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Opinion: प्रतियोगी परीक्षाओं से बेहतर की तैयारी

आईआईटी जेईई और उससे संबद्ध कोचिंग उद्योग युवाओं के बौद्धिक विकास को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम इस क्षेत्र में कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।

Last Updated- August 30, 2023 | 11:43 PM IST
Better preparation for competitive exams
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

आईआईटी जेईई (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जाम) को योग्यता का पैमाना माना जाता है। इसकी कोचिंग देना एक उद्योग बन चुका है, परंतु यह अब तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि आखिर जेईई परीक्षा आईआईटी में जाने के लिए सही लोगों का चयन कैसे करती है। अधिकांश समझदार संस्थान केवल परीक्षा के अंकों को सामान्य तौर पर आंककर दाखिला नहीं देते। ऐसे में हम दो हिस्सों वाली प्रणाली की पेशकश करते हैं: एक व्यापक परीक्षा जो क्षमतावान विद्यार्थियों को छांटे और उसके पश्चात बिना चयन के यादृच्छिक आवंटन।

ऐसी व्यवस्था का समग्र प्रस्ताव सकारात्मक होगा। टेस्ट की तैयारी ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बहुत क्षति पहुंचाई है। पूरे देश में अब बच्चे केवल हाई स्कूल की पढ़ाई नहीं करते हैं बल्कि उन्हें कोचिंग में भी दाखिल करा दिया जाता है। जरूरी नहीं कि यहां वे विषय की पढ़ाई करें और उसे अच्छी तरह समझें। उन्हें तो बहुत असीमित संख्या में बहुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर रटाए जाते हैं जिनके प्रवेश परीक्षा में पूछे जाने की संभावना होती है।

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किताबों की दुकानों में अक्सर परीक्षाओं की तैयारी वाली सामग्री अधिक मिलती है और पाठ्यक्रम की किताबें कम। इसे विकसित होती अर्थव्यवस्था के प्रभाव के रूप में भी देखा जा सकता है जहां परिवारों की आकांक्षाएं बढ़ रही हैं और युवा आबादी आगे बढ़ना चाह रही है। इसके विपरीत शिक्षा को इस प्रकार धता बताना देश के भविष्य के लिए नुकसानदेह है जहां रोजगार, संपत्ति और सामाजिक दर्जा आदि सभी ज्ञानवान, लचीले और नवाचारी व्यक्तियों के पास एकत्रित हो जाएंगे।

टेस्ट की तैयारी शिक्षा नहीं है। शिक्षा लोगों को सूचनाओं का सही विश्लेषण करने, सही निर्णय करने और नए क्षेत्रों में ज्ञान का प्रयोग करने का अवसर देती है। विज्ञान, गणित और तर्क शक्ति की समझ से जहां प्रवेश परीक्षाओं में अच्छे अंक पाए जा सकते हैं, वहीं इसका विपरीत सत्य नहीं है। प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी पर इतना अधिक जोर खासकर जेईई पर जोर अब देश की पीढि़यों को चमकदार करियर तो दे रहा है लेकिन उनकी बुनियाद कमजोर कर रहा है।

तीस वर्ष पहले हम ऐसी चिंताओं को खारिज कर देते थे क्योंकि वास्तव में अच्छे बच्चे फिर भी सामने आते थे क्योंकि प्रवेश परीक्षाओं का औद्योगीकरण नहीं हुआ था। यह बात अब सच नहीं है। सूचना के इस युग में सफलता उन्हीं को मिलेगी जिनमें सामान्य संज्ञानात्मक क्षमता होगी, जो ज्ञान, जिज्ञासा, जोखिम उठाने और व्यवस्था को चुनौती देने में सक्षम होंगे। ये बुनियादी जेईई की दुनिया में ध्वस्त हो जाती हैं।

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जेईई का मौजूदा माहौल उन परिवारों और बच्चों को अवसर देता है जो कोचिंग पर लाखों रुपये खर्च कर सकते हैं और जिनके यहां 14 से 17 की उम्र में अनुशासन की संस्कृति है। सवाल यह है कि कितने अनुशासन की आवश्यकता है? इस वर्ष अब तक कोटा में 20 बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं और स्थानीय प्रशासन और अधिकारी छात्रावासों के पंखों में सुधार करवा रहे हैं ताकि 20 किलो से अधिक वजन पड़ने पर वे स्प्रिंग से झूल जाएं। हम कल्पना ही कर सकते हैं कि यह अनुशासन बच्चों पर क्या असर डाल रहा है। हम नेता नहीं अनुयायी तैयार कर रहे हैं।

