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‘पर्यावरण के अनुकूल’ विकास अवधारणा का अंत!

डेमोक्रेट कम से कम सैद्धांतिक तौर पर ही सही, जलवायु परिवर्तन संबंधी कदमों को लेकर प्रतिबद्ध थे जबकि ट्रंप इसे नकारते थे।

Last Updated- September 26, 2023 | 9:42 PM IST
End of 'eco-friendly' development concept!

क्या हम पीछे मुड़कर वर्ष 2020 से 2023 तक के वर्षों को ‘पर्यावरण के अनुकूल वृद्धि’ पर सहमति के लिहाज से अहम वर्षों के रूप में देखेंगे? तीन वर्ष पहले महामारी आने के बाद दुनिया के समान सोच वाले नेताओं ने आर्थिक स्थिति में सुधार और पैकेज के लिए अपने खजाने से असाधारण धन राशि निकाली थी जो काफी हद तक हरित सुधार की दिशा में थी।

इस विषय में दुनिया के अधिकांश हिस्सों में सहमति नजर आई कि जलवायु परिवर्तन दुनिया के अस्तित्व से जुड़ा एक अहम मसला है। यह भी कि भविष्य की वृद्धि को पहले की तुलना में कम कार्बन आधारित होना चाहिए और सरकारों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए बल्कि करना ही होगा कि हरित वृद्धि जल्द से जल्द नजर आए।

इस सहमति को एक या दो भाग्यशाली घटनाओं का सहयोग भी मिला। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की हार शायद सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी। डेमोक्रेट कम से कम सैद्धांतिक तौर पर ही सही, जलवायु परिवर्तन संबंधी कदमों को लेकर प्रतिबद्ध थे जबकि ट्रंप इसे नकारते थे। वह 2012 में कह चुके थे कि जलवायु परिवर्तन चीन की देन है ताकि अमेरिकी विनिर्माण को गैर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। जब जो बाइडन ने पद संभाला तो उनकी पार्टी के प्रगतिशील लोगों ने पाया कि वे हरित तत्त्व वाली औद्योगिक नीति की फाइनैंसिंग को लेकर सहमति पर पहुंच सकते हैं।

बाइडन ऐसी किसी भी नीति से सहमत थे जो उन्हें यह दावा करने दे कि वह रस्ट बेल्ट में नई फैक्टरियां ला रहे हैं। रस्ट बेल्ट अमेरिका वह इलाका है जो औद्योगिक पराभव झेल चुका है। इस तरह इन्फ्लेशन रिडक्शन ऐक्ट (आईआरए) का जन्म हुआ जिसमें स्वच्छ ऊर्जा के लिए 370 अरब डॉलर का प्रावधान था।

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इस बीच चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था अगर नए और कम कार्बन गहन क्षेत्रों को तेजी से और पूरी तरह अपनाती है तो वह पश्चिम को पीछे छोड़ सकती है। यही वजह है कि उन्होंने बैटरी और भंडारण तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्रों के ​लिए समर्थन बढ़ाया और 2020 में यह घोषणा भी की कि चीन का कार्बन उत्सर्जन 2030 तक अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा। चीन की अर्थव्यवस्था ने शी की इच्छा पूरी करने का प्रयास भी किया।

ब्लूमबर्ग के अनुसार 2023 में चीन दुनिया के कुल कम कार्बन व्यय के करीब आधे के लिए जवाबदेह है। उसने नवीकरणीय ऊर्जा बैटरी और ईवी में 50,000 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश किया। यूरोपीय संघ ने आने वाले दशक में हरित निवेश के लिए पहले से विवादित 1.2 लाख करोड़ डॉलर के माध्यम से महामारी को लेकर प्रतिक्रिया देने का निश्चय किया। इसमें से आधी राशि आयोग के निजी वित्त से और दसवां हिस्सा विभिन्न सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्रीय बजट में से आएगा। कर राजस्व अन्य उपायों के अलावा आयातित वस्तुओं पर एक नए कार्बन टैरिफ से जुटाया जाएगा।

भारत समेत विकासशील देशों ने भी कठिन सुधारों की दिशा अपनाई है। दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और वियतनाम ने जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील ऊर्जा क्षेत्र में बाहरी आर्थिक मदद लाने का प्रयास किया। भारत ने 2070 तक कार्बन निरपेक्ष होने की बात कही लेकिन इसके अलावा उसने खामोशी से यह स्वीकार कर लिया कि वह नए कोयला संचालित ताप बिजली घर की योजना नहीं बनाएगा।

