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बैंकिंग साख: पीयर टू पीयर उद्योग पर आरबीआई की बढ़ती नजर

तीसरी बीमारी परिसंपत्ति-देनदारी का बेमेल है, जिसे कुछ पी2पी ऋणदाता अपने खाते में ले रहे हैं। निवेश के लिए तीन महीने तक की अनुमति है लेकिन ऋण एक साल तक के लिए दिए जाते हैं।

Last Updated- August 08, 2024 | 9:35 PM IST
RBI

भारत में ऋणदाताओं को ऋण लेने वालों से ऑनलाइन माध्यम से मिलाने वाले पीयर टू पीयर (पी2पी) ऋण क्षेत्र के हालात को समझने के लिए एक घटना ही काफी है। मई में ‘ए’ नाम के व्यक्ति ने पी2पी प्लेटफॉर्म पर उधार देने के लिए 10,000 रुपये का निवेश किया। यहां किसी निवेशक या बैंक का नाम नहीं बताया जा रहा है।

ए ने 3 मई को रकम डाली और पी2पी प्लेटफॉर्म पर 9 मई को पैसा दिखने लगा। उन्होंने निवेश के लिए ‘मैनुअल’ विकल्प चुना। इसके अलावा ‘ऑटो’ निवेश का भी विकल्प होता है। मैनुअल निवेश प्रक्रिया में निवेशक खुद ही कर्ज लेने वालों को चुनते हैं और प्लेटफॉर्म निवेशकों के निर्देश पर काम करते हैं। ऑटो निवेश वाले माध्यम में प्लेटफॉर्म क्रेडिट मूल्यांकन मापदंडों के आधार पर यानी, भावी कर्जदार के क्रेडिट स्कोर और नकदी आदि की जांच करते हैं (मसलन कर्ज लेने वाला व्यक्ति वेतनभोगी है या नहीं)।

कर्ज लेने वालों को चुनने के इरादे से ए ने 16 मई को प्लेटफॉर्म की वेबसाइट पर गए। उन्होंने देखा कि निवेश के लिए पैसा उपलब्ध नहीं था क्योंकि 10,000 रुपये पहले ही 165 ऋणों के लिए दिए जा चुके हैं और औसत ऋण राशि 60.60 रुपये थी। यह ठीक भी था क्योंकि इस तरह जोखिम कम रहता है।

ए के मामले जो बात ठीक नहीं थी वह यह थी कि उधार लेने वालों में 11.5 प्रतिशत लोगों यानी 19 लोगों ने पहले ही उनसे लिए गए ऋणों की किस्त का भुगतान कम से कम 30 दिन से नहीं किया था। इसे भुगतान में चूक या डिफॉल्ट का पहला चरण कह सकते हैं।

अगर कोई कर्जदार 90 दिनों तक कर्ज बिल्कुल नहीं चुकाता है तब वह कर्ज गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) बन जाता है। सवाल यह है कि अगर कोई 9 मई को निवेश करता है तब पैसा अप्रैल या उससे पहले उधार लेने वालों को कैसे दिया जा सकता है, जिनमें से कुछ पहले से ही ऋण भुगतान में चूक कर चुके हैं?

जून के मध्य तक ए के कर्जदारों संख्या घटकर 136 रह गई, लेकिन 30 दिन तक कोई भी भुगतान नहीं होने वाले ऋणों की संख्या बढ़कर 34 हो गई। इसके अलावा सात एनपीए थे। जुलाई के मध्य तक कर्जदार घटकर 85 ही रह गए। इस बार 24 ऋण या दिए गए एक-चौथाई से अधिक ऋण पर 30 दिनों से भुगतान नहीं हुआ था और छह ऋण एनपीए थे।

ए को हर महीने ब्याज तो मिल रहा था (उन्हें 8.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज का वादा किया गया था) लेकिन सवाल यह है कि उनके पैसे प्लेटफॉर्म पर आने से पहले ही लोगों को ऋण के तौर पर कैसे मिल सकते थे? एक ऋणदाता के तौर पर भी ए के खाते में एनपीए कैसे हो सकते हैं, जब उन्होंने कर्ज देना ही जून में शुरू किया था? इसका जवाब यह है कि जो कर्ज पहले से फंसे हैं, उनमें नए ऋणदाताओं की रकम लगा दी जाती है।

