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दुनिया में उथल-पुथल मचाने वाली ट्रंप की नीतियां

राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की अनगिनत नीतिगत घोषणाओं के बीच अगर अमेरिका और चीन में सुलह हो गई तो इसका सीधा असर भारत के हितों पर पड़ेगा।

Last Updated- January 31, 2025 | 10:25 PM IST
Trump 25% tariffs on all steel and aluminum imports go into effect

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने चुनाव अभियान के दौरान काफी आक्रामक थे और कई मुद्दों पर आर या पार करने के संकेत दे रहे थे। उस समय किसी को लगा हो कि ट्रंप के बयान महज चुनावी जुमले और दांव-पेच थे तो उसे ऐसे ख्याल तुरंत छोड़ देने चाहिए। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन और उसके बाद मीडिया से बातचीत में ट्रंप ने अपना रुख साफ कर दिया। पद पर बैठते ही वह हरकत में आ गए और एक के बाद एक कई अध्यादेशों (कार्यकारी आदेश) पर हस्ताक्षर किए। ट्रंप ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर काम करेंगे, जिनके ऊपर कोई राजनीतिक या चुनावी बंदिश नहीं होगी।
अमेरिका में आज अभूतपूर्व राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। वहां राजनीतिक ढांचे की विशेष बात यह है कि संविधान में ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के ठोस प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों का स्पष्ट विभाजन किया गया है और उन्हें स्वायत्तता भी प्रदान की गई है। परंतु इस बार राष्ट्रपति पर अमेरिकी संसद का ज्यादा नियंत्रण रहने की संभावना नहीं दिखती क्योंकि संसद के दोनों सदनों में उनकी रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है। इससे भी बड़ी बात है कि कई सदस्य ट्रंप के अहसानमंद हैं या उनके समर्थन पर टिके हैं और वे कभी राष्ट्रपति का विरोध नहीं करेंगे। कई तो डर से भी ट्रंप का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे।
अमेरिका के शीर्ष न्यायालय में दक्षिणपंथी विचारधारा वाले न्यायाधीशों की संख्या अधिक हो गई है, जिन्हें ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में नियुक्त किया था। शीर्ष न्यायालय पहले ही कह चुका है कि ट्रंप बतौर राष्ट्रपति कोई भी निर्णय लें, उसके लिए उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। हालांकि अमेरिका की संघीय व्यवस्था के कारण कुछ हद तक प्रतिरोध दिख सकता है और खास तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी के शासन वाले राज्य विरोध कर सकते हैं। लेकिन इससे भी ट्रंप को अपनी सख्त और चरम नीतियां लागू करने में शायद ही कोई दिक्कत होगी। अमेरिका का जीवंत नागरिक समाज और उदारवाली मीडिया आवाज उठा सकते थे मगर अब यह गुंजाइश भी नहीं बची है क्योंकि कंपनी जगत के ऐसे कई शीर्ष चेहरे ट्रंप की सरकार में आ गए हैं, जिनके हाथों में सोशल मीडिया की डोर है। सोशल मीडिया कंपनी ‘एक्स’ के ईलॉन मस्क का नाम खास तौर पर लिया जा सकता है। उनके अलावा मेटा, गूगल और एमेजॉन के शीर्ष अधिकारी भी ट्रंप के करीब दिख रहे हैं।
