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वस्तु एवं सेवा कर (GST) के 6 साल रहे बेमिसाल

जीएसटी से सरकारी खजाने में हर महीने करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये आ रहे हैं और यह सिलसिला जारी रह सकता है

Last Updated- July 02, 2023 | 11:51 PM IST
Preparations are underway for a major change in the GST rate, arrangements can be made to reduce it from the current 4 to 3 slabs. GST रेट में हो रही बड़े बदलाव की तैयारी, मौजूदा 4 से घटाकर 3 स्लैब की बनाई जा सकती है व्यवस्था

सहयोगात्मक संघवाद का नायाब नमूना समझे जाने वाली अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अस्तित्व में आए छह वर्ष पूरे हो चुके हैं। जीएसटी से सरकारी खजाने में हरेक महीने कम से कम 1.5 लाख करोड़ रुपये आ रहे हैं। यह एक नया एवं निरंतर जारी रहने वाला सिलसिला लगने लगा है। जब 1 जुलाई, 2017 को यह नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था लागू हुई थी तो पहले 20 महीने के दौरान सरकारी खजाने में राजस्व के रूप में प्रत्येक महीने 1 लाख करोड़ रुपये से कम रकम आ रही थी।

जीएसटी से प्रत्येक महीने तब 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक राजस्व मिल रहा है जबकि सरकार के लिए राजस्व के बड़े स्रोत पेट्रोलियम, अल्कोहल, रियल एस्टेट का एक हिस्सा और बिजली जीएसटी व्यवस्था से अब भी बाहर हैं।

जीएसटी का सफर और इसके असर केवल इस कर प्रणाली तक सीमित नहीं रहे हैं। प्रत्यक्ष कर अधिकारियों के साथ आंकड़ों के स्थानांतरण और कारोबार पर लागत कम होने से आय और निगमित करों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। जीएसटी और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात कर राजस्व में तुलना करने का एक बेहतर जरिया हो सकता है। यह अनुपात बढ़ा जरूर है मगर इसकी रफ्तार उतनी तेज नहीं रही है।

वर्ष 2017-18 में जीएसटी लागू होने के बाद यह अनुपात 6 प्रतिशत से अधिक रहा है। कोविड महामारी से प्रभावित 2020-21 में केवल यह अनुपात 6 प्रतिशत से कम रहा। पिछले कुछ वर्षों के दौरान जीएसटी बॉयंसी 1 से अधिक रहा है जो इस बात का संकेत है कि जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी नॉमिनल जीडीपी की तुलना में अधिक रही है।

जीएसटी लागू होने के बाद पहले पूर्ण वर्ष 2018-19 में संग्रह प्रत्येक महीने औसतन 98,000 करोड़ रुपये रहा। यह आंकड़ा 2017-18 के पहले आठ महीनों के दौरान 90,000 करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक रहा। वर्ष 2019-20 में अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बावजूद जीएसटी संग्रह 1 लाख रुपये का आंकड़ा पार कर गया।

मगर यह रफ्तार थोड़े दिन ही कायम रह पाई और कोविड महामारी से बचाव के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण औसत मासिक जीएसटी संग्रह कम होकर मात्र 0.95 लाख करोड़ रुपये रह गया। यह आंकड़ा 2018-19 में दर्ज प्रत्येक महीने के औसत से भी कम रहा। तब से लेकर जीएसटी संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है।

वास्तव में जीएसटी संग्रह चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीने में औसतन प्रति माह 1.72 लाख करोड़ रुपये रहा। अप्रैल में जीएसटी संग्रह 1.87 लाख करोड़ रुपये रहा जो अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है। मई में संग्रह 1.57 लाख करोड़ रुपये रहा। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का मानना है कि इस साल की बची अवधि में जीएसटी संग्रह 1.55-1.65 लाख करोड़ रुपये के बीच रह सकता है।

अगर ऐसा हुआ तो औसत मासिक राजस्व संग्रह 2022-23 की तुलना में 2023-24 में अधिक रहेगा। 2020-21 में अर्थव्यवस्था में सुधार के बाद जीएसटी संग्रह में खासा इजाफा हुआ है। कर अनुपालन बढ़ने से भी बेहतर आंकड़े दर्ज करने में मदद मिली है।

केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा-शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के चेयरमैन विवेक जौहरी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार दिख रहा है, यही कारण है कि जीएसटी संग्रह के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। जौहरी ने कहा, ’इस बार एक अन्य कारण से भी जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी दर्ज की गई है और वह है कर अनुपालन में मुस्तैदी। यह बात रिटर्न फाइलिंग में भी दिख रही है जो इस बार 80-95 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

जीएसटी लागू होने से पहले रिटर्न दाखिल करने की दर 65-70 प्रतिशत हुआ करती थी।’यह पूछे जाने पर कि केंद्र एवं राज्य सरकार ने यह करिश्मा कैसे कर दिखाया, जौहरी ने इसका श्रेय तकनीक को दिया जिसका इस्तेमाल ऐसे लोगों की पहचान के लिए किया जा रहा है जो रिटर्न दाखिल करने में आनाकानी करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘हमने एक मानक संचालन प्रक्रिया तय कर रखी है जिसका पालन केंद्र और राज्य दोनों करते हैं। मसलन, अगर रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख 20 तारीख है तो इसके अगले दिन रिटर्न दाखिल नहीं करने वाले लोगों के बारे में हमें पता चल जाता है। उस महीने के बचे दिनों में हम ऐसे लोगों को जल्द से जल्द रिटर्न दाखिल करने के लिए बार-बार कहते रहते हैं। हम उन्हें कॉल करते हैं, बार-बार याद दिलाते हैं कि उन्होंने रिटर्न दाखिल नहीं किया है।’

जीएसटी संग्रह बढ़ाने के लिए सीबीआईसी लगातार डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल कर रहा है। इससे अप्रत्यक्ष कर संग्रह तो बढ़ा ही है, साथ में प्रत्यक्ष कर संग्रह में भी इजाफा हुआ है।

2019-20 और 2020-21 में लगातार दो वर्षों तक सुस्त रहने के बाद 2021-22 में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 49.12 प्रतिशत का इजाफा हुआ। मगर यह तेजी बहुत कम आधार पर दर्ज की गई। 2022-23 में प्रत्यक्ष कर संग्रह में फिर इजाफा दर्ज हुआ मगर ऊंचे आधार पर यह तेजी महज 15.69 प्रतिशत रही।

प्रत्यक्ष कर और जीडीपी अनुपात 2021-22 में बढ़कर 5.77 प्रतिशत हो गया और फिर 2022-23 में बढ़कर 5.99 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया। 2020-21 और 2019-20 में यह अनुपात क्रमशः 4.78 प्रतिशत और 5.23 प्रतिशत था। मगर तब भी यह 2018-19 में दर्ज 6.02 प्रतिशत से कम रहा। प्रत्यक्ष कर बॉयंसी 2021-22 में 2.52 प्रतिशत के साथ 17 वर्षों के उच्चतम स्तर पर था।

हालांकि, यह 2022-23 में कम होकर 0.97 प्रतिशत रह गया। इसका मतलब है कि प्रत्यक्ष कर वृद्धि दर 2022-23 में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर से थोड़ी कम रही। प्रत्यक्ष कर वृद्धि पर जीएसटी अधिकारियों और प्रत्यक्ष कर अधिकारियों के बीच आंकड़ों के विश्लेषण एवं इनसे जुड़ी जानकारियां (डेटा एनालिटिक्स) साझा करने के प्रभाव का आकलन करना फिलहाल मुश्किल होगा मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि कुछ हद तक इसका असर जरूर दिखा है।

जौहरी ने कहा कि कर विभाग ने उन करदाताओं पर नकेल कसने के लिए डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल किया है जिन्होंने नकली बिल दिखाकर छल किया है और फर्जी कंपनियां खड़ी कर रखी हैं। डेटा एनालिटिक्स से विभाग को खाताबही भी चाक-चौबंद रखने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि इससे कर भुगतान नहीं करने वाले लोगों के अजीब व्यवहार को बदलने में भी मदद मिली है।

