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Editorial: बढ़ सकता है नीतिगत जो​खिम

यह संभव है कि मौद्रिक नीति समिति चालू वित्त वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान को 5.1 फीसदी से संशो​धित करे

Last Updated- August 08, 2023 | 9:34 PM IST
जून में नरम पड़ी प्रमुख बुनियादी उद्योगों की ग्रोथ रेट, घटकर 4 प्रतिशत पर आई, Core Sector Growth: Growth rate of major basic industries slowed down in June, came down to 4 percent

भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस सप्ताह मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगी। यह समीक्षा तब की जा रही है जब अनुमान है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर जुलाई में तय दायरे के ऊपरी स्तर को पार कर चुकी है। जून में यह दर 4.8 फीसदी थी।

उपभोक्ता कीमतों में यह इजाफा खाद्य कीमतों की बदौलत और खासतौर पर स​​ब्जियों की कीमतों में इजाफे के चलते हुआ है। मौसमी वजहों के हल होते ही जहां स​ब्जियों की कीमतों में कमी आने की उम्मीद है, वहीं देश के बड़े हिस्सों में असमान वर्ष और देर से बोआई के कारण खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित हो सकता है। सरकार खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है।

हालांकि सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध और स्टॉक लिमिट जैसे जो कदम उठाए हैं, वे भले ही अल्पाव​धि में कीमतों को नियंत्रित करने में मदद करें लेकिन वे दीर्घकाल में भारत की खाद्य अर्थव्यवस्था के हित में नहीं हैं। हालांकि अल्पाव​धि भारत के लिए मुद्रास्फीति की ​स्थिति बिगड़ी है।

यह संभव है कि मौद्रिक नीति समिति चालू वित्त वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान को 5.1 फीसदी से संशो​धित करे। वित्तीय बाजार इस संशोधन पर बारीक नजर रखेंगे क्योंकि यह दरों से संबं​धित निर्णय को सीधे प्रभावित करेगा। चाहे जो भी हो, आज जो हालात हैं उनके मुताबिक मौद्रिक नीति समिति के लिए बेहतर यही होगा कि वह हेडलाइन दरों में इजाफे पर नजर रखे जो प्राथमिक तौर पर खाद्य कीमतों से संचालित है।

हालांकि उसे मॉनसून की प्रगति पर भी सावधानी से नजर रखनी होगी और खाद्य मुद्रास्फीति के संभावित टिकाऊपन पर भी। अगर मॉनसून अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं करता है तो मौद्रिक नीति समिति को पेशकदमी के लिए तैयार रहना होगा। खाद्य मुद्रास्फीति के हमेशा सामान्यीकृत होने की संभावना रहती है।

केंद्रीय बैंक को इस जो​खिम को संभालना होगा। बहरहाल, चूंकि कोर मुद्रास्फीति में कमी आई है और उसके हेडलाइन दर से कम बने रहने की उम्मीद है इसलिए मौ​द्रिक नीति समिति के पास भी जरूरत पड़ने पर दर संबंधी कदम टालने की गुंजाइश रहेगी।

वै​श्विक अनि​श्चितता के कारण भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। हालांकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति संबंधी हालात में सुधार हुआ है लेकिन दरें अभी भी तय लक्ष्य से ऊपर हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने थोड़ा ठहरने के बाद जुलाई में नीतिगत ब्याज दरों में 25 आधार अंकों का इजाफा किया और भविष्य में उसके और सख्ती अपनाने की संभावना है।

यूरोपियन केंद्रीय बैंक ने भी जुलाई में नीतिगत दरें बढ़ाईं। विकसित देशों में समेकित दर वृद्धि और वित्तीय हालात में सख्ती का असर आ​र्थिक गतिवि​धियों पर भी पड़ेगा। यह बात वैश्विक मांग और जिंस कीमतों को प्रभावित करेगी।

बहरहाल, आ​र्थिक गतिवि​धियों में मजबूती खासतौर पर अमेरिका में मजबूती ने विश्लेषकों को हैरान किया है। कुछ अर्थशास्त्री अब उम्मीद कर रहे हैं कि अमेरिका इस वर्ष के अंत में हल्की मंदी की चपेट में आ जाएगा।

इस बीच चीन में आ​र्थिक सुधार की प्रक्रिया ध्वस्त होती दिख रही है। इस बात ने चीन के केंद्रीय बैंक को मौद्रिक नीति को ​शि​थिल करने पर विवश किया। चीन में अनुमान से धीमी वृद्धि वै​श्विक जिंस कीमतों पर भी दबाव बनाएगी।

चूंकि वै​श्विक आ​र्थिक वृद्धि के धीमा बने रहने की संभावना है इसलिए अतिरिक्त सख्ती भारत की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है। चूंकि मौद्रिक नीति समिति ने चालू चक्र में पहले ही नीतिगत रीपो दर में 250 आधार अंकों का इजाफा कर दिया है और वह अभी भी व्यवस्था में नजर आ रही है तो ऐसे में समझदारी यही है कि अभी रुककर प्रतीक्षा की जाए।

केंद्रीय बैंक से होने वाला संचार अहम होगा। उसे इस बात को साफ तौर पर रेखांकित करना होगा कि मौद्रिक नीति समिति मुद्रास्फीति के चार फीसदी के लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध है और वह अगर उसे लगा कि खाद्य मुद्रास्फीति का असर खपत के अन्य क्षेत्रों पर पड़ रहा है तो वह कदम उठाने से नहीं चूकेगी।

First Published - August 8, 2023 | 9:34 PM IST

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