facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

Manmohan Singh: हर भिड़ंत में दिखाई समझ और बुद्धिमत्ता की गहराई

1991 के आर्थिक सुधारों से देश को नई दिशा देने वाले मनमोहन सिंह, अपनी शालीनता और ईमानदारी के लिए हमेशा याद किए जाएंगे

Last Updated- December 27, 2024 | 11:05 PM IST
Manmohan Singh funeral: Manmohan Singh merged with Panchatatva, last rites took place at Nigam Bodh Ghat पंचतत्व में विलीन हुए मनमोहन सिंह, निगम बोध घाट पर हुआ अंतिम संस्कार

मैं पहली बार मनमोहन सिंह से 1981 में मिला। दिल्ली में बिजनेस स्टैंडर्ड के संवाददाता के तौर पर योजना आयोग के सदस्य-सचिव से मिलने मैं अपने ब्यूरो प्रमुख के साथ गया था। वे उनके पुराने मित्र थे और जैसे ही हम उस बड़े कार्यालय में सोफा पर बैठे, मेरे बॉस ने पाया कि अच्छी तरह से पॉलिश किए गए सिंह के जूते की क्रीज फटी हुई थी। मेरे ब्यूरो प्रमुख ने अपने मित्र से पूछा, आप नए जूते क्यों नहीं ले लेते। डॉ. सिंह का जवाब था – संयुक्त राष्ट्र के आखिरी असाइनमेंट से हुई बचत से हमने अपने लिए घर बनाया है। अब हमें अपनी बेटियों की शादी के लिए रकम बचाने की जरूरत है।

इसके ठीक बाद मैंने आयोग के अन्य सदस्य से उनके घर पर मुलाकात की। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक ने एक कप चाय की पेशकश न कर पाने के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा, चीनी काफी महंगी हो गई है। तब ऐसा समय था जब सरकार के उच्च पदाधिकारी भी एक ऐसी अर्थव्यवस्था में कम वेतन पर सामान्य जीवन जी रहे थे, जो वैश्विक तौर पर गरीबी के लिए और देश में किल्लत व हर चीज पर नियंत्रण के लिए जाना जाता था। डॉ. मनमोहन सिंह ने इसी अर्थव्यवस्था को 1991 में नियंत्रण से आजाद कर दिया। उत्पादक अब ग्राहकों के पीछे हैं, जैसा कि उन्हें करना चाहिए।

वास्तव में, डॉ. सिंह को 1991 में उनके किए काम से ज्यादा श्रेय दिया गया। एक बार उन्होंने साक्षात्कार में कहा था, यह टीम का प्रयास था और गुमनाम पीवी नरसिंह राव से लेकर उनके प्रधान सचिव ए एन वर्मा और उद्योग व वाणिज्य मंत्रालयों के अन्य लोगों ने इसमें अपनी भूमिका निभाई – जिसमें यशवंत सिन्हा भी शामिल थे जिन्होंने चन्द्रशेखर के अधीन वित्त मंत्री के रूप में राव सरकार के शपथ ग्रहण तक दिवालियापन को रोकने के लिए कड़ी मेहनत की।

लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि भारत के लिए एक नए युग का संकेत देने वाला महत्वपूर्ण घटनाक्रम डॉ. सिंह का 1991 का बजट था, जिसमें उन्होंने विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था कि पृथ्वी पर कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है और इन शब्दों के साथ समाप्त हुआ: पूरी दुनिया को इसे जोर से और स्पष्ट रूप से सुनने दें। भारत अब जाग चुका है। हम प्रबल होंगे, हम विजयी होंगे। जैसे कि चीजों को संतुलित करने के लिए डॉ. सिंह को उनके प्रधानमंत्रित्व काल में हुई कुछ चीजों के लिए शायद उनकी अपेक्षा से ज्यादा आलोचना मिली।

उनके सामने बहुत कठिन परिस्थिति थी: एक जर्जर गठबंधन सरकार, जिसमें हर गठबंधन सहयोगी वही करता था जो वह चाहता था, एक ऐसी सरकार जो अवरोधक कम्युनिस्टों के समर्थन की आवश्यकता से जूझ रही थी, एक ऐसा मंत्रिमंडल जिसमें कई मंत्री सोनिया गांधी के प्रति वफादार थे, न कि प्रधानमंत्री के प्रति। स्वयं श्रीमती गांधी ने कुछ बागडोर अपने हाथ में रखी और द्वैध शासन स्थापित किया। डॉ. सिंह पद पर थे लेकिन वास्तव में सत्ता पर उनका पूरा नियंत्रण नहीं था।

