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बैंकिंग साख: दरों पर क्या RBI का रुख बदलेगा?

दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति का आंकड़ा 5.69 प्रतिशत रहा जो हैरान करने वाला लेकिन सकारात्मक रहा और यह सब्जियों की महंगाई कम होने के कारण संभव हुआ।

Last Updated- February 06, 2024 | 9:20 PM IST
RBI

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की दरें-निर्धारित करने वाली संस्था, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दिसंबर की बैठक में ब्याज दर या नीतिगत रुख में कोई बदलाव नहीं किया गया था। लगातार पांचवीं बैठक में भी रीपो दर में कोई बदलाव नहीं हुआ और यह 6.5 प्रतिशत पर बनी रही और इसका रुख व्यवस्था में नकदी कम करने पर रहा है। तब से क्या बदलाव आए हैं? आइए घरेलू परिदृश्य पर नजर डालते हैं।

दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति का आंकड़ा 5.69 प्रतिशत रहा जो हैरान करने वाला लेकिन सकारात्मक रहा और यह सब्जियों की महंगाई कम होने के कारण संभव हुआ। इसके अलावा, गैर-खाद्य, गैर-तेल की बुनियादी मुद्रास्फीति में नरमी बनी हुई है। सितंबर में यह 5.02 प्रतिशत के स्तर पर था और अक्टूबर में घटकर चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर आ गया और फिर नवंबर में बढ़कर 5.55 प्रतिशत हो गया। वित्त वर्ष 2024 के दौरान इसका शीर्ष स्तर 7.44 प्रतिशत (जुलाई 2023 में) है।

मार्च 2020 के बाद पहली बार, बुनियादी मुद्रास्फीति दिसंबर में घटकर 4 प्रतिशत (3.9 प्रतिशत के स्तर पर) से नीचे आ गई, जो नवंबर में 4.1 प्रतिशत थी। यह भविष्य में किसी भी खाद्य कीमत की चुनौती का सामना करने के लिए सुरक्षा की पेशकश करता है। लेकिन सवाल यह है कि बुनियादी मुद्रास्फीति कितने समय तक 4 प्रतिशत से नीचे रह पाएगी? 

ऐतिहासिक रूप से मूल मुद्रास्फीति चार महीने के भीतर ही 4 प्रतिशत से ऊपर के स्तर पर वापस आ जाती है जो वस्तुओं की अधिक कीमतों या घरेलू विकास की प्रेरणा से संभव होता है। उदाहरण के तौर पर सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन संशोधन के चलते सितंबर 2017 और नवंबर 2018 के बीच आवासीय क्षेत्र में उच्च स्तर की मुद्रास्फीति देखी गई।

ब्रेंट क्रूड की कीमत 1 दिसंबर को 79 डॉलर थी जो एक सीमित दायरे में बनी रही और  पिछले शुक्रवार को यह 78.39 डॉलर थी। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में वृद्धि नवंबर 2023 में आठ महीने के निचले स्तर 2.4 प्रतिशत पर आ गई, जो अक्टूबर में 11.6 प्रतिशत और एक साल पहले के 7.6 प्रतिशत से काफी कम हो गई। 

आईआईपी के तीनों घटकों में नवंबर में कमी देखी गई और विनिर्माण इसमें सबसे पिछड़ता हुआ दिखा। हालांकि, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में, आईआईपी वृद्धि 6.4 प्रतिशत है जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के 5.6 प्रतिशत से ऊपर है। इस बीच, रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ है और 10 साल की सरकारी बॉन्ड की यील्ड भी कम हो रही है जिससे राजकोष प्रबंधकों को राहत मिली है।

दिसंबर के पहले सप्ताह में रुपया डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर (83.3938) पर आ गया था। पिछले हफ्ते यह 82.92 के स्तर पर बंद हुआ था। वहीं दूसरी तरफ 10 साल की बॉन्ड यील्ड दिसंबर की शुरुआत में 7.29 प्रतिशत से घटकर सप्ताहांत में 7.04 प्रतिशत हो गई है। इन दोनों घटनाक्रम के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का अंतरिम बजट में राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में टिके रहना रहा है।

