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पर्यावरण के अनुकूल और अधिक स्वीकार्य जीएसटी

जीएसटी दरों को व्यावहारिक बनाने, उनका विस्तार करने का काम मात्र सरलीकरण के लिए नहीं बल्कि रोजगार देने और पर्यावरण के लक्ष्य हासिल करने के लिए भी होना चाहिए। बता रहे हैं

Last Updated- March 20, 2025 | 10:23 PM IST
GST

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के करीब 8 साल बाद हम गर्व कर सकते हैं इससे पूरे देश में एक जैसा कर लग रहा है और माल की आवाजाही में आंतरिक बाधाएं खत्म हो गई हैं। साथ ही तीन कारोबारी कवायदों – पंजीकरण, कर भुगतान और रिटर्न दाखिल करना – को ऑनलाइन अंजाम देने के लिए तकनीकी प्लेटफॉर्म भी बनाया गया है। ये बड़ी उपलब्धियां हैं मगर अब जीएसटी दरों का ढांचा सरल बनाने और राजस्व बढ़ाने के लिए शुल्क दरें सही करने की जरूरत है, जो जीएसटी के पहले के 14.8 फीसदी से घटकर 12 फीसदी रह गई हैं। दरें दुरुस्त करने के इस मौके का इस्तेमाल रोजगार बढ़ाने और पर्यावरण प्रदूषण घटाने जैसे दूसरे आर्तिक लक्ष्य हासिल करने के लिए भी होना चाहिए।

आज रोजगार सृजन नीति निर्माताओं के लिए बड़ी समस्या है। इस बात पर भी काफी हद तक सहमति है कि रोजगार बढ़ाना है तो श्रम के ज्यादा इस्तेमाल वाले चार विनिर्माण क्षेत्रों में वृद्धि जरूरी है। ये क्षेत्र हैं टेक्सटाइल्स (धागे से लेकर कपास और कृत्रिम कपड़े तक), चमड़ा और जूते-चप्पल, खाद्य प्रसंस्करण और खिलौने। इसलिए दरें सही करनी हैं तो पहले इन चारों उत्पाद श्रेणियों को 5 फीसदी जीएसटी दर में लाना होगा और उसे बढ़ाकर कम से कम 8 फीसदी करना होगा ताकि इनपुट टैक्स क्रेडिट बिना किसी दिक्कत के मिलता रहे। इसके साथ ही इन चारों में एकबारगी इस्तेमाल वाली सभी सामग्री और मध्यवर्ती सामग्री पर शून्य कर लगना चाहिए। आयात शुल्क की यह व्यवस्था सर्वाधिक पसंदीदा देशों की श्रेणी में आने वाले सभी देशों से हो रहे आयात पर लागू हो। इससे श्रम के अधिक इस्तेमाल वाले इन उद्योगों को ताकत मिलेगी और इनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आएगा, जिसका अभी तक इंतजार ही हो रहा है।

जीएसटी की 12 फीसदी दर को 18 फीसदी की मानक दर में मिलाना होगा मगर ऐसा करने के पहले वस्त्र एवं औषधि क्षेत्र को 8 फीसदी दर में लाना होगा। रियायतें भी खत्म करनी होंगी ताकि जीएसटी श्रृंखला में क्रेडिट बिना किसी रुकावट के चलता रहे। इसके लिए जरूरी है कि जीएसटी से छूट उन्हीं को और उतनी ही मिले, जिन्हें और जितनी पहले मूल्यवर्द्धित कर (वैट) से मिलती थी। यह सुझाव 2015 में एक समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट में दिया गया था जिसका गठन दोहरे नियंत्रण, पूंजी सीमा और व्यय के लिए किया गया था। सभी उपकर हटाने और 28 फीसदी दर को बढ़ाए जाने की भी जरूरत है। सरलीकरण की दिशा में यह बड़ा कदम होगा। इसके लिए जरूरी है कि सीमेंट पर जीएसटी 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी किया जाए (जिससे काफी राजस्व हानि होगी)। दोपहिया और वॉशिंग मशीन, डिशवॉशर तथा एयर कंडीशनर जैसी उपभोक्ता वस्तुओं पर अभी 28 फीसदी कर लगता है, जो ठीक नहीं है। सीमेंट पर कर घटाने से निर्माण कार्य भी बढ़ेगा और रोजगार भी बढ़ेंगे।