ट्रंप चीन की मीडिया कंपनी टिकटॉक को राहत देने का मन बना चुके हैं। इस लोकप्रिय वीडियो शेयरिंग ऐप्लिकेशन पर अमेरिका में प्रतिबंध लगा दिया गया था और वहां की शीर्ष अदालत ने भी इसे सही ठहराया था। मगर ट्रंप ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि टिकटॉक के लिए उनकी बदल गई है क्योंकि इस ऐप ने देश के युवा मतदाताओं तक पहुंचने में उनकी कितनी मदद की। वह कह चुके हैं कि अगर टिकटॉक किसी अमेरिका के साथ बराबर हिस्सेदारी का साझा उपक्रम बनाएगी तौ उसे अमेरिका में चलने दिया जाएगा।
माना जा रहा है कि टिकटॉक को मस्क खरीद लेंगे और ऐसा हुआ तो ट्रंप के पास लोगों की धारणाएं प्रभावित करने तथा उन्हें अपने पक्ष में करने का ताकतवर हथियार आ जाएगा। पारंपरिक मीडिया इसका मुकाबला नहीं कर पाएगा। इसलिए अमेरिका से बहुत अलग रुझान आते दिखेंगे, जो अधिक लोकलुभावन और आक्रामक होंगे। मूल्य एवं नैतिकता बनाए रखने की बात काफी कम की जाएगी। अमेरिका की विदेश नीति की दिशा बाहरी कारकों के बजाय अंदरूनी हालात से अधिक तय होगी।
अपने पहले कार्यकाल की ही तरह ट्रंप ने एक बार फिर पेरिस जलवायु समझौता नकार दिया है। अपने पहले संबोधन में ट्रंप ने ‘ड्रिल बेबी ड्रिल’ का अपना चुनावी नारा दोहराया और जीवाश्म ईंधन यानी कच्चे तेल और गैस कंपनियों पर लगी बंदिश हटा दी। इसमें अलास्का के जंगलों पर तेल उत्खनन की इजाजत देना, पाइपलाइन निर्माण को मंजूरी देना और विदेशों को एलएनजी निर्यात के लिए अतिरिक्त टर्मिनल बनाने की मंजूरी शामिल है। एलएनजी का भारी मात्रा में निर्यात रोकने के लिए ही जो बाइडन के राष्ट्रपति रहते समय अतिरिक्त टर्मिनल के लिए लाइसेंस नहीं दिए गए थे क्योंकि इससे अमेरिका में गैस की कीमत बढ़ जाती। ट्रंप ने अमेरिका में ‘ऊर्जा आपातकाल’ का ऐलान कर दिया है, जबकि हकीकत यह है कि अमेरिका अपनी जरूरत का जीवाश्म ईंधन खुद ही तैयार कर लेता है और उसे पूरा खपा भी देता है। अब अमेरिका में तेल-गैस उत्खनन तथा निर्यात में भारी बढ़ोतरी दिख सकती है। 2023 में संयुक्त अरब अमीरात में जलवायु पर हुई चर्चा ‘कॉप 28’ के दौरान दुनिया ने जीवाश्म ऊर्जा छोड़कर हरित ऊर्जा अपनाने का जो संकल्प लिया था उसे दूर से ही नमस्ते कर लीजिए। भारत को निकट भविष्य में ईंधन की कम कीमतों से फायदा मिल सकता है। वह अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल-गैस खरीदने के लिए तैयार हुआ तो व्यापार के मोर्चे पर अमेरिकी दबाव से भी बचा जा सकता है। मगर आगे जाकर जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयासों को जो गंभीर धक्का लगेगा, उसके दुष्परिणाम ज्यादा घातक होंगे।
ट्रंप ने आव्रजन के खिलाफ कड़े तेवरों से आगे बढ़ते हुए अध्यादेश जारी किए और जता दिया कि उनकी धमकी चुनावी शिगूफा नहीं थी। उन्होंने एक अध्यादेश जारी कर दक्षिण में मैक्सिको के साथ लगी सीमा पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया। पूरी सीमा पर दीवार बनाई जाएगी और अवैध तरीके से आए लोगों को पहचानकर देश से बाहर किया जाएगा। चूंकि इसे आपातकाल करार दिया गया है, इसलिए इसमें अमेरिकी सेना की मदद भी ली जाएगी। इससे अभूतपूर्व मानवीय संकट खड़ा हो सकता है और अमेरिका के भीतर कलह भी फैल सकता है। ट्रंप के फैसले से तकरीबन 19,000 भारतीयों पर भी असर होगा, जिनके पास अमेरिका में रहने के लिए पूरे कागज नहीं हैं। ऐसे लोगों को जल्द ही वापस भारत भेजा जा सकता है। लेकिन ट्रंप ने यह भी कहा है कि विदेश की जो भी प्रतिभा अमेरिका के लिए काम की होगी, उन्हें देश में आने की इजाजत देने के खिलाफ वह नहीं हैं। इसका अर्थ यह निकलता है कि एच-1 बी वीजा की व्यवस्था जारी रह सकती है। एच-1बी वीजा भारत की सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों और उनमें काम करने वाले पेशेवरों के लिए बहुत अधिक अहमियत रखता है।
