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WTO MC13: डब्ल्यूटीओ में नहीं बनी प्रमुख मसलों पर कोई सहमति; भारत के लिए क्या रहे परिणाम, फायदे या विफलताएं?

WTO MC13 में अनाज के भंडारण के मसले पर भारत की मांग का कोई परिणाम नहीं निकला है, वहीं पीयूष गोयल ने कहा कि वह परिणामों से संतुष्ट हैं।

Last Updated- March 03, 2024 | 9:37 PM IST
WTO MC13: No consensus on major issues in WTO; What were the results, advantages or failures for India? WTO MC13: डब्ल्यूटीओ में नहीं बनी प्रमुख मसलों पर कोई सहमति; भारत के लिए क्या रहे परिणाम, फायदे या विफलताएं?

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी-13) में 5 दिन से अधिक चली गहन बातचीत के बावजूद आम सहमति नहीं बन पाई। यह सम्मेलन यथास्थिति के साथ समाप्त हुआ और अधिकांश प्रमुख मसलों पर बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

अधिक क्षमता और अत्यधिक मछली पकड़ने पर अंकुश के लिए सब्सिडी कम करने, खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक भंडारण को लेकर मतभेद बना रहा, जो भारत की प्राथमिकता में शामिल था। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का कोई परिणाम नहीं आया, वहीं देशों ने 2024 के अंत तक पूरी तरह से काम करने वाले और सभी सदस्यों के लिए सुलभ विवाद निपटान प्रणाली बनाने का फैसला किया है।

अनाज के भंडारण के मसले पर भारत की मांग का कोई परिणाम नहीं निकला है, वहीं वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वह परिणामों से संतुष्ट हैं, क्योंकि भारत किसानों के लाभ के लिए नीतियां बनाने में पूरी तरह सक्षम है।

बिजनेस स्टैंडर्ड ने एमसी-13 के परिणामों और भारत के लिए प्रमुख फायदों या विफलताओं पर नजर डाली है।

कृषि

भारत क्या चाहता थाः भारत व अन्य विकासशील देश चाहते थे कि सार्वजनिक भंडारण का स्थायी समाधान हो, जिसमें सरकार अनाज खरीदती है और घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्यान्न वितरण करती है। तमाम कृषि मसलों में यह भारत की प्राथमिकता में था।

परिणामः कृषि को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ। देशों के बीच मतभेद इतने अधिक थे कि हल नहीं हो सके। यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों का मानना है कि अगर उत्पादकों को कीमत का समर्थन देने के लिए सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम चलाया जाता है तो इससे अन्य देशों की खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

भारत के लिए क्या है इसका मतलबः ‘शांति प्रावधान’ के लाभ के कारण भारत के लिए कोई खतरा नहीं है। प्रावधान के कारण विकासशील देश सब्सिडी या गरीबों को मुफ्त अनाज देने पर भी कानूनी चुनौती से बच सकते हैं।

बेल्जियम के एनजीओ हुमुंडी में पॉलिसी ऑफिसर जोनास जैकार्ड ने कहा कि यह बातचीत ऐसे समय में हो रही थी, जब भारत और यूरोप में किसान आंदोलन कर रहे थे और वे ज्यादा नीतिगत सुरक्षा चाहते थे।

जैकार्ड ने कहा, ‘एक बार फिर डब्ल्यूटीओ ग्लोबल साउथ के किसानों की मांगों का जवाब नहीं दे सका है। खाद्य सुरक्षा के हिसाब से यह नाटकीय है क्योंकि इसने लाखों किसानों की आजीविका में सुधार के मसले को छोड़ दिया है।’

मछुआरों को सब्सिडी

भारत क्या चाहता थाः भारत सहमत था कि मत्स्य क्षेत्र को सब्सिडी दिए जाने से बहुत ज्यादा मछलियां पकड़ी जा रही हैं और नुकसानदेह सब्सिडी पर उन देशों को लगाम लगाना चाहिए, जो मछली मारने में लगे हैं। हालांकि विकासशील देशों व छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह अहम है, क्योंकि इससे खाद्य सुरक्षा और गरीब मछुआरों की आजीविका सुनिश्चित होती है, जो 200 नॉटिकल मील की सीमा में मछली पकड़ते हैं।