हाई स्कूल के पाठ्यक्रम का उन्नयन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का क्रियान्वयन इसका प्रस्तावित हल बताया जाता है। परंतु यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह बुनियादी तौर पर छात्रों और उनके माता-पिता को मिल रहे प्रोत्साहन को नहीं बदलता। वास्तविक बदलाव तब आएगा जब किसी कुलीन अकादमिक संस्थान की सीट को ही विद्यालय जाने का इकलौता लक्ष्य नहीं समझा जाएगा। कोचिंग पढ़ाने वाली कंपनियों पर चीन की शैली का प्रतिबंध भी हल नहीं है क्योंकि कोचिंग कारोबार दबे छिपे चलता रहेगा। हमें इस समस्या को जड़ से हल करना होगा।

सवाल यह है कि क्या किया जाना चाहिए? हम सोचते हैं कि जेईई की जगह लॉटरी आधारित आवंटन की व्यवस्था भारतीय शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करेगी। यह आज भी लॉटरी ही है जहां टिकट इतना महंगा है कि अमीर परिवार ही उसे खरीद पाते हैं। एक वर्ष की जेईई कोचिंग की फीस एक औसत भारतीय की साल भर की आय के बराबर है। जेईई के आधार पर क्षमता का आकलन नहीं हो सकता है और यह नहीं कहा जा सकता है कि 80,000 नाकाम विद्यार्थी 20,000 सफल विद्यार्थियों से कमतर हैं।

आज कई कारक काम करते हैं। मसलन परीक्षा के दिन किसी विद्यार्थी का बीमार होना या परीक्षा केंद्र पर लू चलना। सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन का बेहतर तरीका मौजूद है। आईआईटी की लॉटरी के टिकट की लागत शून्य की जा सकती है। सीटों को उन विद्यार्थियों को बिना किसी क्रम के आवंटित किया जा सकता है जो एक खास अर्हता रखते हैं। हम प्राथमिक तौर पर ऐसी परीक्षा ले सकते हैं जिसमें पूछे जाने वाले सवालों के जवाब गूगल को न पता हों। उनमें से शीर्ष दो लाख को चुना जा सकता है। दूसरे चरण में उन 20,000 बच्चों को चुना जा सकता है जो आईआईटी में जाएंगे। ऐसा करके हम मौजूदा तरीकों से निजात पा सकते हैं।

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इससे माता-पिता, छात्र, शिक्षक, स्कूल और कोचिंग उद्योग के लिए निरर्थक बहुउत्तरीय प्रश्नों के जवाब तलाशना बेमानी हो जाएगा। यह संभावना भी बढ़ेगी कि बच्चे अनुशासन में बंधे रहने के बजाय ज्ञान को तरजीह दें। दूसरा, देश भर के विश्वविद्यालय और इंजीनियरिंग कॉलेज भी दबाव महसूस करेंगे और उन्हें अपने मानक सुधारने होंगे क्योंकि अब उनके सामने ऐसे अभ्यर्थी होंगे जिनकी अपेक्षाएं और आकांक्षाएं अधिक होंगी। कुल 23 आईआईटी के अलावा हमें देश में कई अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों का उभार देखने को मिल सकता है। इसमें सरकारी विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।

आईआईटी को भी विविधता का फायदा मिलेगा। ज्ञान और जिज्ञासा बढ़ेगी तथा टेस्ट की तैयारी पर जोर कम होगा। कक्षाओं में विविधता होगी और अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि के बच्चे वहां पढ़ने आएंगे। प्रोफेसर और प्रशासकों को भी अपने आंतरिक तौर तरीकों पर अधिक विचार करना होगा। आईआईटी के सामने घरेलू प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी क्योंकि अच्छे विद्यार्थी ढेर सारे विश्वविद्यालयों में बंट जाएंगे।

लॉटरी के माध्यम से आवंटन, सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन का अधिक समतापूर्ण तरीका है। मौजूदा जेईई व्यवस्था निष्पक्ष नहीं है और वह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है।

(शाह एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता और पई तक्ष​शिला इंस्टीट्यूशन के निदेशक एवं सह-संस्थापक हैं)

First Published - August 30, 2023 | 11:43 PM IST

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