जौहरी ने कहा कि ऐसे करदाता कुछ महीनों तक छुप जाते हैं और फिर अचानक सक्रिय हो जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम भी उनके इस खेल को समझते हैं। हमने क्रमागत रिटर्न दाखिल करने की व्यवस्था लाकर उनके लिए कर देनदारी से बचना मुश्किल बना दिया है। क्रमागत रिटर्न दाखिल करने की व्यवस्था के तहत अगर कोई करदाता किसी महीने के लिए जीएसटीआर 3बी दाखिल नहीं करता है तो अगले महीने उन्हें जीएसटीआर 1 दाखिल करने से रोक दिया जाता है।’

जौहरी ने कहा कि जब भी जीएसटी अधिकारियों को किसी बड़ी कर वंचना का पता चलता है तो इससे जुड़ी जानकारी एक विशेष व्यवस्था के तहत आयकर विभाग के साथ साझा की जाती है। जौहरी ने कहा, ‘यह स्वाभाविक है कि अगर जीएसटी भुगतान नहीं होता है तो आय कर भुगतान भी नहीं होगा और कभी-कभी कर वंचना के दूसरे मामले भी सामने आते हैं। उस स्थिति में हम आगे जांच के लिए सूचनाएं कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ साझा करते हैं। एक मानक ढांचे के तहत कर वंचना से जुड़े बड़े मामलों से जुड़ी सभी जानकारियां साझा की जाती हैं।’

एकेएम ग्लोबल में पार्टनर संदीप सहगल ने कहा कि जीएसटी प्रणाली के तहत कराधान से जुड़ी प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण और कर अधिकारियों के पास अधिक आंकड़े उपलब्ध होने से आय और व्यय का हम बारीकी से अध्ययन हम कर पा रहे हैं। जीएसटी लागू होने के बाद औपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार भी बढ़ा है जिसका नतीजा है कि कर संग्रह भी बढ़ा है।

डेलॉयट इंडिया में पार्टनर एवं लीडर, अप्रत्यक्ष कर, महेश जयसिंह ने कहा कि औपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने में जीएसटी की भूमिका अहम रही है। जयसिंह के अनुसार इससे अप्रत्यक्ष कर राजस्व में भी इजाफा हुआ है।

जीएसटी से कारोबार करने पर आने वाली लागत भी कम हुई है जिससे कंपनी कर संग्रह में भी इजाफा हुआ है। उन्होंने जीएसटी के छह साल पूरे होने पर डेलॉयट का एक सर्वेक्षण साझा किया। इस सर्वेक्षण के अनुसार उद्योग जगत के 77 प्रतिनिधियों ने माना है कि आपूर्ति व्यवस्था मजबूत होने और विभिन्न तरह के करों के प्रतिकूल प्रभाव दूर होने से वस्तु एवं सेवाओं पर लागत पहले की तुलना में कम हो गई है।

सहगल ने कहा कि जीएसटी का मकसद कर संग्रह पर असर डालने वाली खामियों को दूर करना है और इनपुट टैक्स क्रेडिट निर्बाध बनाना है। सहगल के अनुसार इससे कारोबारियों एवं कारोबारी प्रतिष्ठानों पर करों का बोझ कम हो जाता है और उनका मुनाफा भी बढ़ता है। सहगल ने कहा, ‘इस तरह कारोबारी मुनाफा बढ़ने के कारण आयकर संग्रह में इजाफा होता है।’

हालांकि, आंकड़ों के अनुसार पेट्रोलियम, रियल एस्टेट के कुछ हिस्सों, बिजली और अल्कोहल को भी जीएसटी प्रणाली के तहत लाने की जरूरत है। पेट्रोलियम को जीएसटी के तहत लाने के लिए जीएसटी कानून में संशोधन की भी जरूरत नहीं होगी क्योंकि यह संविधान संशोधन का हिस्सा है। मगर राज्य इस पर राजी नहीं हो रहे हैं। उदाहरण के लिए राज्यों के कर राजस्व (ओटीआर) में जीएसीटी से प्राप्त राजस्व की हिस्सेदारी कमोबेश जीएसटी लागू होने के पूर्व के स्तरों पर ही है।

First Published - July 2, 2023 | 11:51 PM IST

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