वह नेतृत्व प्रदान करने में विफल रहे, जो उनकी भूमिका थी। जबकि उनका दर्शन था कि राजनीति संभव बनाने की कला है, उन्होंने खुद पर जोर नहीं दिया और संभावनाओं की सीमा का विस्तार नहीं किया – जैसा कि मैंने एक स्पष्ट लेकिन मैत्रीपूर्ण व्यक्तिगत बातचीत के दौरान उन्हें बताने का साहस किया। उनकी प्रतिक्रिया थी कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। एक प्रधानमंत्री के लिए यह कहना अजीब बात थी। और श्रीमती गांधी को उनका हक दिलाने के लिए वह सिंह सरकार की कई बड़ी पहलों की प्रवर्तक थीं, जैसे सूचना का अधिकार, ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम और भोजन का अधिकार। ऐसा लगता है कि डॉ. सिंह के पास किसानों का कर्ज समाप्त करने के अलावा कोई अन्य विचार था ही नहीं।

अंत में आपके साथ जो बचता है वह आपके व्यक्तिगत गुण होते हैं। पारदर्शी सत्यनिष्ठा और सार्वजनिक उद्देश्य की भावना, शालीनता और शिष्टाचार जो हर बैठक को चिह्नित करता है। समझ और बुद्धिमत्ता की गहराई जो उन्होंने हर भिड़ंत में प्रदर्शित की, कभी-कभार की हंसी जिसने कठिन समय में भी हंसने की उनकी क्षमता दिखाई। जो बात अभी भी बनी हुई है वह स्पष्ट सम्मान है, जो ली कुआन यू जैसे कद के नेताओं का उनके प्रति था। और वह थोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कह सकते थे। 1996 में जब मैंने उल्लेख किया कि राव सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र में आर्थिक सुधारों पर प्रकाश नहीं डालेगी, तो उन्होंने एक पल के लिए रुककर पूछा : बात करने के लिए और क्या है?

टिप्पणीकारों ने डॉ. सिंह की विनम्रता का उल्लेख किया है। हां, उनका व्यवहार विनम्र था, जो स्वाभाविक रूप से आया था लेकिन मुझे लंबे समय से संदेह है कि अपने अनुमान के अनुसार वह अपने आस-पास के लोगों की तुलना में ज्यादा ऊंचे स्थान पर खड़े थे और वह भी अच्छी वजह के साथ। अगर ऐसा था तो उसके पास इस आत्ममूल्यांकन को अच्छी तरह से छिपाकर रखने की अच्छी समझ थी। जैसा कि मैंने एक से अधिक बार देखा है। दिल्ली के ताज पैलेस होटल में दोपहर के भोजन के दौरान जॉर्ज डब्ल्यू बुश को दिए गए उनके अतिउत्साही बयान में यह गलत निकला, जब उन्होंने दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा कि पूरा भारत उनसे प्यार करता है।

उन्होंने आईएमएफ के प्रबंध निदेशक मिशेल कैमडेसस के साथ भी ऐसा ही किया, जिन्होंने 1991 में जीवन-रक्षक ऋण स्वीकृत किया था। बाद में दिल्ली में एक रात्रिभोज में जब कैमडेसस उनसे मिलने आए थे तो उन्होंने उन्हें सर कहा, डॉ. सिंह आमतौर पर अपने अतिथि को ( अगर मेरी याद्दाश्त सही है) सर बुलाते थे। शायद ये सिर्फ भारतीय व्यवहार था लेकिन वहां बैठकर मुझे लगा कि भारत के किसी भी वित्त मंत्री को आईएमएफ के कार्यकारी को इस तरह से संबोधित नहीं करना चाहिए।

जब भी उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा, उन्होंने पूरी शालीनता दिखाई और कभी भी व्यक्तिगत बैठकों या साक्षात्कारों के दौरान इसका जिक्र नहीं किया। इस अखबार के अल्पकालिक पुस्तक प्रभाग द्वारा प्रकाशित पहली पुस्तक का विमोचन करते समय उन्होंने कहा कि उनकी सरकार जो करने में विफल रही, उसके लिए वह आलोचना को समझते हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अखबार को कम से कम सरकार को उस उपलब्धि के लिए श्रेय देना चाहिए जो उसने हासिल की है। यह उचित था।

एक पत्रकार के रूप में यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मैं पिछले 35 वर्षों में जितनी बार डॉ. सिंह के साथ बातचीत कर सका, आलोचनाओं के बावजूद उनकी गर्मजोशी और शिष्टाचार का आनंद ले सका। भारत के एक सच्चे महान सपूत के प्रति हमेशा काफी सम्मान रहा। उनका निधन मेरे लिए किसी भी अन्य सार्वजनिक हस्ती की तुलना में अधिक दुखद घटना है।

First Published - December 27, 2024 | 11:05 PM IST

संबंधित पोस्ट