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एक वरिष्ठ बैंकर की जिंदगी का एक हफ्ता

Last Updated- May 03, 2023 | 11:31 PM IST
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के बदलते आयाम, Banking Credit: Changing Dimensions of the Indian Banking Sector

अपने पिछले स्तंभ में मैंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में कार्य संस्कृति के बारे लिखा था। उसे पढ़ने के बाद कई बैंकर उत्साहित हो गए और कई वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने अनुभवों के साथ मुझसे संपर्क भी साधा। जो लोग निजी क्षेत्र के बैंकों में काम करने करते हैं उनमें भी सभी अपने काम से संतुष्ट नहीं हैं।

उनका कहना है कि कारोबारी लक्ष्य प्राप्त नहीं करने के बाद उन्हें नौकरी जाने की तलवार हमेशा सिर पर लटकती नजर आती है। मेरी सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के महाप्रबंधक से बातचीत हुई। इस बातचीत को मैं एक डायरी के रूप में उद्धृत कर रहा हूं। इससे यह समझने में आसानी होगी कि बैंकर अपने काम और व्यक्तिगत जीवन में कैसे संतुलन स्थापित करते हैं।

रविवारः यह मेरे लिए अवकाश का दिन है। कल यानी सोमवार को निदेशक मंडल की बैठक होने वाली है। मेरे पास हरेक छोटी से जानकारी उपलब्ध होना जरूरी है क्योंकि कोई कसर रहने पर सरकार की ओर से नियुक्त प्रतिनिधि खरी-खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। हालांकि, उनकी प्रतिक्रिया सीधे प्रबंध निदेशक (एमडी) एवं मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) के लिए होती है लेकिन मैं स्वयं को नैतिक तौर पर इसके लिए स्वयं को उत्तरदायी मानता हूं।

सोमवारः एक निदेशक के देरी से पहुंचने से बोर्ड बैठक समय पर शुरू नहीं हो पाई। उनके पहुंचने तक महाप्रबंधक (वसूली) को प्रस्तुति (प्रजेंटेशन) देने के लिए कहा गया। अफसोस की बात कि वह इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे। जैसा लग रहा था, सरकार के प्रतिनिधि ने कटाक्ष किया, ‘श्रीमान प्रबंध निदेशक, आप अपने महाप्रबंधक को पूरी तरह तैयार रहने की हिदायत दें या उनका विकल्प खोजने के लिए तैयार रहें। हम यहां समय बरबाद करने नहीं आए हैं।’ हम गैर-निष्पादित आस्तियों में बढ़ोतरी रोकने में सफल जरूर रहे थे लेकिन बैठक में सद्भावपूर्ण माहौल नहीं बन पाया। मैं भी अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। साढ़े 12 बजे की जगह मुझे साढ़े 3 बजे प्रस्तुति देने के लिए कहा गया। मैं दोपहर का खाना भी नहीं खा पाया। बैठक देर शाम तक जारी रही और एक पांच सितारा होटल में रात के भोजन एवं पेय पदार्थों का इंतजाम था। मैं खाने या पीने के मूड में नहीं था। मुझे गोल्ड लोन का भारी भरकम लक्ष्य थमा दिया गया।

मंगलवारः बैंकिंग कारोबार की भाषा में आज का दिन गोल्ड लोन मंजूरी का शुरुआती दिन था। सभी बैंक सोना गिरवी रखकर ऋण देना चाहते हैं। हमें भी इस कारोबार में आगे बढ़ना है। कागज पर तो गोल्ड लोन मंजूर होना और रकम आवंटन चुटकी भर का काम लगता है मगर ऐसा नहीं है। मार्जिन अच्छा रहने पर गोल्ड लोन की वसूली मुश्किल काम नहीं है। ग्राहकों द्वारा ऋण नहीं चुकाने की स्थिति में हम स्वर्ण आभूषण बेच कर रकम वसूल सकते हैं। मगर सोना नकली या मिलावटी होता है तो इसे परखना आसान नहीं होता। कभी-कभी चोरी किया गया सोना भी बैंकों में गिरवी रखा जाता है। जितने भी ऋण हैं उनमें गोल्ड लोन चुकाने में ग्राहक सबसे आगे रहते हैं।

वे रकम चुकाकर सोना (आभूषण) जल्द से जल्द अपने घर ले आना चाहते हैं। मैंने गोल्ड ऋण कारोबार बढ़ाने के लिए एक रणनीति तैयार की और अपने सहकर्मियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का आयोजन भी किया। मगर यह सब इतना आसान नहीं था। हमें गोल्ड ऋण में आगे बढ़ने के लिए दूसरे बैंकों खासकर एनबीएफसी से मुकाबला करना है जो इन दिनों इस कारोबारी खंड में सबसे आगे चल रहे हैं। यह दिन हमारे लिए विशेष उपलब्धियों वाला नहीं रहा। एक कार्यकारी निदेशक ने तो मुझे और मेहनत से काम करने की नसीहत दे डाली।