जीएसटी दरों को दुरुस्त करते समय उन्हें पर्यावरण के अनुकूल भी बना देना चाहिए। इसके लिए सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को 28 फीसदी के बजाय 18 फीसदी जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए। मगर ऐसे में शुल्क की दरें वाहन की क्षमता और आकार देखकर तय नहीं की जाएंगी। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में एकबारगी इस्तेमाल होने वाली सभी पूंजीगत वस्तुओं और घटकों पर केवल 8 फीसदी कर लगना चाहिए। 28 फीसदी कर श्रेणी से वस्तुएं हटाने पर जो नुकसान होगा उसकी भरपाई के लिए नुकसानदेह वस्तुओं पर बगैर उपकर के 45 फीसदी जीएसटी लगाया जाना चाहिए।

राजस्व क्षति से निपटने के लिए सोने और चांदी के उत्पादों पर कर की दर 3 फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी करने का सुझाव है। 2015 में पेश जीएसटी रिपोर्ट में एनसीएआर के एक अध्ययन का जिक्र है, जिसके अनुसार सोने, चांदी के 90 फीसदी से ज्यादा सौदे आय के लिहाज से ऊपर की दो श्रेणियों में होते हैं।

इस हिसाब से कर व्यवस्था में उन वस्तुओं को कर छूट मिलेगी, जिन्हें वैट व्यवस्था में भी छूट थी। इसके अलावा 8 फीसदी, 18 फीसदी और 45 फीसदी की जीएसटी दरें होंगी। मगर जरूरी है कि सरकार एक ही उत्पाद श्रेणी पर मूल्य के हिसाब से दो तरह की कर दरें नहीं थोपे। इससे पेचीदगी बढ़ती है और अधिकारी लोगों को परेशान करने का मौका ढूंढ लेते हैं।

जीएसटी के दायरे में वस्तुएं बढ़ानी हैं तो राज्यों के बीच सहमति के साथ चरणबद्ध तरीके से यह काम किया जाए। पहले चरण में विमान ईंधन और प्राकृतिक गैस को ही जीएसटी के दायरे में लाया जाए क्योंकि उनका इस्तेमाल आम तौर पर मध्यवर्ती के रूप में होता है और कंपनियां आपस में ही इनका कारोबार कर लेती हैं। नवीकरणीय ऊर्जा को जीएसटी में लाने के लिए राज्यों से मशविरा किया जा सकता है। इससे क्षेत्र को मदद मिलेगी क्योंकि इसमें पूंजी बहुत लगती है और परिचालन लागत बहुत कम होती है। इन्हें जीएसटी में लाने से ये उपकरण बनाने वाली कंपनियों को बिजली उत्पादन के अंतिम चरण तक जीएसटी क्रेडिट लेने में मदद मिलेगी।

जीएसटी दरें व्यावहारिक बनाने के इन सुझावों से आम आदमी द्वारा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं और सेवाओं जैसे दवा, कपड़े, जूते-चप्पत और किफायती मकान पर कम कर लगेगा। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती होंगी और मध्य वर्ग को आसानी से मिल सकेंगी। औसत शुल्क दर में भी इजाफा होगा और वह वर्तमान 12.2 फीसदी से बढ़कर 13 फीसदी हो जाएगी। इससे राजस्व बढ़ेगा मगर कर का बोझ समाज के समृद्ध वर्ग पर ही पड़ेगा।

अंत में जीएसटी दरों को व्यावहारिक बनाने और उनका दायरा बढ़ाने का काम ऐसे हो कि प्रणाली सरल बनने के साथ ही रोजगार तथा पर्यावरण के लक्ष्य भी हासिल किए जा सकें। इससे लोगों में इसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी और यह धारणा बढ़ेगी कि जीएसटी आजाद भारत का सबसे अहम आर्थिक सुधार है।

(लेखक केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड के सदस्य रह चुके हैं)

First Published - March 20, 2025 | 10:18 PM IST

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