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धन सृजन को नियंत्रित करते वाणिज्यिक बैंक

Last Updated- April 07, 2023 | 11:12 PM IST
Indian Banks- भारतीय बैंक

अमेरिका में संगीत नाट्य के एक कलाकार विल रोजर्स ने कहा था, ‘समय की शुरुआत के साथ तीन महान आविष्कार हुए और वे हैं आग, पहिया और केंद्रीय बैंकिंग।’

इंजीनियर से अर्थशास्त्री बने कृष्णमूर्ति वैद्यनाथन और कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने अपनी किताब, ‘मनीः ए जीरो सम गेम’ में केंद्रीय बैंकिंग की जगह बैंकिंग को रखने की हिम्मत दिखाई है। इस पुस्तक में एक उप-शीर्षक ‘ए नोवल फ्रेमवर्क ऑफ मनी: हैव नोबेल इकॉनमिस्ट गॉट इट रॉन्ग?’ है।

इन दोनों में, भारत सरकार के सबसे युवा मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे (वर्ष 2018-21) सुब्रमण्यन अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के कार्यकारी निदेशक हैं।

केंद्रीय बैंक वह शब्द है जिसका उपयोग उन नीतियों के लिए जिम्मेदार, प्राधिकरण का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो किसी देश की मुद्रा और जमा धन की आपूर्ति को प्रभावित करते हैं। दुनिया के सबसे पुराने केंद्रीय बैंक, बैंक ऑफ स्वीडन की स्थापना 1668 में की गई थी। बैंक ऑफ इंगलैंड 1694 में बनाया गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने 1800 में ‘बैंक डी फ्रांस’ की स्थापना की थी। हमारा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपेक्षाकृत नया है और अप्रैल 1935 में इसकी स्थापना हुई थी।

तीन भागों में विभाजित इस पुस्तक के 11 अध्यायों में मौद्रिक अर्थशास्त्रियों के पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दी गई है जिसमें धन गुणक (मनी मल्टीप्लायर) और वित्तीय मध्यस्थता का सिद्धांत शामिल है। धन गुणक मौद्रिक अर्थशास्त्रियों की अवास्तविक दुनिया में मौजूद है, न कि वास्तविक दुनिया में!

इस किताब में यह भी कहा गया है कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व सहित कई केंद्रीय बैंकों ने आरक्षित नकदी आवश्यकता को समाप्त कर दिया है क्योंकि ऐसा माना गया कि यह पूरी प्रक्रिया निरर्थक है। हालांकि फिर भी भारतीय केंद्रीय बैंक, अमूमन बैंकों के लिए तथाकथित नकद आरक्षित अनुपात को जारी रखते हैं। इस तरह ‘मौद्रिक अर्थशास्त्रियों ने दोषपूर्ण सिद्धांतों का पालन किया जाता है।’

किताब के लेखक बताते हैं कि कैसे भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रा का खेल एक नए तरीके जैसे कि ‘व्यापार’ की तरह खेला जाता है जो मोनोपॉली नाम से भी मशहूर है। वे न केवल मौद्रिक अर्थशास्त्रियों की मुद्रा सृजन की समझ को चुनौती देते हैं बल्कि वे उनका मजाक भी उड़ाते हैं। लेखकों का कहना है कि मुद्रा सृजन का उनका उल्लेख मोनोपॉली खेल खेलने के अलावा और कुछ नहीं है।

मौद्रिक अर्थशास्त्री केंद्रीय बैंक का उल्लेख प्ले मास्टर के रूप में करते हैं, लेकिन किताब में यह तर्क दिया गया है कि हकीकत में प्ले मास्टर की भूमिका बैंकिंग क्षेत्र निभा रहा है। आरबीआई की जगह वाणिज्यिक बैंक मुद्रा का सृजन कर रहे हैं और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहे हैं। इस बिंदु को स्पष्ट करने के लिए अपने सिद्धांत में कारण और प्रभाव को आधार बनाते हुए लेखक चाय बनाने की प्रक्रिया का उल्लेख करते हैं कि वास्तव में चाय कैसे बनाई जाती है और इसे कैसे देखा जा सकता है।

जब हम गैस स्टोव को चालू करते (कारण) हैं तब केतली में पानी उबलता है (प्रभाव)। चाय सुनहरे भूरे रंग (प्रभाव) की होती है जैसे ही हम इसमें दूध मिलाते हैं। चाय के कप को डाइनिंग टेबल (प्रभाव) पर तब रखा जाता है जब हम उन्हें रसोई से बाहर निकाल कर (कारण) उसमें चाय डालते हैं। यही असली कहानी है। लेकिन मौद्रिक अर्थशास्त्रियों की ‘अवास्तविक दुनिया’ में प्रभाव, कारण से पहले होता है।

वे चाय बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कैसे करेंगे? केतली में उबलता पानी, गैस स्टोव को जलाता है, चाय के सुनहरे रंग की वजह से हमें दूध डालना होता है और चाय के कप हमें रसोई से डाइनिंग टेबल पर लाते हैं। आप चाय नहीं बनाते हैं बल्कि चाय आपको बनाती है!
एक सामान्य भ्रांति यह है कि बैंक सामान्य रूप से मध्यस्थों के रूप में कार्य करते हैं और बचतकर्ताओं की जमा राशि को ही अन्य लोगों को उधार देते हैं।

