों को अमेरिका के साथ बेहतर समझौते करने के लिए दबाव बनाने के तौर पर लगाए थे। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा, “व्यापार घाटा एक राष्ट्रीय आपातकाल है जिसने अमेरिकी समुदायों को बर्बाद किया है और हमारी डिफेंस इंडस्ट्री को कमजोर किया है।” उन्होंने यह भी बताया कि प्रशासन इस संकट से निपटने के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि व्हाइट हाउस इस फैसले के जवाब में सभी आपातकालीन टैरिफ को रोक पाएगा या नहीं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप अस्थायी तौर पर उन देशों पर 15 प्रतिशत आयात कर लगा सकते हैं जिनके साथ अमेरिका का बड़ा व्यापार घाटा है, जो 150 दिनों तक लागू रह सकता है।
ट्रंप के खिलाफ कुल सात मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें से यह मामला अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय में सुनवाई के लिए पेश किया गया था। इस मामले की सुनवाई तीन जजों – टिमोथी रिफ (ट्रंप द्वारा नियुक्त), जेन रेस्टानी (रॉनाल्ड रीगन द्वारा नियुक्त), और गैरी कैट्ज़मैन (बराक ओबामा द्वारा नियुक्त) ने की।
वादियों का तर्क है कि आपातकालीन शक्तियों के कानून में टैरिफ लगाने की अनुमति नहीं है। साथ ही वे कहते हैं कि व्यापार घाटा कोई आपातकालीन स्थिति नहीं क्योंकि अमेरिका लगातार 49 सालों से व्यापार घाटे में है।
2 अप्रैल को ट्रंप ने 100 से अधिक देशों से आने वाले सामानों पर बड़े टैरिफ लगाए थे, जिनमें भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल थे। इस फैसले ने वैश्विक बाजारों को हिला दिया और कई अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी आर्थिक विकास की उम्मीदों को कम कर दिया। ट्रंप का कहना था कि ये टैरिफ अमेरिका के लंबे समय से चले आ रहे व्यापार घाटे को खत्म करने के लिए जरूरी हैं, जिन्हें वे ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ मानते हैं।
(एपी की रिपोर्ट के साथ)