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H-1B visa पर अमेरिका की चेतावनी, कंपनियां विदेशी वर्कर्स को न दें तरजीह; भारतीय IT प्रोफेशल्स की बढ़ सकती हैं दिक्कतें

H-1B visa Row: Meta Platforms पर दायर एक मुकदमे के बाद इस मुद्दे को और गंभीरता से लिया जा रहा है।

Last Updated- March 04, 2025 | 3:15 PM IST
H-1B rules
Representational Image

H-1B visa Row: ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और इमिग्रेशन (immigration) से जुड़ी समस्याओं को हल करने के मकसद से विदेशी श्रमिकों की अवैध रूप से तरजीह देने के खिलाफ सख्त कदम उठाने की तैयारी की है। प्रशासन का मुख्य फोकस H-1B वीजा प्रोग्राम पर है। इसे लेकर आलोचकों का कहना है कि इस प्रोग्राम से विदेशी पेशेवरों का उन नौकरियों का सबसे ज्यादा लाभ मिलता है, जो अमेरिकी वर्कर्स को मिलनी चाहिए।

अमेरिकी वर्कर्स के खिलाफ भेदभाव पर कड़ी कार्रवाई

19 फरवरी 2025 को अमेरिकी Equal Employment Opportunity Commission (EEOC) ने कंपनियों को चेतावनी दी कि वे अमेरिकी नागरिकों की जगह विदेशी श्रमिकों को वरीयता न दें। EEOC की कार्यकारी अध्यक्ष एंड्रिया लुकास ने कहा कि रोजगार में राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव (national origin discrimination) कई इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है।

उन्होंने कहा, “अमेरिकी वर्कर्स के खिलाफ गैरकानूनी भेदभाव, जो Title VII कानून का उल्लंघन है। यह पूरे देश में एक बड़ी समस्या है। कई कंपनियां अवैध प्रवासियों, प्रवासी श्रमिकों और वीजा धारकों को अमेरिकी वर्कर्स से ज्यादा प्राथमिकता देती हैं। यह सीधे तौर पर फेडरल रोजगार कानून का उल्लंघन है। इस तरह के गैरकानूनी भेदभाव पर सख्ती से कार्रवाई करने से कंपनियों के लिए अवैध विदेशी वर्कर्स को भर्ती कम होगी और अमेरिकी इमीग्रेशन सिस्टम के दुरुपयोग पर भी लगाम लगेगी।”

लुकास ने आगे कहा, “अगर कोई नियोक्ता (employer) या अन्य (entity) अमेरिकी इमीग्रेशन संकट को बढ़ा रही है, या अमेरिकी वर्कर्स के खिलाफ अवैध तरीके से प्राथमिकता देकर इमीग्रेशन सिस्टम का दुरुपयोग कर रही है, तो उसे तुरंत रोकना होगा। कानून सभी पर लागू होता है और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। EEOC सभी वर्कर्स को भेदभाव से बचाने के लिए काम कर रहा है, जिसमें अमेरिकी वर्कर्स भी शामिल हैं।”

EEOC ने घोषणा की है कि वह उन नियोक्ताओं, स्टाफिंग एजेंसियों और अन्य कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगा, जो इस कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।

H-1B वीजा प्रोग्राम के अंतर्गत अमेरिकी कंपनियों को टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मेडिकल सांइसेस जैसे सेक्टर्स में हाई ​स्किल वाले विदेशी पेशेवरों को भर्ती करती हैं। हालांकि, इस प्रोग्राम की आलोचना इसलिए की जाती है क्योंकि इससे अमेरिकी वर्कर्स की नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं।

EEOC ने बताया कि कुछ कंपनियां विदेशी वर्कर्स को कई वजहों से तरजीह दे रही हैं। इनमें कम लेबर कॉस्ट, श्रम कानूनों की कम जानकारी, कस्टमर्स या क्लाइंट्स की विदेशी वर्कर्स को प्राथमिकता और विदेशी वर्कर्स के काम करने का कमिटमेंट शामिल हैं। कुछ मामलों में वेतन से जुड़े नियमों का फायदा उठाकर कंपनियां कम भुगतान करती हैं। हालांकि, American Immigration Council का दावा है कि H-1B प्रोग्राम अमेरिकी श्रमिकों को नुकसान नहीं पहुंचाता है। 2021 में H-1B वीजा धारकों का औसत वेतन $1,08,000 था, जबकि अमेरिका में सामान्य वर्कर्स का औसत वेतन $45,760 था।

Meta Platforms पर एक मुकदमे के बाद मामला हुआ गंभीर

Meta Platforms पर दायर एक मुकदमे के बाद इस मुद्दे को और गंभीरता से लिया जा रहा है। जिसमें आरोप लगाया गया कि कंपनी ने वीजा धारकों को अमेरिकी उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा प्राथमिकता दी, जिससे भर्ती लागत में कमी आई। एक फेडरल जज ने हाल ही में इस मामले को आगे बढ़ाने की मंजूरी दी, जिससे अमेरिकी टेक कंपनियों द्वारा विदेशी वर्कर्स पर निर्भरता को लेकर बहस तेज हो गई है।

पिछले कुछ सालों में ट्रंप और बाइडेन प्रशासन ने H-1B नियमों को सख्त करने के लिए कदम उठाए हैं। जिनमें नियोक्ताओं की गहन जांच और न्यूनतम वेतन जरूरतों को बढ़ाना शामिल है। इसके बावजूद, H-1B वीजा की मांग लगातार बढ़ रही है और हर साल तय सीमा जल्दी भर जाती है।

भारतीय वर्कर्स पर क्या होगा असर

H-1B वीजा प्रोग्राम से सबसे ज्यादा फायदा भारतीय पेशेवरों को मिलता है। अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच जारी किए गए कुल H-1B वीजा में से 72.3% भारतीय नागरिकों को मिले। अगर इस कार्यक्रम में बदलाव किए जाते हैं, तो इसका सीधा असर अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और अन्य विशेषज्ञों पर पड़ेगा।

भारत सरकार भी इस मुद्दे को गंभीरता से देख रही है। हाल ही में संसद के बजट सत्र में, विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा था कि कुशल भारतीय पेशेवरों का आवागमन भारत और अमेरिका दोनों के लिए खासकर तकनीकी और इनोवेशन के क्षेत्रों में फायदेमंद रहा है। उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार अमेरिकी प्रशासन और अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ लगातार चर्चा कर रही है, ताकि H-1B वीजा से जुड़े सभी मुद्दों को सही तरीके से संभाला जा सके।

H-1B Visa: सख्ती से अमेरिका को हो सकता है नुकसान

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका H-1B वीजा को और सख्त करता है, तो इससे ग्लोबल टैलेंट अन्य देशों की ओर रुख कर सकती हैं। किंग स्टब एंड कासिवा (King Stubb & Kasiva) के मैनेजिंग पार्टनर जिदेश कुमार ने कहा, H-1B वीजा अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए खासकर तकनीक, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में जरूरी है। टेक कंपनियां और स्टार्टअप्स H-1B प्रोफेशनल्स पर निर्भर हैं। ये लोग नए इनोवेशन और रिसर्च में अहम भूमिका निभाते हैं। कई H-1B धारक बाद में उद्यमी (entrepreneurs) बन जाते हैं, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में नौकरियां और विकास बढ़ता है।

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि H-1B वीजा को सख्त करने से प्रतिभाशाली पेशेवर कनाडा या यूके जैसे देशों का रुख कर सकते हैं। जिसका असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

First Published - March 4, 2025 | 3:15 PM IST

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