दूसरी गलत धारणा यह है कि केंद्रीय बैंक, वास्तव में केंद्रीय बैंक की मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करके अर्थव्यवस्था में ऋण और जमा की मात्रा निर्धारित करता है जो तथाकथित तौर पर ‘मनी मल्टीप्लायर’ दृष्टिकोण है। उस दृष्टिकोण के लिहाज से केंद्रीय बैंक, आरक्षित नकदी की मात्रा चुनकर मौद्रिक नीति पर अमल करते हैं।

तथ्य यह है कि वाणिज्यिक बैंक मुद्रा का सृजन करते हैं और यह नए ऋण देकर और बैंक जमाओं के रूप में होता है। जब एक बैंक ऋण देता है तब यह किसी को असीमित पैसा नहीं देता है और उदाहरण के तौर पर घर खरीदने वाले व्यक्ति से गिरवी रखवाया जाता है। यह गिरवी चीजों की मात्रा के आधार पर बैंक जमा को उसके बैंक खाते में डालता है। इसी समय एक नई मुद्रा का सृजन हो जाता है। इस कारण से, कुछ अर्थशास्त्रियों ने बैंक जमा का संदर्भ ‘फाउंटेन पेन मनी’ के रूप में दिया है जिसका सृजन बैंकरों द्वारा ऋण की मंजूरी देने के साथ ही हो जाता है। इसके बारे में लेखकों ने लिखा है।

संक्षेप में, प्रचलन की अधिकांश मुद्रा का सृजन केंद्रीय बैंक के प्रिंटिंग प्रेस में छपने से नहीं बल्कि वाणिज्यिक बैंकों द्वारा होता है। बैंक जब भी अर्थव्यवस्था में किसी को उधार देते हैं या ग्राहकों से संपत्ति खरीदते हैं तब वे मुद्रा का सृजन करते हैं। केंद्रीय बैंक सीधे तरीके से जमाओं वाली मुद्रा या ऋण मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित नहीं करते हैं लेकिन फिर भी यह मौद्रिक नीति निर्धारित करके अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा को प्रभावित करने में सक्षम है।

लेकिन सेंटर फॉर इकनॉमिक पॉलिसी रिसर्च के पोंटस रेंडल और लुकास बी फ्रायंड ने दिसंबर 2019 में अपने एक शोध पत्र ‘बैंक्स डू नॉट क्रिएट मनी आउट ऑफ थिन एयर’ में इस सिद्धांत को चुनौती दी है। ‘जब बैंक मुद्रा सृजन करते तब वे अचानक या अप्रत्याशित रूप से हवा में कोई तीर नहीं मारते हैं बल्कि वे परिसंपत्तियों से ही मुद्रा का सृजन करते हैं।’

उन्होंने यह समझाने के लिए एक सरल दृष्टांत का उपयोग किया है कि बैंक मुद्रा सृजन कैसे करते हैं और इस प्रक्रिया में परिसंपत्ति-समर्थन की क्या भूमिका है। ‘मान लीजिए कि एक पीएचडी छात्र लुकास ब्रिटेन के कैम्ब्रिज में नया है। लुकास एक स्थानीय पब में बियर पीकर अपने उस दिन के काम का जश्न मनाना चाहते हैं और एक आईओयू जारी करके उस पेय के लिए भुगतान करना चाहते हैं।

लेकिन, पब लुकास के आईओयू को स्वीकार करने से इनकार करता है। पब के लोग लुकास को बहुत अच्छी तरह से नहीं जानते हैं और इसलिए वे भरोसा नहीं कर सकते हैं की लुकास की आईओयू चुकाने की क्षमता होगी या नहीं…इसके अलावा, एक तीसरा पक्ष यानी शराब बनाने वाली कंपनी का कहना है, वह लुकास-आईओयू को पब के बियर भंडार को दोबारा भरने के लिए भी लुकास आईओयू को भुगतान के रूप में स्वीकार नहीं करेगा …

अच्छी बात यह है कि लुकास के सुपरवाइजर पोंटस लुकास पर बहुत भरोसा करते हैं और वह पोंटस-आईओयू के बदले में लुकास-आईओयू स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।

इसका सार यह है कि स्थानीय पब वास्तव में पोंटस पर भरोसा करता है और इसलिए तीसरा पक्ष भी पोंटस पर भरोसा करता ( यह एक पोंटस-आईओयू है और यह मेरे बटुए में मौजूद पाउंड नोट जैसा ही है!) है। लुकास तब पोंटस-आईओयू के जरिये भुगतान करके अपनी पसंदीदा पेय हासिल कर सकते हैं। शराब बनाने वाली कंपनी उसका भुगतान करके अपने भंडार में माल भर सकती है।

यह किताब पढ़ने में मजेदार है। हालांकि यह मुद्रा नियंत्रक का पता मिंट रोड से मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में स्थानांतरित करता है, जहां कई बैंकों का मुख्यालय है। इसमें मुद्रा से संबंधित कई उप-कहानियां, सिद्धांतों और मुद्रा से जुड़ी संभावनाओं की दिलचस्प कड़ियों का जिक्र है जो पाठकों को बांधे रखती है।

यह हुंडियों के बारे में बात करती है जिनका उल्लेख भारतीय पौराणिक कथाओं में किया गया है जो वाणिज्यिक बैंकों के पश्चिमी देशों में अस्तित्व में आने और केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा से काफी पहले किया गया था।

यह किताब अपने केंद्रीय विषय, ‘वाणिज्यिक बैंक धन सृजन को नियंत्रित करते हैं’ का विवरण महाकाव्य की तरह देती है। साथ ही यह किताब उन्हें अपनी ताकत के बारे में जागरूक होने और भारत के आर्थिक विकास में योगदान देने का आग्रह भी करती है।

First Published - April 7, 2023 | 10:27 PM IST

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