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एक्सपोर्ट केवल कुछ हाई इनकम देशों तक सीमित न रखे भारत

Last Updated- May 15, 2023 | 10:04 PM IST
India Trade data

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का ध्यान उच्च-आय वाले देशों को अधिक मूल्यवान वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने और राजकोषीय घाटा कम करने पर है। उपलब्ध आंकड़ों को देखने से तो यही लगता है कि इस नीति को औसत सफलता मिली है। सोमवार को जारी अप्रैल 2023 के आंकड़ों के अनुसार वस्तु एवं सेवाओं का निर्यात घाटा कम होकर 21 महीने के निचले स्तर पर आ गया है। वित्त वर्ष 2022-23 के आंकड़े भी यही दर्शा रहे हैं कि निर्यात बढ़ा है, भले ही यह वृद्धि दर 7 प्रतिशत से कम रही है। मगर आंकड़ों का अलग-अलग अध्ययन और दीर्घ अवधि के लिहाज से विचार करने से तो ऐसा प्रतीत नहीं होता है।

भारत आर्थिक नीति एवं एकीकरण की एक सफल रणनीति तैयार करने से काफी दूर है। तेल एवं कीमती रत्न की मांग में थोड़ा सा बदलाव होने पर भी वस्तुओं का निर्यात घाटा कम हो जाता है मगर यह बाह्य खाते में स्थिरता का आधार तो नहीं हो सकता। देश से सेवाओं का निर्यात जरूर बढ़ रहा है मगर यह सरकार की नीति का हिस्सा नहीं रहा है। यही कारण है कि सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) से संचालित सेवा क्षेत्र लगातार अपनी बाजार हिस्सेदारी गंवाने की चुनौती से जूझ रहा है।

आर्टिफि​​शियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा का तेजी से बढ़ता उपयोग इसका एक बड़ा कारण माना जा सकता है। दीर्घ अवधि के आंकड़े बताते हैं कि यूरोपीय संघ और अमेरिका को निर्यात अवश्य बढ़ा है मगर एशियाई एवं अफ्रीकी देशों को भारत से होने वाले निर्यात में कमी दर्ज की गई है।

यूरोपीय संघ और अमेरिका को भी निर्यात बढ़ने का कारण यह है कि भारत रूस से तेल खरीद कर इसे परिष्कृत कर इन देशों को बेच रहा है। अगर भारत व्यापार एवं विनिर्माण का प्रमुख केंद्र बनना चाहता है तो इसे अन्य मध्य आय वाले देशों को निर्यात और वहां से आयात भी बढ़ाना होगा। मगर ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा है। यह स्थिति एक वर्ष में खड़ी नहीं हुई है बल्कि एक संरचनात्मक समस्या है।

इस समाचार पत्र में प्रकाशित भारतीय सेल्यूलर इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन (आईसीईए) के आंकड़ों के अनुसार 2018 से अमेरिका को इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का आयात बढ़ कर भले ही तीन गुना हो गया हो मगर यह केवल 3.2 अरब डॉलर की ही वास्तविक बढ़ोतरी मानी जा सकती है। भारत की तुलना में वियतनाम के मामले में वास्तविक बढ़ोतरी 40 अरब डॉलर तक पहुंच गई है।

इस वृद्धि दर को देखते हुए तो यही लग रहा है कि भारत का प्रदर्शन वास्तव में अन्य एशियाई देशों की तुलना में कमजोर रहा है। चीन से कंपनियों के धीरे-धीरे बाहर निकलने का लाभ वियतनाम या मलेशिया जैसे देशों की तरह उठाने में भारत का सक्षम नहीं होना और एशिया और अफ्रीका के देशों को निर्यात घटने का एक ही कारण है।

वह कारण यह है कि सरकार बड़े व्यापार समझौते करने से कतराती रही है। वियतनाम एक ऐसे देश का उदाहरण है जो आर्थिक एकीकरण से लाभ उठाने का कोई मौका नहीं चूक रहा है। यह क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी और कॉम्प्रीहेन्सिव प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप दोनों का हिस्सा है।

मध्य-आय वाले देशों के साथ व्यापार और विकसित बाजारों को अधिक निर्यात एक दूसरे की जगह नहीं ले सकते हैं। वर्तमान समय में दुनिया में तेजी से विस्थापित हो रही आपूर्ति व्यवस्था (खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे बड़े उद्योग में), देखते हुए वास्तव में ये दोनों ही बातें एक साथ होंगी। वास्तव में एक टिकाऊ व्यापार नीति व्यापार घाटे में क्षणिक उतार-चढ़ाव की परवाह किए बिना संरचनात्मक मजबूती पर ध्यान देगी। इससे भारतीय कंपनियों और उत्पादकों को वैश्विक मूल्य श्रृंखला में उपस्थिति दर्ज करने में सहायता मिलेगी।

First Published - May 15, 2023 | 10:04 PM IST

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