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Editorial: बेपटरी वित्तीय व्यवस्था

रेलवे को वित्त मंत्रालय से आंशिक सहायता की जरूरत है ताकि वह अपनी पेंशन संबंधी जरूरतों को पूरा कर सके।

Last Updated- August 17, 2023 | 11:02 PM IST
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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को रेल मंत्रालय के 32,512 करोड़ रुपये के प्रस्तावों को मंजूरी प्रदान की जो देश के विभिन्न हिस्सों में रेल नेटवर्क का विस्तार करने से संबंधित थे। मंजूर किए गए धन का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा में किया जाएगा। क्षमता बढ़ाने में किया जाने वाला निवेश हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे समग्र आर्थिक क्षमता सुधारने में मदद मिलेगी।

परंतु केंद्रीय बजट के जरिये क्षमता निर्माण में उच्च निवेश की बदौलत रेलवे की वित्तीय स्थिति पर से ध्यान नहीं हटना चाहिए। वह केवल अपनी क्षमताओं के मुताबिक ही प्रदर्शन कर पाएगा और क्षमता निर्माण तथा आधुनिकीकरण में जरूरी निवेश करेगा, बशर्ते कि उसकी वित्तीय स्थिति का समुचित प्रबंधन किया जाए। इस बारे में हाल ही में आई दो रिपोर्ट उन कमियों को उजागर करती हैं जो रेलवे के संचालन में नजर आती हैं।

रेलवे पर स्थायी समिति की एक हालिया रिपोर्ट में यह बात दोहराई गई है कि रेलवे को वित्त मंत्रालय से आंशिक सहायता की जरूरत है ताकि वह अपनी पेंशन संबंधी जरूरतों को पूरा कर सके। रेलवे ने चालू वर्ष में जहां पर्याप्त इंतजाम किए हैं वहीं 2020-21 में उसे 79,398 करोड़ रुपये का ऋण लेना पड़ा था जिसे पेंशन फंड में इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा महामारी के विस्तारित प्रभाव ने राजस्व को प्रभावित किया और सरकार ने रेलवे को यह अनुमति दी कि वह 2021-22 की राजस्व प्राप्तियों से परे राजस्व व्यय कर सके।

उक्त प्राप्तियों का इस्तेमाल पेंशन व्यय की भरपाई के लिए किया गया था। इन प्रावधानों को कवर करने से रेलवे का कामकाज स्वाभाविक तौर पर प्रभावित होगा। बहरहाल, बड़ा मुद्दा एक या दो साल का घाटा नहीं है क्योंकि ऐसा असाधारण परिस्थितियों में हुआ, लेकिन असल मुद्दा दीर्घकालिक स्थायित्व का है। पेंशन देनदारी में इजाफा जारी रहेगा और यह रेलवे के लिए एक चुनौती बना रहेगा। अनुमान है कि 2011-12 के 17,000 करोड़ रुपये से बढ़कर यह 2023-24 तक 60,000 करोड़ रुपये हो जाएगा।

बढ़ती देनदारी आने वाले वर्षों में और परेशान करेगी। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए कि पर्याप्त राजस्व नहीं एकत्रित हो पा रहा है। इस संदर्भ में स्थायी समिति का कहना है: ‘आंतरिक संसाधनों में निरंतर गिरावट इस बात का संकेत है कि भारतीय रेल के समग्र नियोजन और प्रबंधन में अंदरूनी तौर पर कमियां हैं।’ रेलवे का परिचालन अनुपात 2021-22 के 107.39 से मामूली रूप से सुधरकर 2022-23 में 98.10 हुआ।

रेलवे के पर्याप्त राजस्व नहीं जुटा पाने की एक वजह उसके परिचालन का तरीका है। उदाहरण के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी की 2021-22 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि माल ढुलाई से होने वाले मुनाफे का इस्तेमाल यात्रियों को सब्सिडी देने में किया गया लेकिन इसके बावजूद 32,000 करोड़ रुपये की कमी रह गई। वर्ष के दौरान जहां यात्रियों तथा अन्य कोच सेवाओं पर होने वाले नुकसान में कमी आई, फिर भी यह 68,269 करोड़ रुपये के उच्च स्तर पर रहा।

सीएजी की अनुशंसा है कि यात्री परिचालन का आलोचनात्मक आकलन करने की आवश्यकता है ताकि नुकसान कम करने की दिशा में जरूरी कदम उठाए जा सकें। संसाधनों की अपर्यापत उपलब्धता परिचालन सुरक्षा को जोखिम में डाल सकती है। जैसा कि सीएजी ने कहा मूल्य में कमी के लिए आरक्षित फंड में कुछ वर्षों के दौरान कमी आई है जो पुरानी पड़ रही परिसंपत्तियों को बदलने के काम को मुश्किल बना सकती है।

बहरहाल, रेलवे की वित्तीय स्थिति पूरी तरह उसकी देन नहीं है। उदाहरण के लिए राजस्व के मोर्चे पर बात करें तो यात्री किराये पर उसका पूरा नियंत्रण नहीं हैं और व्यय के क्षेत्र में वेतन तथा पेंशन पर भी। परिचालन क्षमता में जहां सुधार की जरूरत है, वहीं सरकार को भी यह निर्णय लेना होगा कि वह रेलवे को कैसे चलाना चाहती है। केंद्रीय बजट पर बढ़ती निर्भरता शायद आगे जाने का अच्छा तरीका नहीं है।

First Published - August 17, 2023 | 11:02 PM IST

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