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बैंकिंग साख: बैंकिंग क्षेत्र में इतनी कम क्यों हैं महिलाएं

महिला-पुरुष में अंतर की समस्या केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर इस अंतर की समस्या को हल करने में 132 साल लगेंगे!

Last Updated- October 12, 2023 | 9:48 PM IST
Why there are so few women in banking

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुजरात विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की बात कहते हुए राजनीति में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने को लेकर सितंबर में अपील की थी।

जुलाई में द न्यू यॉर्कर में लुइजा थॉमस ने लिखा, ‘स्पेन ने 2015 में पहली बार महिला विश्व कप के लिए क्वालिफाई किया था। इसी वर्ष मशहूर एफसी बार्सिलोना की महिला टीम, बार्सिलोना फेमेनी एक पेशेवर टीम बन गई।’ हालांकि महिला टीम तो वर्ष 1970 से ही थी, जब पुरुषों के क्लब वाली महिला समर्थकों के एक समूह ने बच्चों के अस्पताल के लिए पैसे जुटाने के मकसद से सफेद शर्ट, नीले रंग के शॉर्ट्स और बार्का मोजे पहनकर बार्सिलोना के स्टेडियम, कैंप नोउ में एक मैच खेला था।

कई दशकों तक उन्होंने शाम को प्रशिक्षण सत्र भी आयोजित कराए क्योंकि इस टीम की खिलाड़ी या तो छात्राएं थीं या फिर दिन में नौकरी करती थीं। इस फुटबॉल क्लब ने 2002 में आधिकारिक तौर पर महिला टीम को मान्यता दी और 2011 में, फेमेनी ने पहली बार ला लीगा जीतने में कामयाबी पाई जो उनका पहला आधिकारिक खिताब था।

जब एफसी बार्सिलोना ने आखिरकार महिला टीम में निवेश करने का फैसला किया तब उसके पास दो ही विकल्प थे कि वह एक चैंपियनशिप टीम खरीदें या एक टीम तैयार करे। इसने दूसरा विकल्प चुना। इसने मुख्य रूप से खिलाड़ियों के विकास पर ध्यान देते हुए पोषण विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों, फिटनेस कोच, चिकित्सा कर्मचारियों, एक किट प्रबंधक और तकनीकी कर्मचारियों की भर्ती की।

यह बेहतर तंत्र बनाकर बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र सहित हर क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को मजबूती देने का तरीका है।

महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में पहले कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं..

# विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की 2023 ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार, 146 देशों में से महिला-पुरुष समानता के लिहाज से भारत 127वें पायदान पर है।

#2021 के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 82 प्रतिशत महिलाओं को असंगठित क्षेत्र में रोजगार मिला है।

# आईएलओ का यह भी कहना है कि 2023 तक भारत में महिलाओं के वेतन में अंतर 27 प्रतिशत है।

# भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मुताबिक सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 24 प्रतिशत है।

# वैश्विक लेखा नेटवर्क एमजीआई वर्ल्डवाइड के अनुसार भारत महिलाओं को समान अवसर देकर 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 770 अरब डॉलर तक जोड़ सकता है।

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महिला-पुरुष में अंतर की समस्या केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर इस अंतर की समस्या को हल करने में 132 साल लगेंगे!

ग्रांट थॉर्नटन के ‘कारोबार में महिलाओं’ से जुड़े विषय के ताजा शोध में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर अब मझोले स्तर के मार्केट बिजनेस में करीब 32.4 प्रतिशत महिलाएं वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर आसीन हैं और पिछले एक साल में इसमें महज 1 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी हुई है।

जब ग्रांट थॉर्नटन ने 2004 में यह अध्ययन शुरू किया था तब यह लगभग 19.4 प्रतिशत था।

सॉफ्टवेयर एक ऐसा सेगमेंट है जिसमें भारत में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। विशेषज्ञ कर्मचारी कंपनी एक्सफेनो के आंकड़ों के अनुसार, पांच बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में कुल महिला कर्मचारियों की संख्या में 77 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि पुरुष कर्मचारियों में 62 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में इन पांच कंपनियों में महिला कर्मचारियों की हिस्सेदारी 34.1 प्रतिशत रही है जो पांच साल पहले 31.7 प्रतिशत थी। हालांकि, बैंकिंग क्षेत्र के साथ ऐसा नहीं है।

तरजानी वकील 1996 में भारतीय निर्यात-आयात बैंक में शीर्ष पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं। रंजना कुमार, चार साल बाद इंडियन बैंक की चेयरपर्सन एवं प्रबंध निदेशक बनीं। उन्होंने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) का भी नेतृत्व किया।

