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Editorial: मौद्रिक नीति: संयम बरतने का समय

शुक्रवार को इस बैठक के नतीजे सामने आ जाएंगे, जिन पर सबकी नजरें टिकी हैं क्योंकि बजट के ठीक बाद नीतिगत दर से जुड़े फैसले लिए जा रहे हैं।

Last Updated- February 05, 2025 | 11:24 PM IST
RBI MPC Meet

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक शुरू हो गई है, जो इस वित्त वर्ष में इसकी आखिरी बैठक है। संजय मल्होत्रा के आरबीआई गवर्नर बनने के बाद समिति की यह पहली बैठक होगी। शुक्रवार को इस बैठक के नतीजे सामने आ जाएंगे, जिन पर सबकी नजरें टिकी हैं क्योंकि बजट के ठीक बाद नीतिगत दर से जुड़े फैसले लिए जा रहे हैं। कई विश्लेषकों को लगता है कि नीतिगत दरें घटाने का यह अनुकूल समय है। इसके पीछे वे दो कारण गिना रहे हैं। पहला कारण, भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर कमजोर हो गई है। चालू वित्त वर्ष के लिए भारतीय सांख्यिकी कार्यालय के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत तक रहेगी, जो वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत थी। दूसरा कारण, सरकार ने खर्च घटाकर राजकोषीय मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन किया है, इसलिए आरबीआई को भी ब्याज दर घटाकर आर्थिक वृद्धि को ताकत देनी चाहिए।

इन बातों में दम जरूर है मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आर्थिक वृद्धि को गति देना ही आरबीआई का एकमात्र लक्ष्य नहीं है। तय प्रावधानों के अनुसार मौद्रिक नीति समिति का सर्वोपरि लक्ष्य ‘आर्थिक वृद्धि को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है’। यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति को दीर्घ अवधि तक 4 प्रतिशत से अधिक बढ़ने नहीं देना आरबीआई का पहला लक्ष्य है। दिसंबर में मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत रही थी। खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी जरूर आई है मगर अब भी वे ऊंचे स्तर पर हैं। ऐक्सिस बैंक के अर्थशास्त्रियों के एक विश्लेषण के अनुसार जिन वस्तुओं के दाम 6 प्रतिशत से अधिक बढ़े हैं, उनका अनुपात अक्टूबर 2020 के बाद पहली बार बढ़कर 33 प्रतिशत हो गया है। पिछली तिमाही में पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी के अनुमान के साथ प्रमुख मुद्रास्फीति दर भी बढ़ सकती है। एमपीसी ने दिसंबर में कहा था कि मुद्रास्फीति की दर 2025-26 की दूसरी तिमाही तक घटकर 4 प्रतिशत रह जाएगी, जिसके बाद नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बन सकती है।

किंतु एमपीसी की पिछली बैठक से अब तक दुनिया में परिस्थितियां काफी बदल गई हैं और मुद्रास्फीति से जुड़े जोखिम बढ़ते ही जा रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको पर शुल्क एक महीने के लिए जरूर टाल दिए हैं मगर दुनिया में व्यापार के मोर्चे पर अनिश्चितता काफी बढ़ गई है। उन्होंने चीन से आयातित सामान पर 10 प्रतिशत शुल्क बरकरार रखा है, जिसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामान पर जवाबी शुल्क लगा दिए हैं। ट्रंप यूरोपीय संघ (ईयू) से होने वाले आयात पर भी शुल्क लगाने की धमकी दे चुके हैं। व्यापार से जुड़ी अनिश्चितता और ऊंचे शुल्क आपूर्ति व्यवस्था में खलल डाल सकते हैं, जिससे भारत के लिए विदेश से आयात महंगा हो सकता है। दूसरे देशों पर अधिक शुल्क लगाने से अमेरिका में भी मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। एक अनुमान के अनुसार कनाडा और मेक्सिको पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने से अमेरिका में मुद्रास्फीति एक प्रतिशत तक बढ़ सकती है। अन्य देशों एवं क्षेत्रों पर शुल्क लगने से संकट और गहरा जाएगा, जिससे मुद्रास्फीति में कमी लाने के लिए की गई मेहनत पर पानी फिर सकता है। यह स्थिति अमेरिकी फेडरल रिजर्व के लिए नीतिगत दरों को संभालना मुश्किल बना सकती है।

ऊंची मुद्रास्फीति और ऊंची ब्याज दरें लंबे समय तक रहने से डॉलर और मजबूत हो जाएगा, जिसका सीधा असर विदेशी मुद्रा विनिमय बाजारों में अधिक अनिश्चितता के रूप में दिखेगा। रुपये पर भी दबाव बढ़ जाएगा, जिसे अब भी महंगा बताया जा रहा है। आरबीआई रुपये को लुढ़कने दे रहा है और अभी उसे कुछ समय तक गिरने देना होगा। मगर रुपया कमजोर होने से आयात प्रभावित होगा और मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के प्रयासों पर भी असर होगा। लिहाजा वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता और इसके मुद्रास्फीति पर होने वाले असर को देखते हुए एमपीसी के लिए फिलहाल सतर्क रहकर इंतजार करना समझदारी भरा कदम होगा। इस बीच आरबीआई को वित्तीय तंत्र में नकदी से जुड़ी दिक्कतों पर सक्रियता से ध्यान देना चाहिए क्योंकि इनका समाधान नहीं होने से प्रणाली में अनावश्यक गतिरोध पैदा हो सकता है।

First Published - February 5, 2025 | 11:15 PM IST

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