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लेखक : कनिका दत्ता

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: आर्थिक सुधारों पर बहुदलीय सहमति से वृद्धि को मिल सकता है बल

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रतिक्रिया के बारे में दुनिया को बताने के लिए विभिन्न देशों में बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह तरीका दूसरे मामलों में भी अपनाया जाना चाहिए। बहुपक्षीयता का यह विचार निस्संदेह काफी प्रेरित करने वाला है। दुर्भाग्य है कि किसी ने भी […]

आज का अखबार, लेख

ट्रंप का ‘मुक्ति दिवस’ शुल्क पहुंचाएगा नुकसान

अर्थशास्त्रियों को शायद यह महसूस हो रहा होगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के लिए अर्थशास्त्र के प्रारंभिक सिद्धांतों को समझना निहायत ही जरूरी हो गया है। इसके पीछे अर्थशास्त्रियों की यह सोच हो सकती है कि ट्रंप द्वारा 2 अप्रैल को ‘मुक्ति दिवस’ के नाम पर लगाए ऊंचे शुल्क अर्थशास्त्र के किसी भी […]

आज का अखबार, लेख

अमेरिका में विविधता, समानता पर चोट

डॉनल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी कंपनियों के सुर बदलते दो महीने भी नहीं लगे और वे खुद को प्रगतिशील सामाजिक एवं राजनीतिक सोच के खिलाफ दिखाने लगीं। वजह? वे ट्रंप प्रशासन में आने वाले कारोबारी मौके लपकने में वक्त बिल्कुल जाया नहीं करना चाहतीं। सिलसिला दुनिया की सबसे बड़ी धन प्रबंधन […]

आज का अखबार, लेख

उद्योग जगत में श्रमिकों की कमी का दर्द

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू किए अभी एक साल ही हुआ था कि चीनी उद्योग से जुड़े एक बड़े उद्योगपति बजट पेश होने के बाद टेलीविजन पर एक कार्यक्रम में अनोखी शिकायत करते नजर आए। उन्होंने कहा कि नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (इसका शुरुआती नाम यही […]

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: सीईओ तैयार करने में क्यों पिछड़ रहा है भारत?

दिग्गज कंपनियों जैसे गूगल (अल्फाबेट) और माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय मूल के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) सुंदर पिचाई और सत्य नडेला अक्सर यहां आते रहते हैं। उनकी भारत यात्रा से साथ कई बातें जुड़ी रहती हैं मगर उनमें एक खास बात यह है कि वे देश के मध्यम वर्ग के लोगों को गौरवान्वित महसूस करने का मौका […]

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: हरित क्रांति की अनचाही विरासत

हरित क्रांति ने देश की किस्मत बदलने में महती भूमिका निभाई, लेकिन अब इसका चक्र उल्टा घूम रहा है। इसके दुष्परिणाम उस समय नीति निर्माताओं ने सोचे भी नहीं होंगे। आज जब किसान आए दिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की सीमाओं पर डेरा डाल रहे हैं तो1960 के दशक की हरित क्रांति के परिणाम अपर्याप्त […]

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: विमानन क्षेत्र का अल्पकालिक आकर्षण

तीन दशक पहले शुरू हुई दिग्गज विमानन कंपनी जेट एयरवेज 7 नवंबर को उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के साथ ही बंद कर दी गई। इसके कुछ दिन बाद टाटा समूह के मालिकाना हक वाली विस्तारा का विलय एयर इंडिया में कर दिया गया। यह कंपनी 11 साल पहले ही अस्तित्व में आई थी और […]

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: असंगठित और संगठित क्षेत्र की कार्यसंस्कृति

नालियां और सीवर ऐसी जगहें हैं, जहां दुनिया में कोई भी शायद ही काम करना चाहता हो। मगर कचरा फंसने से रुकी नालियों और सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले 7 लाख से ज्यादा भारतीयों के लिए ये रोजाना के कामकाज की जगह हैं, जिन्हें हाथ से मैला ढोने वाला सफाईकर्मी कहा जाता है। इस […]

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: भारतीय कंपनियों में महिला नेतृत्व और कार्यस्थल सुरक्षा की चिंताजनक स्थिति

कोलकाता के आर जी कर अस्पताल में हुई दर्दनाक घटना और मलयालम फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न का खुलासा करने वाली रिपोर्ट का भारत की 500 सबसे बड़ी कंपनियों की फॉर्च्यून इंडिया सूची के साथ पहली नजर में कोई संबंध नहीं दिखता। मगर सच यह है कि इनका आपस में लेना-देना है। पहली दो घटनाएं […]

आज का अखबार, लेख

जिंदगीनामा: पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की बढ़ती होड़

वित्त वर्ष 2025 के बजट से काफी पहले से ही रोजगार की समस्या का मसला अखबारों के पहले पन्ने पर छपता रहा है। लेकिन इस बजट से पता चला है कि देर से और खीझकर ही सही सरकार ने इस पर ध्यान दिया है। अर्थशास्त्री खुले तौर पर और निजी क्षेत्र की दिग्गज हस्तियां गुपचुप […]

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