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बिहार चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग की मतदाता जांच से मचा घमासान, विपक्ष ने लगाया पक्षपात का आरोप

निर्वाचन आयोग ने बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची की जांच के लिए अभियान चलाया, जिसे विपक्षी दलों ने भेदभावपूर्ण बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

Last Updated- July 07, 2025 | 11:17 PM IST
Bihar Electoral Roll revision
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

बिहार विधान सभा चुनावों से पहले निर्वाचन आयोग मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चला रहा है, जिसकी विपक्षी दल काफी आलोचना कर रहे हैं। मगर आयोग ने रविवार को कहा कि अभियान का पहला चरण पूरा कर लिया गया है।

पिछले महीने 24 जून को निर्वाचन आयोग ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश जारी किया था, जिसका मकसद मतदाता सूची से अपात्र लोगों के नाम हटाना और यह सुनिश्चित करना था कि केवल पात्र मतदाता ही इसमें शामिल हों। आयोग का तर्क था कि लोगों के शहर में जा बसने, पलायन करने, नए मतदाताओं के आने और मतदाता सूची में विदेशी अवैध घुसपैठियों के नाम आ जाने के कारण ऐसा किया जा रहा है। उसने कहा कि इस अभियान से मतदाता सूची का सत्यापन किया जाएगा और इससे निष्पक्ष चुनाव कराए जाएंगे।

उसके बाद से राजनेता, कार्यकर्ता और नागरिकों के एक संगठन ने आयोग के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटा दिया। याचिका दायर करने वालों में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं।

मोइत्रा ने रविवार को आरोप लगाया कि विशेष गहन पुनरीक्षण का मकसद 1 जुलाई, 1987 से 2 दिसंबर, 2004 के बीच जन्मे लाखों मतदाताओं को चुनाव से वंचित करना है। उनका आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मदद के लिए ऐसा किया जा रहा है। कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने भी निर्वाचन आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा है कि इस अभियान से हाशिये पर रहने वाले लाखों मतदाता खासकर दलित मतदान नहीं कर पाएंगे। उन्होंने इसके लिए आयोग के पास अपनी शिकायत भी दर्ज कराई है।

निर्वाचन आयोग ने अपने बयान में कहा है कि मतदाता सूची के सत्यापन के दौरान संविधान और कानून के प्रावधानों का पूरी तरह पालन किया जाएगा। आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 में निहित सभी प्रावधानों के पालन की बात भी कही है। आयोग का कहना है कि इससे पहले 2003 में बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चलाया गया था।

आयोग ने बताया है कि करीब एक लाख बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) और राजनीतिक दलों के 1,54,977 एजेंट इस काम में लगे हैं। वे बिहार के 7.96 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं को गणना फॉर्म बांट रहे हैं। इनमें से 4.96 करोड़ नाम 1 जनवरी, 2003 को हुए आखिरी गहन पुनरीक्षण में भी थे। गणना फॉर्म के जरिये उनका भी सत्यापन किया जाएगा।

आयोग का कहना है कि 25 जुलाई तक जिन मतदाताओं का गणना फॉर्म नहीं मिलेगा उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। नाम हटाए जाने को चुनौती 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच दी जा सकती है। निर्वाचन आयोग ने अभी तक उन मतदाताओं की स्पष्ट संख्या नहीं बताई है जिन्हें नागरिकता का प्रमाण देना होगा, लेकिन साल 2003 से अब तक बिहार में करीब 3 करोड़ मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में जुड़े हैं। आयोग ने इस कवायद के लिए 11 खास दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें से कोई एक जमा करना होगा मगर आधार कार्ड और राशन कार्ड इनमें शामिल नहीं है। फिलहाल सत्यापन के लिए बीएलओ घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर रहे हैं।

चुनावे के तौर-तरीकों का अध्ययन करने वाले नागरिक समूह एडीआर ने अपनी याचिका में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। एडीआर का तर्क है कि इससे मतदाताओं की सूची में नाम होने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं बल्कि खुद नागरिक की हो जाएगी। एडीआर का कहना है कि निर्वाचन आयोग द्वारा आधार या राशन कार्ड जैसे पहचान दस्तावेज नहीं लिए गए तो हाशिये पर रहने वालों का नाम सूची से बाहर होने का खतरा है।

एडीआर ने कहा कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधान सभा चुनावों से ठीक पहले मतदाता सूची के सत्यापन के लिए विशेष पुनरीक्षण अभियान चलाना एकदम बेतुका है। उसने याचिका में कहा है, ‘लाखों लोगों के नाम 2003 में हुए पुनरीक्षण में शामिल नहीं हो पाए थे और उनके पास विशेष गहन पुनरीक्षण में मागे गए जरूरी दस्तावेज भी नहीं हैं। ऐसे लोग भी हैं, जो तय समय के भीतर ये दस्तावेज नहीं ला सकते।’

याचिका में तर्क दिया गया है कि बिहार बेहद गरीब राज्य है और सबसे ज्यादा लोग यहीं से पलायन करते हैं। ऐसे में कई लोगों के पास उनका जन्म प्रमाणपत्र नहीं होगा। एडीआर के मुताबिक 29 अक्टूबर, 2024 से 6 जनवरी, 2025 के बीच विशेष सारांश संशोधन किया जा चुका है। उसमें पलायन, मृत्यु एवं अन्य कारणों से मतदाताओं की अपात्रता से जुड़े सभी मुद्दे निपटाए जा चुके हैं। इसलिए चुनावी राज्य में इतने कम समय में ऐसा अभियान चलाने की कोई जरूरत नहीं है, जिससे लाखों मतदाताओं का मताधिकार छिन जाए।

रविवार को निर्वाचन आयोग ने कहा कि आम लोगों एवं राजनीतिक दलों की मदद से यह अभियान सुचारु रूप से चल रहा है और अब तक करीब सभी गणना फॉर्म बांट दिए गए हैं, जिनमें से करीब 21 फीसदी फॉर्म उसके पास वापस आ भी गए हैं।

First Published - July 7, 2025 | 10:38 PM IST

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