परिणामः सदस्य देश इस मसले पर कोई परिणाम दस्तावेज नहीं पेश कर सके और मंत्रिस्तरीय घोषणा में भी मत्स्य क्षेत्र की सब्सिडी का कोई उल्लेख नहीं है।

भारत के लिए इसका क्या है मतलबः भारत को कोई खतरा नहीं है क्योंकि भारत के मछुआरों को लाभ पहुंचाने की नीति बनाने के लिए संभावनाएं बरकरार हैं।

नैशनल फिशवर्कर्स फोरम, इंडिया के महासचिव ओलेंसियो सिमोस ने कहा कि इस तरह की वार्ताएं छोटे मछुआरों की आजीविका और उनकी मछली पकड़ने की क्षमता को लेकर खतरा पैदा करती रहती हैं। सिमोस ने कहा कि मछुआरों को कुछ प्रतिबंधों से बचाने के लिए सुधार किए गए हैं, लेकीन यह किसी समझौते को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।

ई-कॉमर्स

भारत क्या चाहता थाः भारत ई-कॉमर्स या इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन पर सीमा शुल्क से छूट जारी रखने का विरोध करता रहा है, क्योंकि इसका राजस्व संग्रह पर बुरा असर पड़ता है। भारत चाहता था कि छूट की संभावनाओं का आकलन किया जाए और अन्य देशों पर इसके असर का अध्ययन हो।

परिणामः डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश सहमत हुए हैं कि इलेट्रॉनिक प्रेषण पर सीमा शुल्क न लगाने की मौजूदा स्थिति अगले मंत्रिस्तरीय बैठक या 31 मार्च 2026 तक बरकरार रखा जाए, जो भी पहले हो।

भारत के लिए इसका क्या है मतलबः जस्ट नेट कोअलिशन के कोऑर्डिनेटर परमिंदर जीत सिंह के मुताबिक विश्व/भारत के लिए यह निराशाजनक है कि डब्ल्यूटीओ ने एक बार फिर सबसे ताकतवर कंपनियों, बड़ी तकनीकी कंपनियों के लिए कर छूट की अवधि बढ़ाने का फैसला किया है, जो वैश्विक स्तर पर काम कर रहे हैं। सिंह ने कहा कि विकासशील देशों को न सिर्फ बहु प्रतीक्षित कर राजस्व देने से इनकार कर दिया गया है बल्कि डिजिटल औद्योगीकरण के लिए नीतिगत संभावनाओं को भी नकार दिया है।

अन्य मसले

13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में घरेलू सेवा विनियमन और निवेश सुविधा जैसे गैर-व्यापारिक मुद्दों को लेकर विभिन्न बहुपक्षीय समझौतों को लेकर भी चर्चा हुई।

सेवाओ के घरेलू विनियमन पर एक समझौते को 72 सदस्य देशों के समर्थन से स्वीकार किया गया। चीन के नेतृत्व में इसी तरह के एक समझौते, इन्वेस्टमेंट प्रमोशन फॉर डेवलपमेंट को भारत और दक्षिण अफ्रीका ने रोक दिया, हालांकि उसे 120 से ज्यादा देशों का समर्थन था।

सैद्धांतिक रूप से भारत इस मंच पर बहुल समझौतों (प्लूरीलैटरल एग्रीमेंट) के खिलाफ था क्योंकि इससे बहुपक्षीय (मल्टीलैटरल) व्यापार ढांचा कमजोर पड़ सकता है। भारत डब्ल्यूटीओ में बहुल समझौतों की वैधता को लेकर सवाल उठाता रहा है।

उद्योग मंत्रालय के पूर्व अधिकारी और दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि ई-कॉमर्स, निवेश एमएसई जैसे नए मसले कुछ देशों के संयुक्त वक्तव्य पहल (जेएसआई) के माध्यम से डब्ल्यूटीओ के एजेंडे में चुपके से प्रवेश कर रहे हैं। जेएसआई भविष्य की चर्चा के लिए मंच तैयार कर सकते हैं, जिसमें सभी सदस्य शामिल होंगे।

First Published - March 3, 2024 | 9:37 PM IST

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