facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

Maharashtra: बहुमत के लिए बुलाना अनुचित था मगर पूर्व ​स्थिति बहाल नहीं हो सकती – SC

Last Updated- May 12, 2023 | 9:22 AM IST
Supreme Court

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के कुछ प्रमुख फैसले अवैध थे जिनके चलते पिछले साल जून में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन की सरकार बनाने के लिए एकनाथ शिंदे का रास्ता तैयार हुआ था। हालांकि शिंदे फिलहाल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पद पर बने रहेंगे क्योंकि अदालत ने उन्हें और 15 अन्य बागी शिवसेना विधायकों को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने का फैसला सदन के अध्यक्ष पर छोड़ दिया है।

हालांकि अदालत ने विधायकों को अयोग्य करार देने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार से जुड़े पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ के 2016 के नबाम रेबिया फैसले का हवाला देते हुए इस मामले को सात न्यायाधीशों की बड़े पीठ को भी भेज दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले पांच-न्यायाधीशों के संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा कि वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली तत्कालीन महाविकास आघाडी (एमवीए) सरकार को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि उन्होंने पिछले साल जून में शक्ति परीक्षण का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया था। इस फैसले के साथ महाराष्ट्र सरकार पर मंडरा रहा खतरा टल गया है और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे।

शीर्ष अदालत ने व्हिप के सवाल पर भी विचार किया और कहा कि विधायक दल नहीं बल्कि राजनीतिक दल सदन में अपना व्हिप और नेता नियुक्त करता है।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘मैंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था। एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस में नैतिकता है तो वह भी मेरी तरह इस्तीफा दें।’

अदालत ने महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भी खिंचाई की और कहा कि उनके पास इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए ऐसी सामग्री नहीं थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया था। शिवसेना में शिंदे गुट की बगावत के बाद तीन दलों वाली एमवीए सरकार के गिरने के कारण राजनीतिक संकट से संबंधित याचिकाओं पर सर्वसम्मति से फैसले में पांच-न्यायाधीशों के संविधान पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा में शिंदे गुट के भरत गोगावले को शिवसेना के व्हिप के रूप में नियुक्त करने का तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय ‘कानून के विपरीत’ था। पीठ ने कहा, ‘सदन में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल का ठाकरे को बुलाना उचित नहीं था क्योंकि उनके पास मौजूद सामग्री से इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई कारण नहीं था कि ठाकरे सदन में बहुमत खो चुके हैं।’ पीठ ने कहा, ‘हालांकि पूर्व स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया था।’

पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘राज्यपाल के पास ऐसी कोई सामग्री नहीं थी जिसके आधार पर वह सरकार के भरोसे पर संदेह करते। जिस प्रस्ताव पर राज्यपाल ने भरोसा जताया, उसमें ऐसा कोई संकेत नहीं था कि विधायक एमवीए सरकार से बाहर निकलना चाहते हैं। कुछ विधायकों की ओर से असंतोष व्यक्त करने वाला पत्र राज्यपाल द्वारा शक्ति परीक्षण के आह्वान के लिए पर्याप्त नहीं है।’

पीठ ने कहा कि राज्यपाल को अपने सामने मौजूद पत्र (या किसी अन्य सामग्री) पर अपनी समझदारी दिखानी चाहिए थी ताकि यह आकलन किया जा सके कि सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है या नहीं। अदालत ने कहा, ‘हम राय शब्द का इस्तेमाल वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर संतुष्टि के लिए करते हैं कि क्या उनके पास प्रासंगिक सामग्री है, और इसका मतलब राज्यपाल की व्यक्तिपरक संतुष्टि से नहीं है। एक बार जब कोई सरकार कानून के अनुसार लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित होती है, तो यह माना जाता है कि उसे सदन का विश्वास प्राप्त है। इस धारणा को खत्म करने के लिए कुछ वस्तुनिष्ठ सामग्री मौजूद होनी चाहिए।’

First Published - May 12, 2023 | 9:08 AM IST

संबंधित पोस्ट