एक वाणिज्यिक बैंक में दूसरी महिला प्रमुख, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ( वर्ष 2005) की एचए दौरवाला बनीं। बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद किसी महिला को बैंक का सीईओ बनने में तीन दशक से थोड़ा अधिक समय लगा। इसके अलावा नैना लाल किदवई भी हैं जो वर्ष 2006 में एचएसबीसी इंडिया की सीईओ बनीं।

आरबीआई की जहां एक महिला को डिप्टी गवर्नर के पद पर पहुंचने में 68 साल लग गए थे (किशोरी जे उदेशी ने जून 2003 में यह पदभार संभाला था)। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के शीर्ष पद पर 2022 में पहली बार महिला आसीन हुई। वहीं देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक में यह इंतजार करीब 206 साल लंबा रहा और आखिरकार अक्टूबर 2013 में अरुंधती भट्टाचार्य ने बैंक के शीर्ष पद का पदभार ग्रहण किया।

वर्ष 2010 की अनिल खंडेलवाल की बैंकिंग क्षेत्र में मानव संसाधन (एचआर) से जुड़ी रिपोर्ट में पाया गया कि उस वक्त सरकारी बैंकों (पीएसबी) में महिलाओं की संख्या 17 प्रतिशत थी और इनमें से केवल 2.7 प्रतिशत ही अधिकारी पदों पर आसीन थीं। उस वक्त से ही अनुपात में सुधार हुआ है लेकिन यह ज्यादा सुधार नहीं कहा जा सकता है। वित्त वर्ष 2007 और वित्त वर्ष 2021 के बीच सरकारी बैंकों में महिला कर्मचारियों के अनुपात में 12.7 प्रतिशत अंक बढ़ोतरी हुई और यह 14.3 प्रतिशत से बढ़कर 27 प्रतिशत हो गई।

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में इस अवधि के दौरान महिला कर्मचारियों का अनुपात 9.1 प्रतिशत अंक बढ़कर 14.8 प्रतिशत से 23.9 प्रतिशत हो गया है। निजी बैंकों और विदेशी बैंकों के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में मामूली वृद्धि देखी गई है।

इस संदर्भ में एशिया-प्रशांत दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला क्षेत्र है और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना और आरबीआई में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के कारण स्कोर कम हो गया है। हालांकि इसका प्रदर्शन पहले से ही खराब था। आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कुल कर्मचारियों की संख्या होती है, लेकिन इसमें स्त्री-पुरुष के हिसाब से कर्मचारियों में अंतर का ब्योरा नहीं होता है।

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बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, 1 जनवरी, 2023 तक 13,000 से अधिक आरबीआई कर्मचारियों में से 23 प्रतिशत महिलाएं थीं। सीएफए इंस्टीट्यूट की मार्च 2023 की एक रिपोर्ट (माइंड द जेंडर गैप) में बताया गया है कि भारत और अन्य जगहों पर अधिकांश महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन शोषण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे इसकी रिपोर्ट नहीं करती हैं।

इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कंपनियों के कौशल प्रशिक्षण में महिला-पुरुष जैसा कोई भेद नहीं था बल्कि अंतर्निहित पूर्वग्रहों पर जोर दिया गया जिसके चलते महिलाओं को लेकर की गई समीक्षा प्रभावित होती है और इसके चलते उनका करियर भी प्रभावित होता है।

महिला-पुरुष के बीच समानता हासिल करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह हो सकता है कि कंपनियां महिलाओं के काम में थोड़ा लचीलापन लाए। छह महीने का मातृत्व अवकाश और दो साल तक बच्चों की देखभाल जैसी नीतियां प्रगतिशील कदम हैं, लेकिन महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं हैं।

ग्रांट थॉर्नटन की रिपोर्ट में कहा गया है कि जो संस्थाएं या कंपनियां महिलाओं को घर-दफ्तर से काम करने के मिले-जुले विकल्प देती हैं या घर से काम करने की सहूलियत भरी पेशकश के चलते वरिष्ठ प्रबंधन के स्तर पर मौजूद महिलाओं का प्रदर्शन बेहतर हो जाता है। पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासन (ईएसजी) मानदंड भी नियमों को बदल सकते हैं क्योंकि कंपनियां नेतृत्वकर्ताओं की टीम में विविधता लाना चाहती हैं। बिना विविधता लाए उनके लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो सकता है।

First Published - October 12, 2023 | 9:48 PM IST

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