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लेखक : सोनल वर्मा

आज का अखबार, लेख

भारत के लिए मुद्रास्फीति के अनुकूल हालात

भारत की मुद्रास्फीति एक नए दौर में प्रवेश कर गई है। छह वर्षों तक लक्ष्य से ऊंची रही मुद्रास्फीति से संघर्ष करने के बाद और महामारी, जंगों और खाद्य मुद्रास्फीति के झटकों से गुजरते हुए हेडलाइन मुद्रास्फीति आखिरकार 2025-26 में रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य से नीचे रहती नजर आ रही है। यदि […]

आज का अखबार, लेख

टैरिफ के झटके से कैसे उबरे भारत

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने नए पूर्वानुमान में साफ कहा है कि वैश्विक वृद्धि में गिरावट आ सकती है। शुल्कों के कारण अमेरिका में अपस्फीति की स्थिति बन सकती है और बाकी दुनिया को मांग में कमी का झटका लग सकता है। भारत के लिए इसका क्या मतलब है और हमें इसके लिए तैयार कैसे […]

आज का अखबार, लेख

ट्रंप के शुल्कों में भी भारत के लिए कई मौके

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ यानी अमेरिकी हित सर्वोपरि रखने के रुख ने व्यापार नीति में अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिससे विश्व व्यापार अस्तव्यस्त होने का खतरा खड़ा हो गया है। अमेरिका को जो अनुचित और असंतुलित व्यापार लगता है उसे दुरुस्त करने के लिए शुल्कों की बौछार शुरू हो गई है। भारत […]

अर्थव्यवस्था, आज का अखबार, लेख

स्थिरता के साथ कैसे हासिल हो वृद्धि?

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से देखें तो वर्ष 2024 को ‘मजबूत शुरुआत और कमजोर अंत’ वाला वर्ष कहा जा सकता है। वर्ष की शुरुआत तो बेहतरीन रही, जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वास्तविक वृद्धि दर करीब आठ फीसदी थी और मुद्रास्फीति में कमी आ रही थी। मगर आखिर के कुछ महीनों में जीडीपी वृद्धि […]

आज का अखबार, लेख

फेडरल रिजर्व के बाद क्या अब RBI की ब्याज दर घटाने की बारी? नीतिगत स्तर पर क्या हैं इसके मायने

अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि तेजी से उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों को अमेरिका के फेडरल रिजर्व का अवश्य अनुसरण करना चाहिए। इन विश्लेषकों के अनुसार अगर ये केंद्रीय बैंक ऐसा नहीं करते हैं तो ब्याज दरों में अंतर के कारण पूंजी पलायन और मुद्राओं में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम देखने को मिल सकता […]

आज का अखबार, लेख

चीन प्लस वन रणनीति भारत के लिए अवसर

आर्थिक विकास के लिए ‘वाइल्ड गीज-फ्लाइंग पैटर्न’ जापानी शब्द गांको केईताई का अनुवाद है जिसे अर्थशास्त्री कनामे अकामात्सु ने जापान में देखे गए आर्थिक विकास के रुझान की व्याख्या करने के लिए इस्तेमाल किया था। युद्ध के बाद जापान ने कपड़ों जैसे सस्ते उत्पादों का उत्पादन शुरू किया। सन 1960 के दशक में इनकी लागत […]

आज का अखबार, लेख

भारत के लिए चुनौती हैं मौजूदा संघर्ष और हालात

तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में सतत विकास हासिल करने के लिए नीतिगत रूप से चपल होना, विवेक संपन्न होना और लचीलापन अपनाना आवश्यक है। बता रही हैं सोनल वर्मा बीते दो माह की अवधि की बात की जाए तो भूराजनीतिक परिस्थितियां और बाजार से जुड़े घटनाक्रम भारत के आर्थिक दृष्टिकोण के लिए जोखिम बनकर […]