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Economic Survey 2024: 2030 तक हर साल 80 लाख नौकरियों की दरकार, निजी क्षेत्र का भी लेना होगा साथ

Economic Survey 2024 में असमानता कम करने के लिए पूंजी और श्रम आय पर कर नीतियों का भी जिक्र किया गया है क्योंकि एआई जैसी तकनीक से रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

Last Updated- July 22, 2024 | 10:25 PM IST
Economic Survey 2024: 80 lakh jobs are needed every year by 2030, private sector will also have to be involved Economic Survey 2024: 2030 तक हर साल 80 लाख नौकरियों की दरकार, निजी क्षेत्र का भी लेना होगा साथ

Economic Survey 2024: वित्त वर्ष 2023-24 के लिए संसद में आज प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2030 तक सालाना करीब 80 लाख नौकरियां पैदा करने के लिए निजी क्षेत्र का भी साथ लिया जाए। इसके साथ ही कंपनियों को आगाह किया गया कि नौकरियां कम करने के लिए उन्हें आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी ज्यादा पूंजी निवेश की दरकार वाली प्रौद्योगिकियों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन और उनकी टीम द्वारा तैयार की गई आर्थिक समीक्षा में अतिरिक्त श्रमबल और कृषि क्षेत्र में रोजगार कम होने के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि अर्थव्यवस्था को 2036 तक गैर-कृषि क्षेत्र में हर साल औसतन करीब 90 लाख नौकरियों की जरूरत होगी।

आर्थिक समीक्षा में कॉर्पोरेट क्षेत्र को ताकीद किया गया कि रोजगार सृजन मुख्य रूप से निजी क्षेत्र में होता है और मुनाफा कमाने के मामले में कंपनियों की स्थिति पहले की तुलना में कहीं अच्छी है। इसमें कहा गया है, ‘वित्त वर्ष 2020 और वित्त वर्ष 2023 के बीच मुनाफा चार गुना हो गया है। कंपनियां कई बार मांग कम होने का तर्क देकर निवेश से परहेज करती हैं। श्रम पर पूंजी को तवज्जो देना लंबी अवधि में कंपनियों के विकास की संभावना के लिए नुकसानदायक है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि पूंजी और श्रम के बीच सही संतुलन कायम करना व्यवसाय का दायित्व होता है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकारों ने कहा कि कॉर्पोरेट क्षेत्र की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह उन तरीकों के बारे में सोचें जिनसे एआई कामगारों को हटाने के बजाय श्रमबल को बढ़ा सके। यह इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि बीते दो वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नियुक्तियों की रफ्तार काफी सुस्त हो गई है।

समीक्षा में असमानता कम करने के लिए पूंजी और श्रम आय पर कर नीतियों का भी जिक्र किया गया है क्योंकि एआई जैसी तकनीक से रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। हालांकि मुख्य आर्थिक सलाहकार ने संवाददाताओं से बात करते हुए स्पष्ट किया कि यह मुद्दा काफी चर्चा का विषय है।

आर्थिक वृद्धि, रोजगार सृजन और उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कई मुद्दे राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ऐसे में आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि देश को अपनी उच्च और लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र के बीच त्रिपक्षीय समझौते की जरूरत है ताकि 2047 तक ‘विकसित भारत’ का सपना साकार हो सके। समीक्षा में सलाह दी गई है कि इसके लिए सरकार अपने कुछ अधिकारों को छोड़ सकती है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि निजी क्षेत्र की वित्तीय कंपनियों को ऐसी योजनाओं को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए जो छद्म तरीके से ज्यादा लाभ देने का संकेत देते हैं और बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र को भ्रामक योजनाओं की बिक्री को भी प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। वित्तीय कंपनियों को अधिक कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व का पालन करना चाहिए।

निजी क्षेत्र में लंबी अवधि के लिए निवेश की संस्कृति प्रोत्साहित करने और आने वाले दशकों में बुनियादी ढांचे तथा स्वच्छ ऊर्जा पर निवेश की जरूरतों को पूरा कर इसका लाभ उठाने की जरूरत है। इसके साथ ही निजी क्षेत्र को पारंपरिक भारतीय जीवनशैली और खान-पान की आदतों को वैश्विक बाजार में प्रसार कर अवसर का लाभ उठनिे की जरूरत है।

समीक्षा में कहा गया है कि नीति निर्माताओं को कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का लाभ उठाना चाहिए। इसके साथ ही सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) की अड़चनों को दूर करने और कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार का दायरा बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।

नीति निर्माताओं को बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चीन-प्लस वन की रणनीति का कुशलता से फायदा उठाना चाहिए। भारत के सामने दो विकल्प हैं- चीन की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होना या चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना। सामान्य तौर पर इसका मकसद विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए ट्रांसफर प्राइसिंग, आयात शुल्क सहित अन्य करों पर स्थिति स्पष्ट करने का संकेत दिया गया है।

2023-24 के लिए आर्थिक वृद्धि का कम अनुमान लगाने के बावजूद समीक्षा में वित्त वर्ष 2025 के लिए 6.5 से 7 फीसदी वृद्धि का अनुमान काफी सोच-विचार कर लगाया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने चालू वित्त वर्ष में 7.2 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान लगाया है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि अल्पावधि में मुद्रास्फीति में नरमी के संकेत दिख रहे हैं मगर देश को तिलहन का उत्पादन और दलहन का रकबा बढ़ाकर लंबी अवधि के लिए नीति में स्थिरता लाने की जरूरत है। इसके साथ ही चुनिंदा फसलों के लिए आधुनिक भंडारण सुविधाएं विकसित करने में तेजी लानी चाहिए।

First Published - July 22, 2024 | 10:17 PM IST

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