वित्त वर्ष 2024 के लिए राजकोषीय घाटे का संशोधित अनुमान, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.8 प्रतिशत है जो पहले के अनुमान से 10 आधार अंक कम है। वित्त वर्ष 2025 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य, सकल घरेलू उत्पाद का 5.1 प्रतिशत है। दोनों आंकड़े अधिकांश विश्लेषकों के अनुमान की तुलना में बेहतर हैं।

बजट के बाद अगले वित्त वर्ष के लिए बाजार का उधारी कार्यक्रम उम्मीद के अनुरूप है। वर्ष के लिए सकल बाजार उधारी लगभग 14.13 लाख करोड़ रुपये और शुद्ध उधारी 11.75 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। बेशक, इसमें एक पेच है। चूंकि वित्त वर्ष 2025 में बॉन्ड मूल्यों का भुगतान लगभग 3.61 लाख करोड़ रुपये है, इसलिए सकल उधारी 15.36 लाख करोड़ रुपये होनी चाहिए थी। करीब 1.23 लाख करोड़ रुपये के अंतर को जीएसटी मुआवजा पूल से कवर किया जा रहा है। 

बजट के रुख का मौद्रिक नीति पर प्रभाव होना चाहिए। भारत के अलग-थलग पड़ जाने की सभी बातों के बावजूद एमपीसी की चर्चा में यह बात भी शामिल होगी कि वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंक क्या कर रहे हैं। पिछले हफ्ते अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने नीतिगत दर को लगातार चौथी बार न बदलने का फैसला किया जो 5.25-5.5 प्रतिशत पर 23 वर्ष का सबसे उच्च स्तर है। 

फेडरल ओपन मार्केट कमेटी में यह फैसला सर्वसम्मति से हुआ था। लेकिन नई नीति का सुर पिछली नीतियों से अलग है, जिनमें मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने तक ब्याज दरें बढ़ाने की इच्छा जाहिर की गई थी। साथ ही, अभी तक दरों में कटौती की कोई योजना नहीं दिख रही है जबकि मुद्रास्फीति अब भी फेडरल रिजर्व के 2 प्रतिशत लक्ष्य से ऊपर चल रही है।

फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने मार्च में दर में कटौती की संभावना खारिज कर दी लेकिन कहा कि मौजूदा सख्ती के दौर में दरें ‘संभवतः अपने शीर्ष पर है’। उन्होंने कहा, ‘अगर अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से उम्मीद के अनुसार दिखाई देती है तब इस साल किसी भी वक्त नीतिगत सख्ती कम करने की शुरुआत करना उचित होगा।’

एक दिन बाद, बैंक ऑफ इंगलैंड की मौद्रिक नीति समिति ने 6-3 वोट के माध्यम से 5.25 प्रतिशत के मौजूदा स्तर पर प्रमुख दर को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में मतदान किया। वर्ष  2008 के वित्तीय संकट के बाद से सबसे अधिक दर है। जनवरी के अंतिम सप्ताह में, यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने भी ब्याज दरों को रिकॉर्ड 4 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बनाए रखा और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। 

हालांकि यह स्पष्ट है कि उधार लागत को आसान बनाने का समय करीब आ रहा है। अब अमेरिकी फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंगलैंड दोनों ने सख्ती के पूर्वग्रह को खत्म कर दिया है। यह चक्र समाप्त हो गया है और अब इनके द्वारा दरों में कटौती किए जाने में ज्यादा वक्त नहीं बचा है।

लेकिन अब सवाल यह है कि क्या आरबीआई उसी रास्ते पर चलेगा? इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगले हफ्ते या अप्रैल में अगली नीति में भी दरों में कटौती नहीं होगी। लेकिन, क्या एमपीसी अपने नकदी को कम करने के रुख को तटस्थ रुख में बदलेगा? या मॉनसून के पूर्वानुमान का इंतजार करेगा? यह एक कठिन निर्णय हो सकता है।

दिसंबर की नीति के दौरान मुद्रास्फीति के अनुमान को नहीं बदला गया था। यह वित्त वर्ष 2024 के लिए 5.4 प्रतिशत है, तीसरी तिमाही में 5.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत है। ऐसे में यहां किसी बदलाव की उम्मीद ना करें।

First Published - February 6, 2024 | 9:20 PM IST

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