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बैंकिंग साख: बजट में बैंक निजीकरण पर बढ़ेगी सरकार?

कर देनदारी की बात होने पर जमाकर्ताओं के मुकाबले म्युचुअल फंडों एवं शेयरों में दांव लगाने वाले लोग अधिक लाभ की स्थिति में रहते हैं।

Last Updated- July 21, 2024 | 9:33 PM IST
RBI MPC Meet:

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के प्रमुख दिनेश खारा मंगलवार को पेश होने वाले बजट में ब्याज आय पर कर राहत की हिमायत कर रहे हैं। लगभग सभी बैंकों के प्रमुख भी यही चाहते हैं। फिलहाल बैंकों को जमा पर अर्जित ब्याज पर टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) काटना पड़ता है। यह तब होता है जब किसी ग्राहक की जमा रकम पर ब्याज साल में 40,000 रुपये से अधिक हो जाता है। बचत खाते में 10,000 रुपये तक के ब्याज पर कर नहीं लगाया जाता है। बैंक प्रमुख लंबे समय से इसकी मांग करते रहे हैं, मगर वे इस पर वित्त मंत्रालय को राजी नहीं कर पाए हैं।

कर देनदारी की बात होने पर जमाकर्ताओं के मुकाबले म्युचुअल फंडों एवं शेयरों में दांव लगाने वाले लोग अधिक लाभ की स्थिति में रहते हैं। एक और अहम बात यह है कि दूसरी वित्तीय परिसंपत्तियों के विपरीत बैंक जमा की ब्याज आय पर हरेक वर्ष टीडीएस कटता है, न कि इसे भुनाने के समय।

वित्त वर्ष 2023 में भारतीय परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत कम होकर पिछले पांच वर्षों के न्यूनतम स्तर 14.2 लाख करोड़ रुपये पर आ गई, जो वित्त वर्ष 2022 में 17.1 लाख करोड़ रुपये थी। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में यह रकम वित्त वर्ष 2023 में कम होकर 5.3 प्रतिशत रह गई। यह पिछले पांच दशकों का सबसे निचला स्तर था। कर लाभ मिलने से बैंक डिपॉजिट अधिक फायदेमंद हो जाएगा और इस से परिवारों की बचत भी बढ़ेगी।

स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र पॉलिसी खरीदने वालों के लिए जीएसटी कम करने और आयकर अधिनियम की धारा 80डी के अंतर्गत अधिक कर रियायत (खासकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए) की मांग कर रहा है। वित्त तकनीक (फिनटेक) खंड की कंपनियां भी सरकार से नवाचार करने की आजादी में सहयोग की मांग कर रही हैं। ये सभी पुराने मसले हैं।

व्यापक आर्थिक स्तर पर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण और आर्थिक वृद्धि बजट के दो प्रमुख लक्ष्य हो सकते हैं। फरवरी 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि वर्ष 2021-22 के दौरान बीपीसीएल, एयर इंडिया, भारतीय जहाजरानी निगम, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक, बीईएमएल, पवन हंस, नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड सहित अन्य इकाइयों का विनिवेश पूरा हो जाएगा। आईडीबीआई बैंक के अलावा वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में दो सरकारी बैंकों और एक सामान्य जीवन बीमा कंपनी के निजीकरण की भी बात कही थी।

पिछले बजट में अधिक निजी पूंजी की मदद से बैंकिंग तंत्र को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया था। इसी को ध्यान में रखते हुए बजट में आईडीबीआई बैंक में सरकार की हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव दिया गया था। मगर ये दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कौन होंगे इनके नामों पर कयास लगने के अलावा हमने इस मामले में और कुछ नहीं सुना है। आईडीबीआई बैंक के विनिवेश में कितना समय लगेगा? अक्टूबर 2022 और जनवरी 2023 में संभावित बोलीदाताओं से बोलियां आमंत्रित की गई थीं।

दीपम को आईडीबीआई बैंक को लेकर कई अभिरुचि पत्र भी मिले थे। अब तक जो योजना सार्वजनिक हुई है उसके अनुसार भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) आईडीबीआई बैंक में अपनी 30.24 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर इसे घटाकर 19 प्रतिशत करेगी। सरकार अपनी 30.48 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच कर इसे 15 प्रतिशत तक करना चाहती है।

हिस्सेदारी बिक्री के बाद सरकार एवं एलआईसी की हिस्सेदारी 94.72 प्रतिशत से कम होकर 34 प्रतिशत रह जाएगी जिसके बाद आईडीबीआई बैंक सही मायने में निजी बैंक बन जाएगा। पिछले सप्ताह आईं खबरों के अनुसार आरबीआई ने बजट से पहले आईडीबीआई बैंक के बोलीदाताओं पर अपनी ‘फिट ऐंड प्रॉपर’ मंजूरी दे दी है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

आइए, सार्वजनिक एवं निजी बैंकों के शेयरों के प्रदर्शन और सरकार को उनसे मिलने वाले लाभांश पर बात करते हैं। वित्त वर्ष 2024 में सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से 1.54 लाख करोड़ रुपये लाभांश के रूप में मिले, जो वित्त वर्ष 2023 के 99,913 करोड़ रुपये की तुलना में 55 प्रतिशत अधिक थे। सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंक अच्छी स्थिति में हैं और उनका बाजार पूंजीकरण ऐतिहासिक स्तर पर रहा है। तो क्या यह बैंकिंग क्षेत्र में विनिवेश की हिम्मत दिखाने सबसे उपयुक्त समय नहीं है? ऐसा कहना आसान है मगर करना मुश्किल। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम करने का विचार काफी पुराना है।

वर्ष 2000 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी की हिस्सेदारी घटाकर 33 प्रतिशत करने की योजना की घोषणा की थी मगर यह भी शर्त लगाई थी कि प्रबंधन पर नियंत्रण सरकार का ही रहेगा। इसका उद्देश्य यह था कि सरकार की हिस्सेदारी घटने के बाद भी सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं होगा। वर्ष 1998 में बैंकिंग सुधारों पर गठित दूसरी नरसिम्हन समिति की सिफारिशों के अनुरूप यह प्रस्ताव रखा गया था। वर्ष 2014 में एक दूसरी समिति (जे पी नायक समिति) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 51 प्रतिशत से कम करने का सुझाव दिया था।

राजग सरकार बैंकिंग क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सुधार पर विशेष जोर देता रहा है। जनवरी 2015 में सरकार ने पहला ‘ज्ञान संगम’ (सार्वजनिक क्षेत्र एवं वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों की बैठक) का आयोजन किया था। 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकिंग क्षेत्र के लिए ‘इंद्रधनुष योजना’ की घोषणा की थी।

इसके बाद फरवरी 2021 के बजट में सरकार ने आईडीबीआई बैंक के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों और एक सामान्य जीवन बीमा कंपनी के निजीकरण की घोषणा की थी। मगर 2024 के चुनाव के बाद केंद्र में सत्ताधारी राजग गठबंधन में घटक दलों के बीच समीकरण बदल गया है। ऐसे में क्या सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर आगे बढ़ पाएगी? इस बारे में पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published - July 21, 2024 | 9:33 PM IST

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