facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

पांच वर्षों में पिछड़े समुदायों से मात्र 15 % न्यायाधीश नियुक्त किये गए: संसदीय समिति

Last Updated- January 01, 2023 | 4:48 PM IST
Supreme Court

न्याय विभाग ने एक संसदीय समिति को बताया है कि पिछले पांच वर्षों में उच्च न्यायालयों में नियुक्त न्यायाधीशों में से 15 प्रतिशत से थोड़ा अधिक पिछड़े समुदायों से थे। विभाग ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका की प्रधानता के तीन दशकों के बाद भी यह समावेशी और सामाजिक रूप से विविध नहीं बन पाया है। विभाग ने साथ ही कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रस्तावों की शुरुआत कॉलेजियम द्वारा की जाती है, इसलिए अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अल्पसंख्यक और महिलाओं के बीच से उपयुक्त उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करके सामाजिक विविधता के मुद्दे को हल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी उसकी बनती है।

विभाग ने कहा कि वर्तमान प्रणाली में, सरकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त कर सकती है, जिनकी शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा सिफारिश की जाती है। न्याय विभाग ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की अध्यक्षता वाले कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय पर संसद की स्थायी समिति के समक्ष एक विस्तृत प्रस्तुति दी।

विभाग ने इसमें कहा, ‘न्यायपालिका को संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रमुख भूमिका निभाते लगभग 30 साल हो गए हैं। हालांकि, सामाजिक विविधता की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए उच्च न्यायपालिका को समावेशी एवं प्रतिनिधिक बनाने की आकांक्षा अभी तक हासिल नहीं हुई है।’ विभाग ने कहा कि सरकार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध करती रही है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर ‘उचित विचार’ किया जाए ताकि ‘उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में ‘सामाजिक विविधता सुनिश्चित की जा सके।’

न्याय विभाग द्वारा साझा किए गए विवरण के अनुसार, 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक, उच्च न्यायालयों में कुल 537 न्यायाधीश नियुक्त किए गए, जिनमें से 1.3 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 2.8 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 11 प्रतिशत ओबीसी वर्ग और 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदायों से थे। विभाग ने कहा कि इस अवधि के दौरान 20 नियुक्तियों के लिए सामाजिक पृष्ठभूमि पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं।

प्रस्तुति के दौरान, विभाग ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के बारे में भी बात की और कहा कि इसने दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को इसके सदस्यों के रूप में प्रस्तावित किया, जिनमें एक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय या अल्पसंख्यकों या एक महिला से नामित किया जाएगा। हालांकि, उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने एनजेएसी को ‘असंवैधानिक और अमान्य’ घोषित कर दिया।

First Published - January 1, 2023 | 4:48 PM IST

संबंधित पोस्ट