दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि शहर के प्रशासन को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट चर्चा के लिए विधान सभा में तत्परता से पेश की जानी चाहिए थी, लेकिन इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार द्वारा अपने कदम पीछे खींच लेने से ‘उसकी सत्यनिष्ठा पर संदेह’ पैदा हुआ।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि विधान सभा सत्र बुलाना विधानसभाध्यक्ष का विशेषाधिकार है, ऐसे में सवाल यह है कि क्या अदालत विधान सभा अध्यक्ष को ऐसा करने का निर्देश दे सकती है, खासकर तब जब चुनाव नजदीक हों। न्यायमूर्ति दत्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘जिस तरह से आपने अपने कदम पीछे खींचे, उससे आपकी सत्यनिष्ठा पर संदेह उत्पन्न हुआ। आपको सदन में चर्चा कराने के वास्ते तत्परता से रिपोर्ट विधान सभा अध्यक्ष को भेजनी चाहिए थी।’
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘चर्चा से बचने के लिए आपने अपने कदम पीछे खींचे हैं। रिपोर्ट पर आपने कितना समय लिया हैं और उन्हें उपराज्यपाल को इसे भेजने और फिर अध्यक्ष तक पहुंचाने में कितना समय लगा, जितना समय लगाया गया, वह बहुत ही अधिक है। देखिए जिस तरह से आप अपने कदम पीछे खींच रहे हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।’