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Investment Strategy: बाजार में लगातार तेजी पर खतरा, रिटर्न की उम्मीद कम रखें: विश्लेषक

विश्लेषकों का कहना है कि बाजार में तेजी पर कई जोखिम हैं, निवेशकों को रिटर्न की उम्मीदें घटानी चाहिए और सुधार के समय निवेश बढ़ाने की सलाह दी गई है।

Last Updated- December 01, 2024 | 9:24 AM IST
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भारतीय शेयर बाजार की तेजी पर अब सवालिया निशान लग रहे हैं। आर्थिक सुस्ती, रुपये की कमजोरी और विदेशी निवेशकों की बेरुखी के बीच बाजार का आगे बढ़ना मुश्किल नजर आ रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा हालात बाजार की चमक फीकी कर सकते हैं और निवेशकों की उम्मीदों पर पानी फेर सकते हैं।

घरेलू अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

जुलाई-सितंबर 2024 (Q2) तिमाही के लिए भारत की GDP वृद्धि दर 5.4% रही, जो पिछले सात तिमाहियों का सबसे निचला स्तर है। यह Q1-FY25 में 6.7% थी और बाजार की उम्मीदों (6.5%) से भी काफी कम रही। धीमी अर्थव्यवस्था, स्थिर महंगाई दर, रुपये की कमजोरी, घटता उपभोग और हाई ब्याज दरें घरेलू बाजार पर दबाव बना रही हैं।

छोटे और मझोले शेयरों की ऊंची वैल्यूएशन

Equinomics Research के संस्थापक और रिसर्च हेड जी चोक्कलिंगम का कहना है कि भले ही सेंसेक्स और निफ्टी का प्राइस-टू-अर्निंग (PE) अनुपात 22x तक आकर आकर्षक हो गया हो, लेकिन छोटे और मझोले शेयर (SMID) इंडेक्स की वैल्यूएशन अभी भी ऊंची बनी हुई है।

विदेशी निवेशकों की धारणा नकारात्मक

चोक्कलिंगम ने कहा कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) जल्द ही भारतीय बाजार में खरीदार बनेंगे, यह कहना मुश्किल है। रुपये की कमजोरी, वैश्विक नकारात्मक संकेत (युद्ध की स्थिति) और अमेरिकी डॉलर की मजबूती के चलते FPI निकासी जारी रख सकते हैं।

वैश्विक स्तर पर भी अनिश्चितता

विश्लेषकों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिका की आर्थिक नीतियों को लेकर अनिश्चितता के चलते बाजार में अस्थिरता बनी रह सकती है। राष्ट्रपति-चुने गए डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर भी निवेशकों में चिंता है। इन सभी वजहों से भारतीय शेयर बाजार में शॉर्ट और मध्यम अवधि में दबाव बना रह सकता है।

ट्रंप प्रशासन से व्यापार पर बढ़ा दबाव

हालांकि भारत, एशिया की अन्य खुली अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में टैरिफ के जोखिम से कम प्रभावित हो सकता है, लेकिन UBS के विश्लेषकों ने आगाह किया है कि भारत पूरी तरह अछूता नहीं रहेगा। उनका अनुमान है कि ट्रंप प्रशासन H2-2025 से चीन से आयात पर चरणबद्ध तरीके से अतिरिक्त टैरिफ लगा सकता है।

UBS की मुख्य भारत अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन का कहना है कि अगर अमेरिका शेष दुनिया पर 10% आयात शुल्क लगाता है, तो इसका असर FY27 तक भारत की आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक रहेगा। साथ ही, अमेरिकी डॉलर की मजबूती और व्यापार तनाव के कारण रुपये की कमजोरी जारी रह सकती है, और FY26 तक रुपया 87 के स्तर तक पहुंच सकता है।

शेयर बाजार पर असर

Valentis Advisors के संस्थापक ज्योतिवर्धन जयपुरिया के अनुसार, हालिया सुधार के बाद बाजार का मूल्यांकन बेहतर हुआ है और यह उचित स्तर की ओर बढ़ रहा है। हालांकि Q2-FY25 के नतीजे निराशाजनक रहे, लेकिन वे 2025 में सरकारी खर्च और ग्रामीण आय में सुधार के जरिए रिकवरी की उम्मीद करते हैं।

जयपुरिया ने कहा, “बाजार पर जोखिम ट्रंप प्रशासन द्वारा संभावित टैरिफ लगाने से है। हमें अगले छह महीनों में बाजार सीमित दायरे में रहने की संभावना है। निवेशकों को अपने रिटर्न की उम्मीदें कम रखनी चाहिए और सुधार का उपयोग इक्विटी में निवेश बढ़ाने के लिए करना चाहिए।”

तकनीकी आउटलुक

Swastika Investmart के रिसर्च हेड संतोष मीना के अनुसार, निफ्टी फिलहाल अपने 20-दिवसीय और 200-दिवसीय मूविंग एवरेज के ऊपर बना हुआ है। लेकिन इसे 24,350-24,415 के रजिस्टेंस क्षेत्र का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा, “अगर यह स्तर पार होता है, तो निफ्टी 24,625-24,770 तक जा सकता है। वहीं, नीचे की ओर 23,850 पहला समर्थन स्तर है, इसके बाद 23,650-23,500 का प्रमुख समर्थन क्षेत्र है।”

विदेशी निवेशकों की भूमिका

डेरिवेटिव डेटा के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने दिसंबर सीरीज की शुरुआत 67% शॉर्ट पोजीशन के साथ की है। यह दर्शाता है कि बाजार में अस्थिरता अभी बनी रह सकती है। निवेशकों को निकट भविष्य में सतर्क रहने और निवेश के लिए सुधार का लाभ उठाने की सलाह दी जा रही है।

First Published - December 1, 2024 | 9:24 AM IST

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