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डॉनल्ड ट्रंप की जीत से भारत पर क्या होगा असर? जानें ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का सुरक्षा और व्यापार पर प्रभाव

ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में 'अमेरिका फर्स्ट' नीति पर जोर दिया, जिसमें सख्त प्रवासी नियम और विदेशों के साथ अलग-थलग रहकर काम करने की सोच शामिल है।

Last Updated- November 06, 2024 | 6:19 PM IST
File Photo: Former US President Donald Trump

डॉनल्ड ट्रंप ने कड़े मुकाबले में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर वापसी की है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति पर जोर दिया, जिसमें सख्त प्रवासी नियम और विदेशों के साथ अलग-थलग रहकर काम करने की सोच शामिल है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की प्रवास, व्यापार और विदेश नीतियां इसी सोच पर आधारित रहेंगी, जिसका असर भारत पर भी पड़ सकता है। ट्रंप की वापसी का भारत के लिए क्या मतलब है, इसे हमने दो मुख्य फायदों और दो मुख्य नुकसानों में समझाया है।

फायदा: चीन पर सख्त रुख

हालांकि हाल ही में भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव में कुछ कमी आई है, लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में अभी भी पूरी तरह से भरोसा नहीं लौटा है। ऐसे में भारत को सतर्क रहना होगा। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से उम्मीद है कि वे चीन पर बाइडन से ज्यादा सख्त रहेंगे, जो भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है।

हालांकि, कुछ बातें ध्यान देने की हैं। जब चुनाव हो रहे थे, तब चीनी विशेषज्ञों ने कहा था कि चाहे ट्रंप जीतें या बाइडन, दोनों ही चीन के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स में विशेषज्ञ युन सन के अनुसार, अगर बाइडन का दूसरा कार्यकाल होता, तो शायद दोनों देशों के बीच संबंध थोड़े स्थिर रहते, क्योंकि उनकी चीन के खिलाफ रणनीति आर्थिक और कूटनीतिक रूप से काफी असरदार रही है।

चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का रवैया अमेरिका के सहयोगियों के लिए लंबे समय में चीन के पक्ष में हो सकता है, लेकिन शॉर्ट टर्म में ट्रंप की “अनिश्चितता और दबाव की नीति” चीन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। चीन की नजर में ट्रंप का विकल्प कम पसंदीदा माना गया।

ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने चीन को साफ तौर पर एक खतरे और प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा। उनकी नीतियों ने चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश की। भारत के लिए खास बात यह है कि ट्रंप के कार्यकाल में 2017 में ‘क्वाड’ समूह को फिर से सक्रिय किया गया, जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, और जिसका लक्ष्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को सुरक्षित और स्वतंत्र रखना है। हालांकि, बाइडन ने इस समूह को नेताओं के स्तर तक बढ़ावा दिया।

अमेरिका और भारत के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए बनाई गई साझेदारी दोनों पार्टियों का समर्थन पाती है, जो चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने के लिए है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर भी इस संबंध में बदलाव की संभावना नहीं है।

नुकसान: अलगाववाद की ओर बढ़ सकते हैं ट्रंप

अमेरिका की विदेश नीति में ट्रंप को एक “खतरनाक अलगाववादी” के रूप में देखा जाता है, और विशेषज्ञों को डर है कि उनके दूसरे कार्यकाल में वे “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा बनाए गए व्यवस्था” को कमजोर कर सकते हैं। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के वरिष्ठ सदस्य चार्ल्स कपचन ने फ़ॉरेन अफेयर्स पत्रिका में इसे लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं।

कपचन का मानना है कि ट्रंप वास्तव में अमेरिका द्वारा स्थापित व्यवस्था के कुछ प्रमुख हिस्सों को बदलने की कोशिश कर सकते हैं। यह ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण से मेल खाता है, जो लंबे समय में चीन के हित में हो सकता है।

ORF के विशिष्ट फेलो मनोज जोशी का कहना है कि “सबसे खराब स्थिति” में ट्रंप अमेरिका को NATO से बाहर कर सकते हैं, यूक्रेन को खुद संभालने के लिए छोड़ सकते हैं, और ताइवान को चीन के साथ अपनी व्यवस्था बनाने के लिए कह सकते हैं।