विदेश से आयात पर शुल्क लगाने की बात अभी तक ट्रंप के एजेंडे में काफी ऊपर रही है लेकिन पद संभालने के बाद से उन्होंने इस बारे में कोई बड़ी घोषणा नहीं की है। हां, उन्होंने यह जरूर कहा है कि मैक्सिको और कनाडा फेंटनिल के निर्यात पर और अपने यहां के लोगों को अवैध रूप से अमेरिका में घुसने से रोकने पर अमेरिकी मांगें नहीं मानते हैं तो उन पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया जाएगा। शुल्क लगाने की यह धमकी व्यापारिक साझेदारों से व्यापारिक रियायतें तथा अन्य प्रकार की छूट हासिल करने के लिए दबाव बनाने वाले औजार की तरह इस्तेमाल की जाएगी। अलबत्ता ट्रंप ने एक नई विदेशी राजस्व सेवा के गठन की घोषणा की है, जो शायद कर और शुल्क का आकलन करेगी, उन्हें लागू करेगी और उनके संग्रह से मिलने वाले राजस्व को अलग खाते में रखेगी। इस तरह ट्रंप दिखा पाएंगे कि अमेरिका को दूसरे देशों से होने वाले वस्तु एवं सेवा आयात पर शुल्क लगाकर कितनी कमाई हो रही है।
जहां तक भारत की बात है तो उसे व्यापार के मोर्चे पर दबाव का सामना करना पड़ सकता है और यह दबाव बिल्कुल वैसा ही होगा, जैसा ट्रंप के पहले कार्यकाल में दिखा था और जिसने भारत को काफी परेशान किया था। ट्रंप भारत पर अमेरिका से अधिक तेल एवं गैस खरीदने या रक्षा उपकरणों का आयात बढ़ाने के लिए दबाव डालने का तरीका अपना सकते हैं। खास बात यह है कि राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन में या संवाददाताओं के साथ बातचीत में ट्रंप ने चीन के खिलाफ किसी तरह का कड़ा बयान नहीं दिया। हालांकि उन्होंने यह दावा तो किया कि चीन पनामा नहर पर नियंत्रण कर रहा है (जो सच नहीं है) मगर उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ हाल में टेलीफोन पर हुई अपनी बातचीत का जिक्र भी खासे सकारात्मक लहजे में किया। उनका लहजा इस बात का संकेत हो सकता है कि दोनों देश अपनी-अपनी किसी नीति के तहत एक-दूसरे के साथ कुछ रियायत बरतने को तैयार हैं। यह बात सच है तो भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। अगर भारत को किसी एक खतरे पर वाकई में बारीक नजर रखनी है तो वह अमेरिका और चीन के बीच सुलह का खतरा है, जिससे भारत को नुकसान हो सकता है। मगर ट्रंप की शपथ के बाद वाशिंगटन में ‘क्वाड’ देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई और एक संक्षिप्त बयान में क्वाड के महत्त्व की चर्चा की गई। इस बयान में क्वाड का अगला सम्मेलन भारत में आयोजित किए जाने का भी जिक्र था, जो भारत के लिए राहत की बात हो सकती है।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव हैं)

First Published - January 31, 2025 | 10:12 PM IST

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