बुधवारः आज भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के स्थानीय कार्यालय के अधिकारी सालाना वित्तीय समीक्षा के मौके पर महाप्रबंधकों के साथ चर्चा के लिए आ धमके। जैसी उम्मीद की जा रही थी, इस चर्चा में विषय क्रेडिट कार्ड एवं एनपीए थे। आरबीआई के प्रतिनिधि ने क्रेडिट कार्ड विभाग से काफी सवाल पूछे। हमने सभी सवालों के जवाब तो दिए लेकिन वह संतुष्ट नहीं दिखे। आरबीआई अधिकारी ने हमें रिपोर्ट की लेखाबंदी के लिए मुंबई में रहने के लिए कहा। यह सुनकर हमारे प्रबंध निदेशक खुश नहीं हुए। शाम को मैं कृषि पर संसदीय समिति के सदस्यों के स्वागत के लिए पहुंचा।

कृषि क्षेत्र में ऋण आवंटन की दर खराब रहने के कारणों की विवेचना के लिए कल बैठक होगी। समिति के सभी सदस्य व्यवहार कुशल नहीं थे। उनमें एक ने मुझे अपना हैंड बैग थमा दिया। वह कार में एसी से खुश नहीं थे और पूछा कि ऐसी कार क्यों बुक की गई। वह ठहरने की व्यवस्था से भी खिन्न ही दिखे।

गुरुवारः समिति के अध्यक्ष व्यवहार कुशल व्यक्ति थे। किसानों को पर्याप्त ऋण नहीं देने के लिए महाप्रबंधक (कृषि) की खिंचाई हुई। समिति के एक सदस्य ने तो यहां तक कह दिया कि महाप्रबंधक अपने उत्तरदायित्व के निर्वहन में विफल रहे हैं इसलिए उन्हें वेतन लेने पर शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिए। राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक होने के नाते हमने कल आवश्यक बैठक बुलाई है जिसमें मुख्यमंत्री बैंकों के प्रदर्शन की समीक्षा करेंगे। मैं सबेरे ही सोने चला गया मगर नींद काफी देर से आई।

शुक्रवारः मुझे इस बात का पूरा भान था कि एसएलबीसी बैठक आसान नहीं रहने जा रही है। राज्य में चुनाव होने वाले हैं इसलिए यह सोचना सही है कि सरकार बैंकों के कामकाज की समीक्षा जरूर करेंगे। मुख्यमंत्री के सलाहकार की प्रतिक्रिया काफी पैनी थी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में बैंकों ने कोई योगदान नहीं दिया है और न ही किसानों को ठीक ढंग से ऋण आवंटित किए गए हैं। उन्होंने राज्य के खजांची को उन बैंकों को कोई रकम नहीं देने के लिए कहा जिन्होंने राज्य सरकार के निर्देशों का अनुपालन नहीं किया है। इस दौरान मुख्यमंत्री शांत बैठे रहे मगर उनके सलाहकार ने बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

शनिवारः साल का अंतिम वित्तीय महीना होने के कारण केंद्रीय सांविधिक अंकेक्षक (ऑडिटर) वसूली और क्रेडिट कार्ड टीम के साथ बैठक करना चाहते थे ताकि एनपीए का आंकड़ा सामने आ सके। यह प्रक्रिया महाप्रबंधकों और अन्य बड़े अधिकारियों के लिए चिंता का विषय होती है क्योंकि एनपीए बढ़ने से बैंकों को अधिक प्रावधान करने पड़ते हैं। संयोग से हमारा प्रदर्शन अच्छा रहा था। मगर अंकेक्षकों ने अधिक एनपीए की पहचान कर ली और अब इसका परिणाम यह होगा कि टीयर-1 पूंजी में कमी आएगी।

चर्चा मध्य रात्रि तक जारी रही। हमें घर पहुंचते-पहुंचते सुबह हो गई। हमें इस रविवार को भी कार्यालय जाना है क्योंकि अंकेक्षकों के साथ चर्चा पूरी नहीं हुई है। इसके अलावा सोमवार को एक खास ऋण खाते पर बैठक होगी। इस खाते को मुख्य कर्जदाता ने पहले ही फर्जीवाड़ा घोषित कर दिया है। हमें भी कोई न कोई निर्णय लेना है।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लि. में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published - May 3, 2023 | 11:31 PM IST

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