अगर ट्रंप ने सुरक्षा नीति बदली, तो अमेरिका पर निर्भर सहयोगियों के लिए चुनौती

मनोज जोशी के अनुसार, अगर ट्रंप ने अपने सहयोगियों की सुरक्षा से जुड़े कदम पीछे खींचे, तो अमेरिकी सहयोगी और साझेदार खुद को ऐसे हालात में पाएंगे, जहां उनकी सुरक्षा की गारंटी अमेरिका से नहीं मिलेगी।

हालांकि, यहां एक महत्वपूर्ण बात पर ध्यान देना जरूरी है। अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एक लेख के मुताबिक, ट्रंप पूरी तरह से “अलगाववादी” नहीं हैं। ट्रंप की शिकायत यह है कि अमेरिकी सहयोगी सुरक्षा के लिए पर्याप्त योगदान नहीं दे रहे हैं। उनका रुख है, “अगर आप भुगतान करेंगे, तो हम साथ रहेंगे।”

एक जुड़ी हुई और वैश्विक दुनिया में, अमेरिका की बढ़ती अलगाववाद की सोच उन देशों पर भी असर डाल सकती है जो सीधे किसी संघर्ष में शामिल नहीं हैं, जैसे कि भारत।

ORF के जोशी का यह भी मानना है कि ट्रंप का टैरिफ पर कड़ा रुख वैश्विक मुक्त व्यापार व्यवस्था को समाप्त कर सकता है, जिस पर पूरी दुनिया निर्भर है।

हाई टैरिफ भारत के लिए चुनौती

ट्रंप का दोबारा राष्ट्रपति बनना भारत के लिए व्यापार में नई चुनौतियां ला सकता है। चुनाव प्रचार के दौरान, ट्रंप ने भारत को “बड़ा (व्यापार) अपराधी” कहा था, जिससे यह आशंका बढ़ गई है कि उनके पहले कार्यकाल के व्यापार तनाव फिर उभर सकते हैं। भारत को डर है कि ट्रंप अमेरिकी बाजार में उसके 75 अरब डॉलर से अधिक के निर्यात पर हाई टैरिफ लगा सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से आईटी सेवाएं, दवाएं और आभूषण शामिल हैं।

गौरतलब है कि ट्रंप ने चुनाव में वादा किया था कि अगर वे दोबारा चुने गए, तो वे चीन से आने वाले सभी उत्पादों पर 60% और बाकी दुनिया से आने वाले उत्पादों पर 10% टैरिफ लगाने की योजना बनाएंगे।

भारत के लिए टैरिफ का खतरा, लेकिन ‘चाइना प्लस वन’ से मिल सकता है फायदा

अगर ट्रंप की नीतियां लागू होती हैं, तो यह उनके पहले कार्यकाल की तरह व्यापार पर असर डाल सकती हैं। पहले कार्यकाल में ट्रंप ने ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप और ट्रांसअटलांटिक ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप जैसी समझौतों को खत्म कर दिया था, नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (NAFTA) को दोबारा तय किया, और कई टैरिफ लगाए थे।

फायदा: ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति

हालांकि, कड़े व्यापार रवैये के बावजूद ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। मार्केट रिसर्च फर्म नोमुरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप के कार्यकाल में भारत पर अमेरिकी व्यापार सरप्लस की जांच और संभावित प्रतिबंध लगाने का दबाव रहेगा। इसके बावजूद, अमेरिका की ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति भारत के लिए अवसर ला सकती है।

‘चाइना प्लस वन’ एक व्यापार रणनीति है, जिसमें कंपनियां चीन पर निर्भरता घटाने के लिए अन्य देशों, जैसे भारत में अपने संचालन को बढ़ा रही हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीन से आयातित सामान पर टैरिफ और मैन्युफैक्चरिंग को घरेलू स्तर पर लाने पर जोर के चलते यह रणनीति तेजी से उभरी थी। इस बार भी ट्रंप की वापसी से यह रुख और मजबूत हो सकता है, जिससे भारत जैसे देशों में निवेश और सप्लाई चेन विस्तार को बढ़ावा मिलेगा।

First Published - November 6, 2024 | 6:19 PM IST

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