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Editorial: एक अन्य व्यापारिक बाधा

सरकार ने आर्थिक खुलेपन को लेकर उच्चस्तरीय निर्णय लिया है और यह भारत के विनिर्माण और व्यापार के लिए अच्छा है।

Last Updated- March 07, 2025 | 10:17 PM IST
Trade

भारत या दुनिया भर में व्यापार के बारे में होने वाली चर्चा टैरिफ यानी शुल्कों पर ही केंद्रित रहती है। भारत ने लगातार टैरिफ में इजाफा करने के बाद हाल के महीनों में और केंद्रीय बजट में भी यह संकेत दिया है कि आयात शुल्क में कमी की जाएगी। इस नीतिगत बदलाव के बारे में कहा जा रहा है कि इससे भारत में मूल्यवर्धन होगा और भारतीय उत्पादकों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनने में मदद मिलेगी। बहरहाल आर्थिक खुलापन और एकीकरण अकेले टैरिफ का काम नहीं है। नियमन, प्रतिबंध और कोटा भी इसमें भूमिका निभाते हैं। आमतौर पर इन्हें व्यापार के ‘गैर टैरिफ अवरोध’ कहा जाता है। भारत के नीति निर्माताओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि गैर टैरिफ अवरोधों को लेकर उनका रुख, टैरिफ में कमी से होने वाले लाभों के विरोधाभासी है।

हाल के वर्षों में भारत के अफसरशाहों ने एक नई तरह का गैर टैरिफ अवरोध लागू किया है। यह संरक्षणवादी और राज्य से संबंधित उपाय तथाकथित ‘गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों’ या क्यूसीओ की आड़ में छिपा हुआ है। जैसा कि अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन तथा अन्य ने कहा है, क्यूसीओ का अधिक इस्तेमाल भारत के व्यापार और उसकी प्रतिस्पर्धी क्षमता को बहुत अधिक प्रभावित कर रहा है। हालांकि सांकेतिक तौर पर इसका तात्पर्य यह है कि भारतीय बाजार में उपलब्ध वस्तुएं स्थानीय मानकों को पूरा करें लेकिन हकीकत यह है कि इन ऑर्डर का इस्तेमाल आयात शिप​मेंट को जानबूझकर देर से मंगाने या दूसरी जगह भेजने जैसे कामों के लिए किया जाता है। ऐसे तकरीबन 800 आदेश पहले ही जारी किए जा चुके हैं। इनके दायरे में स्टील से लेकर चमड़ा तक तमाम क्षेत्र आते हैं और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक आने वाले महीनों में तीन गुना क्यूसीओ जारी किए जा सकते हैं।

इससे कारोबारियों और व्यापारियों के लिए जीवन मुश्किल होगा। कुछ मौकों पर यह स्पष्ट नहीं होता है कि क्यूसीओ में किन उत्पादों को संदर्भित किया जा रहा है। दूसरे मौकों पर ऑर्डर पूरी तरह नए वर्गीकरण को शामिल करते हैं। उदाहरण के लिए विशिष्ट स्टील के प्रकार। उत्पादक अथवा आयातक अक्सर निश्चित नहीं होते कि उनकी शिपमेंट आएगी और समय पर स्वीकृति पा सकेगी। इससे शेड्यूल और लागत पर असर पड़ता है और निर्यातक अनुबंध के अपने दायित्वों को अक्सर निभा नहीं पाते।

क्यूसीओ के पीछे वजह है चीन से आने वाली खराब गुणवत्ता वाली वस्तुओं को रोकना जिनके बारे में लोगों को चिंता है कि वे भारतीय बाजारों में हावी हैं। परंतु ऐसे ऑर्डर अक्सर बताते हैं कि ऐसे नियंत्रणों से रोकथाम नहीं हो सकी है और ये असली समस्या से अधिक दिक्कतदेह साबित हुए हैं। अफसरशाही प्रोत्साहन लाइसेंस-परमिट राज की अतियों के दौर से ही अपरिवर्तित हैं। अधिक नियंत्रण और अधिक विवेकाधिकार का अर्थ है अधिक शक्ति और अधिक लॉबीइंग। ऐसे व्यवहार के तमाम नकारात्मक परिणाम भी होते हैं।

अधिकतम क्षमता के लिए यह आवश्यक है कि नीति निर्माण में ऐसे विवेकाधिकारों का त्याग किया जाए। निश्चित तौर पर अधिकारियों को मनमाने ढंग से उत्पाद श्रेणियां बनाने या पहचानने तथा फिर उन लागू होने वाले नियम बनाने का अधिकार नहीं होना चाहिए। कोई बाजार अर्थव्यवस्था ऐसे हालात में प्रभावी नहीं हो सकती। इसका निवेश पर भी बुरा असर होता है। लंबी और विभाजित आपूर्ति श्रृंखला वाली कंपनियां भारत में अपना प्रतिष्ठान स्थापित करने और रोजगार तैयार करने से हिचकिचाती हैं क्योंकि उन्हें यह अंदाजा नहीं होता है कि उन्हें क्या वास्तविक कीमत चुकानी होगी। श्रम गहन क्षेत्रों मसलन रेडीमेड वस्त्रों आदि के क्षेत्र में भारतीय निर्यातकों का प्रदर्शन कमजोर है। क्यूसीओ ने इन्हें अधिक प्रभावित किया है।

सरकार ने आर्थिक खुलेपन को लेकर उच्चस्तरीय निर्णय लिया है और यह भारत के विनिर्माण और व्यापार के लिए अच्छा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है और चोरी छिपे अपनाया जा रहा संरक्षणवाद समग्र नीतिगत लक्ष्य के साथ विरोधाभासी है। क्यूसीओ की समस्या से निपटने के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

First Published - March 7, 2025 | 10:09 PM IST

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