मुझे भी यह जानना है कि आखिर ए ने 8.5 फीसदी ब्याज की कमाई करने के लिए पी2पी बाजार में प्रवेश क्यों किया, जब कुछ बैंक सावधि जमाओं पर इतना ही या थोड़ा अधिक ब्याज दे रहे हैं? ऐसा लगता है कि पी2पी प्लेटफॉर्म के लिए आकर्षण का केंद्र तुरंत मिलने वाली नकदी हो सकती है। वैसे 8.5 प्रतिशत ब्याज कमाना बुरा नहीं है क्योंकि म्युचुअल फंड लगभग 6.5 प्रतिशत ही दे रहे हैं।

यह स्पष्ट है कि कुछ पी2पी प्लेटफॉर्म जमा लेने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की तरह बरताव कर रहे हैं। वे सामूहिक निवेश योजनाएं भी चला रहे हैं जहां विभिन्न ऋणदाताओं से मिली रकम का पूल बनाया जाता है और कई कर्ज लेने वालों को ऋण दे दिए जाते हैं। यह पहली बीमारी है।

अब दूसरी बीमारी की ओर नजर डालते हैं। कुछ पी2पी प्लेटफॉर्म जोखिम से बचने के लिए तथाकथित मार्जिन दे रहे हैं। आखिर यह क्या है? जब निवेशक 8.5 प्रतिशत कमा रहे होते हैं तब हो सकता है कि कुछ कर्जदार 22 फीसदी तक ब्याज चुका रहे हों। दोनों के बीच का अंतर 13.5 फीसदी है जो सुरक्षा का मार्जिन है। इसका मतलब यह है कि जब तक कुल ऋणों का 13.5 प्रतिशत से अधिक एनपीए नहीं होता तब तक निवेशक को पूंजी का नुकसान नहीं होगा।

क्या आरबीआई के मानदंड क्रेडिट जोखिम कम करने के लिए एस्क्रो अकाउंट (एक विशेष खाता होता है जिसमें कुछ शर्तें पूरी होने तक पैसे या संपत्ति रखी जाती है) में सुरक्षा मार्जिन जैसी रकम रखने की अनुमति देता है? क्या जोखिम कर्ज देने वालों का नहीं उठाना चाहिए? क्या ये प्लेटफॉर्म महज जोड़ी मिलाने वाले (फीस लेकर) की भूमिका में नहीं हैं? सुरक्षा का मार्जिन कुछ नहीं बल्कि ऋण की गारंटी और ऋण प्रणाली है। नियामक द्वारा परिभाषित एनबीएफसी-पी2पी इकाई की गतिविधियों का दायरा कुछ इस तरह है:

  • पीयर-टू-पीयर ऋणदाता के तौर पर शामिल प्रतिभागियों के लिए एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस या प्लेटफॉर्म वाले मध्यस्थ की भूमिका में रहें
  • आरबीआई अधिनियम या कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 451 (बीबी) के तहत या उसके तहत परिभाषित जमा को बढ़ावा न दें
  • खुद कर्ज न दें
  • किसी ऋण गारंटी की व्यवस्था न करें
  • उधार देने के लिए ऋणदाताओं से मिली राशि या ऋणों के भुगतान के लिए कर्जदारों से मिली रकम को अपनी बैलेंसशीट में शामिल न करें…

तीसरी बीमारी परिसंपत्ति-देनदारी का बेमेल है, जिसे कुछ पी2पी ऋणदाता अपने खाते में ले रहे हैं। निवेश के लिए तीन महीने तक की अनुमति है लेकिन ऋण एक साल तक के लिए दिए जाते हैं।

हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), मुंबई में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर राजेश्वर राव ने कहा, ‘एनबीएफसी-पी2पी का कारोबारी संचालन नियामकीय दिशानिर्देश के अनुरूप नहीं लगता है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि लाइसेंस से जुड़ी शर्तों और नियामकीय दिशानिर्देश में कोई भी उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है।’

नियामक ने हाल ही कुछ पी2पी प्लेटफॉर्म को उनके कुछ कदमों की वजह से कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है। अब देखना है कि वे अपना बचाव कैसे करते हैं और नियामक इस पर प्रतिक्रिया कैसे देता है।

First Published - August 8, 2024 | 9:35 PM IST

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