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बैंकिंग साख: ग्रामीण क्षेत्रों को ऋण चक्र के जाल से मिले मुक्ति

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ‘दबाव देकर दिए जाने वाले ऋण’ के बढ़ते मामले पर अब ध्यान देना शुरू किया है।

Last Updated- November 15, 2024 | 9:37 PM IST
Perils of the 'push' loan phenomenon and rural India's rising debt burden ग्रामीण क्षेत्रों को ऋण चक्र के जाल से मिले मुक्ति

भारत के एफएमसीजी क्षेत्र में जुलाई-सितंबर तिमाही में मूल्य के हिसाब से 5.7 प्रतिशत और कारोबार के हिसाब से 4.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो ग्रामीण क्षेत्रों की मांग की बदौलत संभव हुआ है। कंज्यूमर इंटेलिजेंस फर्म नील्सनआईक्यू ने हाल ही में अपनी तिमाही रिपोर्ट में यह जानकारी दी। लेकिन कई लोगों का मानना है कि भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में ऋण का बढ़ता स्तर चिंता का विषय है।

कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) ऐसी स्थिति के बावजूद दांव आजमाने की कोशिश करते हुए हालात को और जटिल बना रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ‘दबाव देकर दिए जाने वाले ऋण’ के बढ़ते मामले पर अब ध्यान देना शुरू किया है। ऐसे ऋणों की मार्केटिंग बेहद आक्रामक तरीके से ऐसे की जाती है कि ऋण लेने वाले इनके दीर्घकालिक वित्तीय परिणामों से वाकिफ नहीं हो पाते हैं।

ऋण संकट के मूल कारणों में से एक, देश के ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का अभाव है। आर्थिक वृद्धि का लाभ भी पर्याप्त रूप से रोजगार सृजन में नहीं दिखा है, खासतौर पर गैर-कृषि क्षेत्रों में। ऋण की आसान पहुंच और चौबीस घंटे डिलिवरी सेवाओं के प्रसार से ग्रामीण क्षेत्रों में खपत की स्थिति बढ़ी है। लोगों को गैर-जरूरी वस्तुओं और सेवाओं के वास्ते ऋण लेने के लिए लुभाया जा रहा है जिससे वे और अधिक कर्ज के जंजाल में फंस रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के परिवार, रोजमर्रा की अपनी जरूरतों के लिए भी ऋण की राशि पर निर्भर हो रहे हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आय के स्रोत अनिश्चित हैं और यह मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यह अप्रत्याशित मॉनसून, जिंसों की उतार-चढ़ाव वाली कीमतों और बढ़ती इनपुट लागत से भी प्रभावित होती है। कुछ एनबीएफसी इस अंतर का फायदा उठा रहे हैं और रोजमर्रा की खपत के लिए ऋण अधिक ब्याज दरों पर देते हैं। इसमें ऋणों का रॉलओवर चक्र एक अहम हिस्सा है।

इसका सबसे बड़ा संस्थागत उदाहरण फसल ऋण है। सरकार हर वर्ष, किसानों को फसल ऋण का वितरण करने के लिए बैंकों के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करती है। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बैंकों पर दबाव होता है जिसके कारण अक्सर ऋणों का वितरण तेजी से यह सुनिश्चित किए बिना ही कर दिया जाता है कि इनका उपयोग उत्पादक तरीके से किया जाएगा या नहीं। इस ऋण का इस्तेमाल उत्पादक कृषि निवेश के लिए किए जाने के बजाय, तत्काल जरूरतों को पूरा करने या पुराने ऋण का भुगतान करने के लिए किया जाता है जिससे ग्रामीण ऋण संकट गहरा जाता है।

अब यह प्रथा सामान्य एनबीएफसी के साथ-साथ माइक्रोफाइनैंस से जुड़े लोगों तक फैल गई है। वे ऋण का रॉलओवर कर रहे हैं, जिससे उधारकर्ताओं को और अधिक कर्ज में धकेला जा रहा है।

एनबीएफसी ने ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र की सीमित पहुंच के कारण बनी अंतराल जैसी स्थिति को भरने के मकसद से यह कदम बढ़ाया है। हालांकि, उनकी ब्याज दरें अक्सर बैंकों द्वारा लगाए जाने वाली ब्याज दरों से कहीं अधिक होती हैं और यह ऋणकर्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डाल रही हैं।

