जब यूरोपीय संघ (EU) केवल शून्य कार्बन उत्सर्जन वाले वाहनों के परिचालन की अनुमति देने संबधी एक विधान पर विचार कर रहा था तो उस समय जर्मनी ने एक रुचिकर प्रस्ताव दिया। जर्मनी ने अपने प्रस्ताव में कहा कि यूरोपीय संघ के देशों में सभी पेट्रोल-डीजल इंजन वाले वाहनों को सड़कों से हटाने के बजाय मौजूदा पेट्रोल-डीजल इंजन वाहनों में कार्बन-तटस्थ संश्लेषित ईंधन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यूरोपीय संघ जिस विधान पर चर्चा कर रहा था उसके अंतर्गत 2035 तक कार्बन उत्सर्जन करने वाले सभी वाहनों को परिचालन से हटाने का प्रावधान है।
यह सच है कि इलेक्ट्रिक वाहनों (और हाइड्रोजन-फ्यूल सेल्स) से कार्बन उत्सर्जन शून्य रहता है, मगर वास्तव में किसी न किसी रूप में पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के लिए वे भी जिम्मेदार होते हैं। लीथियम, अन्य धातुओं एवं दुर्लभ मृदा तत्त्वों के खनन एवं परिष्करण और प्लास्टिक एवं कल-पुर्जों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले तत्त्वों के उत्पादन से भी पर्यावरण पर बड़ा प्रभाव होता है।
दुनिया में लगभग 90 प्रतिशत वाहन (करीब 2 अरब) 2030 तक पेट्रोल-डीजल इंजनों से ही चलेंगे। इन्हें कतई मतलब नहीं होगा कि कार्बन उत्सर्जन कम होकर बिल्कुल शून्य हो जाएगा। पेट्रोल-डीजल इंजन और इलेक्ट्रिक वाहन दोनों बनाने से पर्यावरण पर लगभग उतना ही असर होता है। कुछ गणनाओं के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहन बनाने की प्रक्रिया में पर्यावरण पर कहीं अधिक असर होता है।
दोनों में अंतर यह है कि पेट्रोल-डीजल इंजन जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करते है जिससे पर्यावरण में काफी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है। कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस के खनन एवं परिष्करण के दौरान कार्बन का काफी मात्रा में इस्तेमाल होता है और इसका परिणाम यह होता है कि वातावरण में कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है। अब जरा ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए जब पेट्रोल-डीजल इंजन के लिए एक कार्बन-नकारात्मक (कार्बन-नेगेटिव) ईंधन का उत्पादन किया जाए ताकि ईंधन चक्र का शुद्ध कार्बन प्रभाव शून्य या नकारात्मक हो जाए?
पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और सीएनजी की जगह संश्लेषित हाइड्रोकार्बन ईंधन का सरलता से इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी ने कोयले से डीजल और पेट्रोल की जगह दूसरे संश्लेषित ईंधन सफलतापूर्वक तैयार कर लिए थे। इसके तहत कार्बन डाइऑक्साइड की जल से अभिक्रिया कराकर मिथाइल अल्कोहल प्राप्त किया जाता है। मिथाइल अल्कोहल संश्लेषित ईंधन में बदला जा सकता है और पेट्रोल-डीजल इंजन में बिना किसी खास बदलाव के इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
पर्यावरण के अनुकूल पहलू इस विकल्प पर 21वीं शताब्दी में गंभीरता से विचार किया जा सकता है। वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को अलग किया जा सकता है जिससे संश्लेषित ईंधन का उत्पादन कार्बन उत्सर्जन रहित हो सकता है। पानी में बिजली प्रवाहित कर हाइड्रोजन प्राप्त किया जा सकता है। अगर यह बिजली हरित माध्यमों से पैदा की जाती है तो पर्यावरण पर असर कम से कम हो जाता है।
कुल मिलाकर, निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि संश्लेषित ईंधन तैयार करना कार्बन उत्सर्जन रहित हो सकता है। अगर इस संश्लेषित ईंधन से कार्बन उत्सर्जन इस प्रक्रिया (संश्लेषित ईंधन तैयार करने की) के दौरान एकत्र कार्बन से कम रहता है तो यह पर्यावरण के समीकरण के दृष्टिकोण से यह लाभकारी हो सकता है। अगर किसी तरह शुद्ध कार्बन उत्सर्जन होता है तब भी यह लाखों इलेक्ट्रिक वाहन तैयार करने के दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन से कम रह सकता है।
पोर्श, टोयोटा और कई अन्य बड़ी वाहन कंपनियां संश्लेषित ईंधन से जुड़ी संभावनाएं तलाश रही हैं। मोटर रेसिंग संश्लेषित ईंधन के चलन को और बढ़ावा दे सकती है। मोटर रेसिंग अब संश्लेषित ईंधन अपनाने पर विचार कर रही है। फॉर्मूला 1, 2 और 3 संश्लेषित ईंधन के इस्तेमाल की सोच रहे हैं।
कानूनी तौर पर जर्मनी अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर कम से कम अपने प्रस्ताव पर विचार के लिए दूसरे पक्षों को राजी करने में सफल रहा है। जापान भी संश्लेषित ईंधन के विकल्पों पर विचार कर रहा है। अरामको और एक्सॉनमोबिल जैसी कंपनियां अपने-अपने संश्लेषित ईंधन बना रही हैं। ऐसा करना उनके लिए तर्कसंगत भी लगता है क्योंकि उनके पास पेट्रोल पंपों के तंत्र के माध्यम से विपणन एवं वितरण व्यवस्था मौजूद है।
हालांकि, इस संश्लेषित ईंधन का अर्थशास्त्र पेचीदा होगा। सबसे पहली बात यह कि यह ईंधन सामान्य पेट्रोल, डीजल आदि की तुलना में महंगा होगा। मगर सस्ती एवं हरित बिजली तक पहुंच से उत्पादन लागत भी कम हो सकती है। आइसलैंड, जहां प्रचुर मात्रा में उष्मा मौजूद है, और चिली जहां पवन ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं, भविष्य में ईंधन उत्पादन के केंद्र बन सकते हैं। पोर्श ने तो चिली में अपना पहला ईंधन उत्पादन संयंत्र भी स्थापित किया है।
मगर इस समय कार्बन एकत्र करने की प्रक्रिया अधिक सक्षम नहीं है इसलिए अभियांत्रिकी से जुड़ी चुनौतियां विशाल हैं। इसके अलावा ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलिसिस के लिए भी पर्याप्त ढांचा उपलब्ध नहीं है इसलिए इसे भी चाक-चौबंद करने की जरूरत होगी। यहां ध्यान देने योग्य बात होगी कि प्रभावी कार्बन एकत्र करने का ढांचा अपने आप में लाभदायक ग्रीन हाइड्रोजन क्षमता की तरह ही लाभदायक होंगे। लिहाजा, शोध एवं विकास (आरऐंडडी) में निवेश और बड़े पैमाने पर इसे शुरू करना लाभदायक होगा।
अगर इस संकल्पना की सफल शुरुआत होती है और आर्थिक रूप से यह कारगर साबित होती है तो इससे भविष्य में परिवहन व्यवस्था में बड़ा बदलाव आएगा। इसे लेकर दो राय नहीं कि आने वाला समय इलेक्ट्रिक वाहनों का होगा मगर उनके साथ ही काफी लंबे समय तक हाइब्रिड एवं परंपरागत पेट्रोल-डीजल इंजनों वाले वाहन भी सड़कों पर मौजूद रहेंगे।