सरकार ने सार्वजनिक रूप से कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2030 तक ​तीन गुनी की जाएगी। इस बीच निजी क्षेत्र में उन परियोजनाओं के लिए धन जुटाया गया जो पर्यावरण, समाज और शासन के मोर्चे पर बेहतर थीं। कंपनियों ने अपने यहां विशुद्ध शून्य उत्सर्जन की योजना विकसित की। सचेत निवेशकों ने वित्तीय संस्थानों को कहा कि उत्सर्जन वाले क्षेत्रों से दूरी बनाएं।

2023 समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और इस सहमति के भंग होने की चिंता उत्पन्न हो रही है। इस प्रगति का बड़ा हिस्सा काल्पनिक भी साबित हो सकता है। अमेरिका इसकी सबसे कमजोर कड़ी है। दिक्कत वहां की उथलपुथल भरी राजनीति में ही नहीं है बल्कि इस बात की भी संभावना है कि ट्रंप या जलवायु परिवर्तन पर शंका करने वाला कोई अन्य रिपब्लिकन नेता 2025 में चुनाव जीत जाए और बाइडन के कदमों को पलट दे।

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विवेक रामास्वामी के रूप में एक रिपब्लिकन नेता कह चुके हैं कि फाइनैंस में पर्यावरण, समाज और शासन आदि पर ध्यान देना अपने आप में एक समस्या है। इसे पारित करने के लिए जो समझौते करने पड़े हैं उन्होंने वास्तविक जलवायु घटक को काफी कमजोर कर दिया है। अमेरिका में कार्बन पर कोई कर नहीं है और भविष्य में उत्सर्जन कम करने को लेकर उसकी राह इस बात पर निर्भर है तकनीकी हल बढ़ाने में कितना निवेश किया जाता है।

इस बीच यूरोप में क्रियान्वयन की दिक्कतें हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जर्मनी ने कोयला खदानें दोबारा शुरू कर दी हैं और उत्सर्जन कम करने के बजाय बढ़ाना आरंभ कर दिया है। यूरोपीय आयोग ने चीन में निर्मित इलेक्ट्रिक वाहनों की जांच शुरू कर दी है। यूरोप को कार्बनीकरण कम करने के लिए सस्ते इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता है।

यूनाइटेड किंगडम जो पहले पर्यावरण बचाव की होड़ का अगुआ रहा है उसने भी सत्ताधरी कंजरवेटिव पार्टी के लंदन के एक उपनगरीय इलाके में हुए उपचुनाव में बारीक अंतर से जीत के बाद अपनी राह बदल ली है। वहां के रहवासी इस बात को लेकर नाराज थे कि पुरानी कारों पर शुल्क लगाया जा रहा था। लेबर पार्टी को महज 500 वोट से पराजय का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि वह उपभोक्ताओं पर बोझ डालने वाले अनेक प्रावधान लागू नहीं करने वाले।

चीन ने भी शायद नई हरित परियोजनाओं में अपना निवेश रद्द न किया हो लेकिन भूराजनीतिक स्थितियों और 2022 में बिजली की कटौती की घटनाओं ने उसे कोयला आधारित संयंत्रों से दूरी बनाने के कदम पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित किया है। अब वह हर सप्ताह दो ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दे रहा है।

लब्बोलुआब यह कि 2020-2023 के बीच जो आशावाद था वह गलत धारणाओं पर आधारित था। सरकारों को यह अवसर मिला था कि वे पैसे खर्च करें और उन्होंने ऐसा किया। इसमे चकित करने जैसा कुछ नहीं। परंतु ज्यादातर राजनेताओं ने ऐसा हरित अर्थव्यवस्था के लिए नहीं किया। उनकी प्रेरणा अलग थी।

उन्होंने वृद्धि के मामले में बढ़त हासिल करने, आर्थिक सुरक्षा और औद्योगीकरण को नए सिरे से वित्तीय सहायता मुहैया कराने और क्षेत्रीय और हितवादी समूहों के लिए ऐसा किया जो वैश्वीकरण के दो दशकों में नहीं हुआ था। पर्यावरण को लेकर बनी सहमति खोखली थी। विभिन्न देशों को केवल वृद्धि और रोजगार की परवाह थी।

First Published - September 26, 2023 | 9:42 PM IST

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