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कांग्रेस के घोषणापत्र पर वित्त मंत्री सीतारमण ने उठाया सवाल, पूछा क्या बड़े-बड़े वादों की लागत पर विचार किया

सीतारमण ने कहा कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने वैश्विक महामारी के बाद आर्थिक वृद्धि को बनाए रखते हुए राजकोषीय मजबूती के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया।

Last Updated- May 14, 2024 | 8:40 AM IST
Union Minister Nirmala Sitharaman

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में किए गए लोक लुभावन वादों की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या पार्टी नई योजनाओं के लिए रकम जुटाने के वास्ते बड़े पैमाने पर उधार लेगी और कर बढ़ाएगी।

सीतारमण ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, ‘क्या कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में किए गए बड़े-बड़े वादों की लागत पर विचार किया है? क्या उन्होंने गणना की है कि ‘खटा-खट’ योजनाओं की वित्तीय लागत कितनी होगी? क्या वे उनके लिए बड़े पैमाने पर उधार लेंगे या वे इसके लिए कोष देने के लिए कर बढ़ाएंगे? आखिर राहुल गांधी ‘खटा-खट’ योजनाओं की वित्तीय लागत को पूरा करने के लिए कितनी कल्याणकारी योजनाएं बंद करेंगे?’

कांग्रेस पार्टी ने पिछले महीने जारी किए अपने चुनावी घोषणापत्र में सरकारी नौकरियों में 30 लाख खाली पदों को भरने, गरीबों के लिए शहरी रोजगार योजना शुरू करने और गरीब परिवार की महिलाओं को सालाना 1 लाख रुपये देने का वादा किया है। प्रस्तावित ऐप्रेंटिसशिप अधिकार योजना के तहत पार्टी ने 25 साल से कम उम्र के बेरोजगार युवाओं को हर साल एक लाख रुपये मानदेय देने का भी वादा किया है।

सीतारमण ने पूछा, ‘क्या राहुल गांधी इन सवालों का जवाब देना चाहेंगे और बताएंगे कि उनकी राजकोष के मोर्चे अधिक खर्चे वाली योजनाएं बिना कर बढ़ाये या भारी उधार लिए और अर्थव्यवस्था को गिराये बिना कैसे काम करेंगी?’

वित्त मंत्री ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का राजकोषीय प्रबंधन पहले की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की तुलना में काफी बेहतर है। यह स्थिति तब है जब वैश्विक महामारी कोविड-19 का सामना करने के लिए राहत प्रयासों को लेकर काफी संसाधन का उपयोग किया गया था।

उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2003-04 से वित्त वर्ष 2013-14 तक संप्रग शासन के दौरान मौजूदा मूल्य पर बाह्य कर्ज (विदेशों से ऋण) सहित केंद्र सरकार का कुल ऋण लगभग 3.2 गुना बढ़ गया। यह मार्च 2004 में 18.74 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर मार्च 2014 में 58.59 लाख करोड़ रुपये हो गया। उन्होंने कहा कि वहीं वित्त वर्ष 2023-24 में यह बढ़कर 172.37 लाख करोड़ रुपये (संशोधित अनुमान) हो गया। यानी इसमें 2.9 गुना वृद्धि हुई जो संप्रग शासन के दौरान हुई वृद्धि से कम है।

सीतारमण ने कहा कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने वैश्विक महामारी के बाद आर्थिक वृद्धि को बनाए रखते हुए राजकोषीय मजबूती के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। इस रणनीति ने 2020-21 में राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद की जो 2023-24 में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 5.8 प्रतिशत रहा।

अंतरिम बजट में वित्त वर्ष 2024-25 में इसके घटकर 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। उन्होंने कहा, ‘इसी तरह, केंद्र सरकार का कर्ज-जीडीपी अनुपात 2020-21 में 61.4 प्रतिशत था। जो 2023-24 में घटकर 57.1 प्रतिशत हो गया।’

वित्त मंत्री ने कहा कि संप्रग सरकार के समय लगातार छह वर्षों तक यानी वित्त वर्ष 2009 से वित्त वर्ष 2014 तक भारत का सकल राजकोषीय घाटा जीडीपी का कम से कम 4.5 फीसदी था। छह में से तीन वर्षों तक यह जीडीपी का 4.5 से 5 फीसदी, एक में 5 से 6 फीसदी के बीच और दो वर्षों तक यह 6 फीसदी से अधिक था।

उन्होंने कहा, ‘और उस वक्त वैश्विक महामारी कोविड-19 जैसी कोई त्रासदी भी नहीं थी, जिसके लिए बड़ी मात्रा में राजकोषीय विस्तार की जरूरत होती। यह संप्रग सरकार के खराब राजकोषीय प्रबंधन को दर्शाता है।’

राजकोषीय प्रबंधन (विशेषकर कर्ज को लेकर) के बारे में हाल के दिनों में बहुत कुछ कहा गया है। उन्होंने कहा, ‘कई बार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि पर विचार किए बिना निरपेक्ष या पूर्ण आंकड़ों की तुलना की गई है। जबकि हम जीडीपी के आधार पर कर्ज की गणना करते हैं। मैं कांग्रेस के उलट एक स्पष्ट तस्वीर सामने रखना चाहूंगी। कांग्रेस ऊंचे-ऊंचे वादों के पीछे चीजों को छिपाती है जो कतई पारदर्शी नहीं हैं और वास्तविकता से कोसों दूर है।

सीतारमण ने कहा कि यह हमारी सरकार के मजबूत वित्तीय प्रबंधन को बताता है। वित्त मंत्री ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के तहत वास्तविक घाटा बजटीय घाटे से कहीं अधिक था।

उन्होंने कहा संप्रग सरकार ने आधिकारिक घाटे के आंकड़ों को कम रखने के लिए पेट्रोलियम विपणन कंपनियों (तेल बॉन्ड), उर्वरक कंपनियों और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को नकद सब्सिडी के बदले विशेष बॉन्ड जारी किए। उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2005-06 से वित्त वर्ष 2009-10 तक पांच साल में 1.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रकम बही-खातों से दूर रखी गई। इस रकम को को शामिल करने से राजकोषीय और राजस्व घाटा आंकड़ा कहीं अधिक होता।’

First Published - May 13, 2024 | 10:27 PM IST

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