आरबीआई ने अधिक ब्याज दरों को लेकर चिंता जताई है खासतौर पर सूक्ष्म ऋणों के संदर्भ में। जब बैंकिंग नियामक ने मार्च 2022 में ब्याज दरों को मुक्त कर दिया, उसके बाद पिछले कुछ वर्षों से ऐसा हुआ है क्योंकि पहले ऋण दरें, फंड की लागत से जुड़ी हुई थी। एक बार जब इसे मुक्त कर दिया गया तब लगभग सभी सूक्ष्म ऋणदाताओं ने दरों में बढ़ोतरी की। शुरुआत में, यह बहाना दिया गया था कि कोविड की अवधि के दौरान हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए कुछ और कमाई करने की जरूरत थी। इस वक्त ऐसा कोई बहाना नहीं है।

इत्तफाक से कुछ बैंक जिनकी सार्वजनिक जमाओं तक कम लागत के साथ पहुंच है वे भी एनबीएफसी की तुलना में कभी-कभी सूक्ष्म ऋण पर, उच्च ब्याज दर वसूल रहे हैं। अगर एनबीएफसी की जांच-पड़ताल उनके ब्याज दरों के लिए की जा रही है तब क्या इस लिहाज से बैंकों की जांच नहीं की जानी चाहिए? ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की लागत कर्ज लेने वाले की भुगतान क्षमता के मुकाबले गैर-आनुपातिक तरीके से बढ़ रही है जिसके चलते ऋण का चक्र और जटिल हो रहा है।

ग्लोबल डेवलपमेंट इन्क्यूबेटर (जीडीआई) की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की आमदनी का प्राथमिक स्रोत खेती है लेकिन इनमें से अधिकांश लोग बेहतर मौके पाने के लिए खेती छोड़ने के लिए तैयार हैं। ग्लोबल ऑपर्च्युनिटी यूथ नेटवर्क डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट और ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन की साझेदारी से तैयार की गई, ‘स्टेट ऑफ रूरल यूथ इंम्प्लॉयमेंट-2024’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के ग्रामीण हिस्से में तकरीबन 5,000 लोगों का सर्वेक्षण किया गया जिनमें से 70-85 फीसदी लोगों का कहना है कि वे किसी विनिर्माण, रिटेल या कारोबारी क्षेत्र में नौकरी करना चाहते हैं।

रिपोर्ट लॉन्च करते हुए भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा, ‘कृषि को वृद्धि का इंजन होना चाहिए और फिर से इसका चलन बढ़ना चाहिए।’ गैर लाभकारी संस्थानों, उद्योग और अकादमिक जगत के लोगों को सहयोग कर इस क्षेत्र को रोजगार के लिहाज से व्यवहारिक विकल्प के तौर पर पेश करना चाहिए।

देश के ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ते ऋण के संकट को लेकर कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और इसके लिए विचार करने के लिए कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी है।

  • रोजगार सृजन: उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए रोजगार के टिकाऊ अवसर तैयार करने की जरूरत है।
  • ऋण उपयोगिताः ऋण वितरण के बड़े लक्ष्य तय करने के बजाय सरकार और वित्तीय संस्थानों को यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए कि ऋणों का इस्तेमाल विशेषतौर पर कृषि में बेहद उत्पादक तरीके से किया जाता है।
  • ब्याज दरों का नियमन: आरबीआई को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि एनबीएफसी और बैंक, किफायती ब्याज दरों पर ऋण की पेशकश करें
  • जागरूकता और वित्तीय साक्षरताः ग्रामीण ऋणकर्ताओं को अधिक ऋण लेने के नतीजे और वित्तीय योजना की अहमियत के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।

अगर इन मसलों का हल व्यापक तरीके से नहीं किया जाता है तब ग्रामीण क्षेत्र की ऋण वृद्धि जारी रह सकती है और इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के इस संकट के समाधान पर विचार करने की आवश्यकता है।

First Published - November 15, 2024 | 9:37 PM IST

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